मानव समाज के प्रमुख लक्षणों ka varn
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शहरी समुदायों के लक्षण
शहरी समुदायों की विशिष्टताएं निम्नलिखित गुणों द्वारा पता चलती हैं:
1. सामाजिक विविधता
लोग विभिन्न पृष्ठभूमि और संस्कृति से शहरों की ओर आते हैं जहाँ उनको बेहतर सम्भावनाएँ दिखती हैं। वे पिघलते बर्तन (melting pot) की तरह मिलजुल कर शहरी समुदाय के रूप में रहते हैं। सामाजिक सुविधाएँ जैसे स्कूल, अस्पताल और मनोरंजन के साधन भी आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं।
2. सामाजिक नियंत्रण से स्वतंत्रता
घर से दूरी, अकेलापन और अलगाव की भावना के कारण अन्य सहायक सम्बन्ध बना लेते हैं। ऐसे सम्बन्ध घरों के नियंत्रण से दूर फलने फूलने लगते हैं।
3. स्वैच्छिक संगठन
निकटता, विविधता और सामाजिक दृष्टि से भिन्न लोगों के आपसी संपर्क (सम्बन्ध) उन्हें एक दूसरे के ज्यादा नजदीक ले आता है। क्लबों और संगठनों की स्थापना लोगों की आम ज़रूरतों की पूर्ति करती है।
4. व्यक्तिवाद
अवसरों का बाहुल्य, सामाजिक विविधता, निर्णय पर पारिवारिक और सामाजिक नियंत्रणों की कमी मनुष्य के स्वहित को और बढ़ा देती है और वह अपने निर्णय स्वयं लेकर अपने कैरियर (व्यवसाय) और कार्यवाही का चयन कर लेता है।
5. सामाजिक गतिशीलता
शहरों में कोई भी जन्म के समय की स्थिति के विषय में नहीं पूछता। शहरों में प्रतिष्ठा (वैभव-प्रतीत), उपलब्धियों, क्षमता, दक्षता और नवीनता पर आधारित होता है।
6. सुविधाओं की उपलब्धता
शहरों में रहने वाले लोगों को नैदानिक क्लीनिक, कानूनी सेवाओं, बैंकों, वाणिज्यिक बाजारों, मॉलों (Malls) और डिपार्टमेंटल स्टोरों, होटलों तथा अतिथि गृहों की सुविधाएँ उपलब्ध हैं। यह निःसंदेह शहरी युवाओं के लिये एक बेहतर यद्यपि तनावपूर्ण जीवन है। ऊपर लिखे अनुसार 8.3 तालिका ग्रामीण तथा शहरी बस्तियों पर प्रकाश डालती है। गाँवों से शहरों की ओर पलायन का दुख फूलों की सेज नहीं होता है|
ग्रामीण बस्तियों के लक्षण
ग्रामीण समुदायों के मुख्य लक्षण इस प्रकार हैं:
1. कृषि: मुख्य व्यवसाय होता है। जो लोग पूर्णतया खेतों में काम नहीं करते हैं, वे भी अप्रत्यक्ष रूप से कृषि से जुड़े हैं। गाँव की अर्थव्यवस्था कृषि अर्थव्यवस्था से जुड़ी है।
2. संयुक्त परिवार प्रणालीः संयुक्त परिवार प्रणाली एक सामाजिक और सांस्कृतिक संस्था है जो शहरों की अपेक्षा ग्रामीण समुदायों में सामान्य रूप से अधिक पाया जाता है।
3. जाति व्यवस्थाः गाँवों में जाति पर आधारित स्तरीकरण अधिक पाया जाता है।
4. जजमानी प्रथाः हर गाँव में (i) जजमान और (ii) सेवा प्रदाता समूहीकृत है जिनको नकद या वस्तु के रूप में भुगतान किया जाता है। जजमान भूमि मालिक हैं। वे ऊँची जातियों से आते हैं जबकि सेवा प्रदाता मध्यम या निम्न स्तर के होते हैं।
5. ग्रामीण कैलेन्डरः भारतीय गाँवों में लोग भारतीय संवत कैलेंडर और हिजरी संवत को मानते हैं।
6. सादा जीवनः गाँव वाले शहरी समाज की चमक-दमक से दूर, ईश्वर से डर कर पारम्परिक जीवन बिताते हैं।
7. गरीबी और निरक्षरता: अलाभकर जमीन एवं खंडित और बंजर भूमि की कम उत्पादकता के कारण पायी जाती है। कॉलेज, चिकित्सा सुविधाएँ, परिवहन और नागरिक सुविधाओं, ग्रामीण विकास के लिये सरकार द्वारा चलाई गई विकास योजनाओं के बाद भी विकास हुआ है।
8. गतिशीलता और सामाजिक परिवर्तन के खिलाफः कट्टरपंथियों, अशिक्षा, अंधविश्वास और भय के कारण, युवा बाहर जाने से, व्यवसाय बदलने से, जाति और धर्म परिवर्तन से घबराते हैं। ग्रामीण सामाजिक मापदंडों का ग्रामीण समाज के परम्परागत नियमों के उल्लंघनों को रोकने में एक बड़ा प्रभाव है। पंचायतों को दंडित करने की क्षमता भी ग्रामीण युवाओं को नये परिवर्तन या नयी पहल से आए किसी भी बदलाव को स्वीकार करने से रोकता है।