मानसरोवर सुभर जल, हंसा केलि कराहिं।।
मुकताफल मुकता चुनें, अब उड़ि अनत न जाहि।।।।
प्रेमी हूँढत मैं फिरौं, प्रेमी मिले न कोई।।
| प्रेमी कौं प्रेमी मिलै, सब विष अमृत होइ।2।।
ती हस्ती चढिए ज्ञान कौ, सहज दुलीचा डारि।
। स्वान रूप संसार है, मूंकन दे झख मारि।3।।
T
गा।
रात जग रहा भलान।
Answers
Answer:
मानसरोवर सुभर जल, हंसा केलि कराहिं।।
मुकताफल मुकता चुनें, अब उड़ि अनत न जाहि।।।।
कबीर दास जी अपने इस दोहे में हमें यह बताना चाहते हैं की
मानसरोवर के पवित्र जल में हंस क्रीड़ा कर रहे हैं। वे वहाँ मोती चुग रहे हैं। वहाँ उनको इतना आनंद आ रहा है कि कहीं ओर जाने की इच्छा नहीं है।
प्रेमी हूँढत मैं फिरौं, प्रेमी मिले न कोई।।
| प्रेमी कौं प्रेमी मिलै, सब विष अमृत होइ।2।।
इस दोहे में कबीर दास जी ने दो भक्तों के आपसी प्रेम भावना के बारे में बताया है।
जब दो सच्चे प्रभु भक्त आपस में मिलते हैं तो उनके बीच में कोई भेद-भाव, ऊंच-नीच, क्लेश इत्यादि दुर्भावनाएँ नहीं होती।
हस्ती चढिए ज्ञान कौ, सहज दुलीचा डारि।
। स्वान रूप संसार है, मूंकन दे झख मारि।3।।
गा। रात जग रहा भलान।
कबीर दास जी ने अपने इस दोहे में हमें संसार के द्वारा की जाने वाली निंदा की परवाह किये बिना ज्ञान के मार्ग में चलने का सन्देश किया है। हम अपने ज्ञान रूपी हाथी में सवार होकर इस समाज की निंदा की परवाह किये बिना निरंतर भक्ति के मार्ग में चलते रहना चाहिए । इस दोहे में कवि ने हमें एक दूसरे से तुलना करने की भावना को त्यागने का सन्देश दिया है।
Explanation:
doha by Kabir das मानसरोवर की पवित्र जल में हंस कर रहे हैं वह वह मोदी जग रहे हैं मां उनकी इतना आनंद आ रहा है कि कहीं और जाने की इच्छा नहीं है