Hindi, asked by dhurvchourey, 3 months ago

मानसिंह की योजना को तात्या ने क्यों आज स्वीकार कर दिया​

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Answered by mj630256
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ग्वालियर। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के योद्धा तात्या टोपे को अंग्रेज कई कोशिशों के बाद नहीं पकड़ सके। उनको पकड़कर फांसी पर चढ़ाए जाने की अंग्रेजों की कहानी पर भले ही लोग विश्वास करें, लेकिन 50 साल पहले ऐसे दस्तावेज सामने आए थे कि वे अंग्रेजों के हाथ नहीं आए। उनके स्थान पर तात्या नाम का दूसरा व्यक्ति फांसी पर चढ़ गया था।

तात्या टोपे से जुड़ी इस रहस्यमयी कहानी को dainikbhaskar.com सामने ला रहा है। 20 मई 1859 को अंग्रेजों का मालूम हुआ कि तात्या की जगह कोई दूसरा व्यक्ति फांसी पर चढ़ा था।

- 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के कुचले जाने के बाद भी तात्या टोपे अंग्रेजों से गुरिल्ला युद्ध करते रहे थे।

-उनके खौफ को खत्म करने के मकसद से अंग्रेजों ने शिवपुरी में उन्हें फांसी पर चढ़ा कर मार देने को दस्तावेजों में दर्ज कर लिया था।

लेकिन मई 1859 को फिर एक मुठभेड़ में नजर आए, और अंग्रेज सेना की आंखों में धूल झोंक कर नर्मदा पार कर गुजरात में भाग गए थे।

तात्या टोपे की जगह नारायण भागवत चढ़ गया फांसी

- अंग्रेज सरकार ने कथित तात्या को 7 अप्रैल, 1859 को पाड़ौन के जंगलों से पकड़ा । 15 अप्रैल 1859 को सैनिक अदालत में मुकदमा चलाया गया।

-उसी दिन फैसला सुनाकर 18 अप्रैल 1859 की शाम को फांसी दे दी गई।

- फांसी पर चढ़े तात्या टोपे के बयान पर जो हस्ताक्षर किये थे वे मराठी भाषा की मोड़ी लिपि में किए थे। बाद में हस्ताक्षरों के मिलान से से स्पष्ट हुआ था कि वे तात्या के नहीं थे।

-20 मई 1859 को अंग्रेजों का मालूम हो गया कि टोपे की जगह नारायण भागवत को फांसी चढ़ाया गया है।

-अंग्रेजों ने तात्या के जिंदा रहने की बात गायब कर दी, क्योंकि उन्हें डर था कि जिंदा रहने की खबर सुनकर विद्रोह फिर से भड़क सकता है।

पाड़ोन स्टेट के राजा ने दिए दस्तावेज

- तात्या की फांसी के सम्बन्ध में शिवपुरी की पाड़ोन जागीर के राजा मान सिंह के वंशजों ने 1969 में मध्यप्रदेश के तत्कालीन मंत्री राजा नरेश चंद्र सिंह को कुछ दस्तावेज सौंपे थे।

-इनमें स्पष्ट किया गया था कि कैसे राजा मान सिंह ने तात्या की जगह उनके ही एक साथी नारायण भागवत को अंग्रेजों के सुपुर्द किया गया था।

- राजा मानसिंह तात्या के मित्र थे। उनकी मदद से पंडितों के वेश में घोड़ो पर बैठकर तात्या टोपे और पं.गोविन्द राव अंग्रेजों की आंखों में धूल झोंककर निकल गए थे।

टोपे के बचाने के लिए बनाई थी रणनीति

- राजा मानसिंह ने टोपे को बचाने के लिए एक रणनीति बनाई और उसमें नारायण भागवत को शामिल किया। नारायण ने ही स्वयं को अंग्रेजों के हवाले करने की सलाह दी।

- स्वयं अंग्रेज सेना के मेजर मीड ने लिखा है वास्तव में यह राजा मानसिंह व तात्या की एक चाल थी, जिसमें टोपे को भागने का मौका मिल गया।

- हालांकि बाद में अंग्रेजों को तात्या के खौफ के खात्मे और अंग्रेजी फौज को झूठा और ठगा हुआ साबित होने से बचाने के लिए तात्या की फांसी को ही अंतिम सत्य मान लिया गया।

उनके वंशज भी नहीं मानते फांसी को

-मुंबई में 1857 के शताब्दी समारोह में तात्या टोपे के भतीजे प्रो.टोपे ने बताया कि तात्या टोपे की मौत 1909 में गुजरात में हुई थी।

- नाना साहेब के वारिस राव साहब पेशवा पर 1862 में चले मुकदमे के दौरान भी उनसे पूछा गया था,कि तात्या कहां है। इससे साफ जाहिर होता है कि अंग्रेज भी जानते थे कि तात्या जिंदा हैं।

- इतिहासकार डॉ.वाकणकर का कहना था कि अंबाजी का प्रसिद्ध मंदिर तात्या टोपे द्वारा बनवाया गया।

इस मंदिर के एक कोने में जो साधु वेश में चित्र लगा है, वह तात्या टोपे का ही है

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