मानव जाति को अन्य जीवधारियोोंसेअलग किके महत्त्व प्रदान किनेवाला जो एकमात्र
गुरु है, वह हैउसकी तवचाि-शक्ति। मनुष्य के पास बुतध है, तववेक है, िकक शक्ति हैअर्ाकि
उसके पास तवचािोोंकी अमूल्य पूूँजी है। अपनेसतवचािोोंकी नी ोंव पि ही आज मानव नेअपनी
श्रेष्ठिा की स्र्ापना की हैऔि मानव-सभ्यिा का तवशाल महल खडा तकया है। यही कािण है
तक तवचािशील मनुष्य के पास जब सतवचािोोंका अभाव िहिा हैिो उसका वह शून्य मानस
कु तवचािोोंसेग्रस्त होकि एक प्रकाि सेशैिान के वशीभूि हो जािा है। मानवी बुतध जब
सद्भावोोंसेप्रेरिि होकि कल्याणकािी योजनाओोंमेंप्रवृत्त िहिी हैिो उसकी सदाशयिा का
कोई अोंि नही ोंहोिा, तकों िुजब वहाूँकु तवचाि अपना घि बना लेिेहैंिो उसकी पाशतवक
प्रवृतत्तयाूँउस पि हावी हो उठिी हैं। तहोंसा औि पापाचाि का दानवी साम्राज्य इस बाि का
द्योिक हैतक मानव की तवचाि-शक्ति, जो उसेपशुबननेसेिोकिी है, उसका सार् देिी है।
क) मानव जाति को महत्त्व देनेमेंतकसका योगदान है?
ख) नवचार ंकीअमूल्य पूूँजी क्या है?
ग) मानव मेंपाशतवक प्रवृतत्तयाूँक्ोोंजागृि होिी हैं
घ) मनुष्य की नवचार शक्ति कै सा साथ देती है? ?
ङ) गद्याोंश का उपयुि शीर्कक हो सकिा है?
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