मानसिक तनाव में कोरोना की भूमिका par anuched . Best answer will be marked as brainliest. It's urgent pls answer it correctly
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कोरोना वायरस से बचाव के लिए पूरे भारत में 21 दिनों का लॉकडाउन है. लोग घरों में बंद हैं और सब कुछ जैसे रुका हुआ है.
भागती-दौड़ती ज़िंदगी में अचानक लगे इस ब्रेक और कोरोना वायरस के डर ने लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव डालना शुरू कर दिया है.
इस बीच चिंता, डर, अकेलेपन और अनिश्चितता का माहौल बन गया है और लोग दिन-रात इससे जूझ रहे हैं.
मुंबई की रहने वाली मॉनिका रोज़ कोरोना वायरस, लॉकडाउन और अर्थव्यवस्था की ख़बरें पढ़ती हैं.
मॉनिका का अपना रेस्टोरेंट है जो इस वक़्त बंद पड़ा है लेकिन उनके ख़र्चे पहले की तरह ही चालू हैं.
आगे उम्मीद नहीं दिखती’
मॉनिका कहती हैं, “हमारा बिजनेस तो लॉकडाउन के कारण पहले ही धीमा हो गया था. उसके बाद पूरी तरह बंद हो गया. अब तो एक महीना होने को आ गया है लेकिन आगे क्या होगा पता नहीं. एक बिजनेसवुमन होने के नाते मैं अपने कर्मचारियों को तनख्वाह दूंगी ही लेकिन हमारे ख़र्चे बांटने वाला कोई नहीं है. ये सब सोचकर किसी की भी चिंता बढ़ जाती है. पहले कोरोना और फिर आगे मुंबई की बारिश, मुझे तो पूरा एक साल उम्मीद नहीं दिखती.”
कई लोग मौजूदा स्थिति में डरा हुआ या अकेला महसूस कर रहे हैं.
दिल्ली की रहने वालीं रिचा जनता कर्फ़्यू के बाद से ही अपने पति और बच्चों के साथ घर में रह रही हैं.
वह कहती हैं, “शुरू में तो अच्छा लगा कि पूरे परिवार के साथ रह पाएंगे और उस वक़्त कोरोना वायरस का डर भी ज्यादा नहीं था. लेकिन, अब रोज़-रोज़ ख़बरें देखकर डर लगता है कि हमारा क्या होगा. मुझे बार-बार लगता है कि कहीं परिवार में किसी को कोरोना वायरस हो गया तो. अगर सरकार ने लॉकडाउन खोल दिया तो सब लोग क्या करेंगे. कोरोना वायरस जैसे मेरे दिमाग़ पर छाया रहता है.”
कई लोग तो इस वक़्त अपने घरों और दोस्तों से भी दूर हैं. अकेले ही हालात से निपट रहे हैं. एक कमरे में बंद अनिश्चित भविष्य के बारे में सोचकर लोगों की मानसिक दिक्कतें बढ़ी हैं.
मानसिक स्वास्थ्य पर काम करने वालीं मनोवैज्ञानिक पारुल खन्ना पराशर कहती हैं, “लोगों के लिए पूरा माहौल बदल गया है. अचानक से स्कूल, ऑफिस, बिजेनस बंद हो गए, बाहर नहीं जाना है और दिनभर कोरोना वायरस की ही ख़बरें देखनी हैं. इसका असर मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ना स्वाभाविक है.”
“लोगों को परेशान करने वालीं तीन वजहें हैं. एक तो कोरोना वायरस से संक्रमित होने का डर, दूसरा नौकरी और कारोबार लेकर अनिश्चितता और तीसरा लॉकडाउन के कारण आया अकेलापन.”
स्ट्रेस बढ़ने का शरीर पर असर
पराशर बताती हैं कि इन स्थितियों का असर ये होता है कि स्ट्रेस बढ़ने लगता है. सामान्य स्ट्रेस तो हमारे लिए अच्छा होता है इससे आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहन मिलता है लेकिन ज़्यादा स्ट्रेस, डिस्ट्रेस बन जाता है. ये तब होता है जब हमें आगे कोई रास्ता नहीं दिखता. घबराहट होती है, ऊर्जाहीन महसूस होता है. फ़िलहाल महामारी को लेकर इतनी अनिश्चितता और उलझन है कि कब तक सब ठीक होगा, पता नहीं. ऐसे में सभी के तनाव में आने का ख़तरा बना हुआ है.
इस तनाव का असर शरीर, दिमाग़, भावनाओं और व्यवहार पर पड़ता है. हर किसी पर इसका अलग-अलग असर होता है.
शरीर पर असर - बार-बार सिरदर्द, रोग प्रतिरोधक क्षमता का कम होना, थकान, और ब्लड प्रेशर में उतार-चढ़ाव.
भावनात्मक असर – चिंता, ग़ुस्सा, डर, चिड़चिड़पना, उदासी और उलझन हो सकती है.
दिमाग़ पर असर – बार-बार बुरे ख़्याल आना. जैसे मेरी नौकरी चली गई तो क्या होगा, परिवार कैसा चलेगा, मुझे कोरोना वायरस हो गया तो क्या करेंगे. सही और ग़लत समझ ना आना, ध्यान नहीं लगा पाना.
व्यवहार पर असर – ऐसे में लोग शराब, तंबाकू, सिगरेट का सेवन ज़्यादा करने लगते हैं. कोई ज़्यादा टीवी देखने लगता है, कोई चीखने-चिल्लाने ज़्यादा लगता है, तो कोई चुप्पी साध लेता है.
कैसे दूर होगा स्ट्रेस
मानसिक तनाव की स्थिति से बाहर निकलना बहुत ज़रूरी है वरना तनाव अंतहीन हो सकता है. डॉ. पारुल पराशर के मुताबिक़ आप कुछ तरीक़ों से ख़ुद को शांत रख सकते हैं ताकि आप स्वस्थ रहें-
ख़ुद को मानसिक रूप से मज़बूत करना ज़रूरी है. आपको ध्यान रखना है कि सबकुछ फिर से ठीक होगा और पूरी दुनिया इस कोशिश में जुटी हुई है. बस धैर्य के साथ इंतज़ार करें.
अपने रिश्तों को मज़बूत करें. छोटी-छोटी बातों का बुरा ना मानें. एक-दूसरे से बातें करें और सदस्यों का ख़्याल रखें. निगेटिव बातों पर चर्चा कम करें.
घर से बाहर तो नहीं निकल सकते लेकिन, छत पर, खिड़की पर, बालकनी या घर के बगीचे में आकर खड़े हों. सूरज की रोशनी से भी हमें अच्छा महसूस होता है.
अपनी दिनचर्या को बनाए रखें. इससे हमें एक उद्देश्य मिलता है और सामान्य महसूस होता है. हमेशा की तरह समय पर सोना, जागना, खाना-पीना और व्यायाम करें.
एक महत्वपूर्ण तरीक़ा ये है कि इस समय का इस्तेमाल अपनी हॉबी पूरी करने में करें. वो मनपसंद काम जो समय न मिलने के कारण आप ना कर पाए हों. इससे आपको बेहद ख़ुशी मिलेगी जैसे कोई अधूरी इच्छा पूरी हो गई है.
अपनी भावनाओं को ज़ाहिर करना. अगर डर, उदासी है तो अपने अंदर छुपाएं नहीं बल्कि परिजनों या दोस्तों के साथ शेयर करें. जिस बात का बुरा लगता है, उसे पहचानें और ज़ाहिर करें, लेकिन वो ग़ुस्सा कहीं और ना निकालें.
भले ही आप परिवार के साथ घर पर रह रहें फिर भी अपने लिए कुछ समय ज़रूर निकालें. आप जो सोच रहे हैं उस पर विचार करें. अपने आप से भी सवाल पूछें. जितना हो पॉजिटिव नतीजे पर पहुंचने की कोशिश करें.
सबसे बड़ी बात बुरे वक़्त में भी अच्छे पक्षों पर ग़ौर करना है. जैसे अभी महामारी है, लॉकडाउन है लेकिन इस बीच आपके पास अपने परिवार के साथ बिताने के लिए, अपनी हॉबी पूरी करने के लिए काफ़ी वक़्त है. इस मौक़े पर भी ध्यान दें.