मानवातृकति वाले अतंरिळयात्री कहाँ से अाये थे और कयों
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अराजकतावाद (अंग्रेज़ी: Anarchism) एक राजनीतिक दर्शन है, जो स्वैच्छिक संस्थानों पर आधारित स्वाभिशासित समाजों की वक़ालत करता है। इनका वर्णन अक्सर राज्यहीन समाजों के रूप में होता है,[1][2][3][4] यद्यपि कई लेखकों ने इन्हें अधिक विशिष्टतापूर्वक अपदानुक्रमिक मुक्त संघों पर आधारित संस्थानों के रूप में परिभाषित किया हैं।[5][6][7][8] अराजकतावाद के मतानुसार राज्य अवांछनीय, अनावश्यक और हानिकारक है[9][10]
यह राजनीति विज्ञान की वह विचारधारा है जिसमें राज्य की उपस्थिति को अनावश्यक माना जाता है। इस सिद्धांत के अनुसार किसी भी तरह की सरकार अवांछनीय है। इसमें साधारणतः यह तर्क दिया जाता है कि मनुष्य मूलतः विवेकशील, निष्कपट और न्यायपरायण प्राणी है। अतः यदि समाज सही ढंग से संगठित हो तो किसी प्रकार के बल प्रयोग की आवश्यकता ही नहीं रहेगी। ऐसी स्थिति में राज्य की उपस्थिति स्वतः अप्रासंगिक हो जायगी।[11]
अनुक्रम
1 परिचय
2 निजी स्वामित्व का नकार
3 यूटोपियाई अराजकतावाद
4 साम्यवादी अराजकतावाद
5 इन्हें भी देखें
6 सन्दर्भ
7 बाहरी कड़ियाँ
परिचय
राज्य के नियंत्रण से पूरी तरह स्वतंत्र समाज की पैरोकारी करने वाला विचार अराजकतावाद कहलाता है। यह अवधारणा किसी भी तरह के सरकारी, व्यापारिक, औद्योगिक, वाणिज्यिक, धार्मिक, शैक्षिक या पारिवारिक नियंत्रण को अस्वीकार करती है। अराजकतावाद का विश्वास है कि मानवीय प्रकृति स्वतंत्रता, न्याय और ख़ुशहाली के लिए ही बनी है। मानव-समाज बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के शांति, सहकार और उत्पादन के साथ रहने में सक्षम है; और मनुष्य अपना शासन स्वयं कर सकता है। अराजकतावादियों के मुताबिक ऐसा समाज बनाना कठिन नहीं है जिसमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता अधिकतम होगी, भौतिक वस्तुओं का समान बँटवारा होगा और आपसी सलाह-सुमति के साथ सभी लोग व्यक्तिगत और सामाजिक ज़िम्मेदारियों को लेंगे।
अराजकतावादी चिंतन का इतिहास प्राचीन काल के यूनानी दार्शनिकों तक जाता है। स्टोइक चिंतक, ख़ास तौर से ज़ेनो (ईसा पूर्व 336-264) इसके लिए मशहूर हैं। आधुनिक युग में अराजकतावाद की सबसे महत्त्वपूर्ण व्याख्या करने श्रेय गॉडविन की 1793 में प्रकाशित कृति 'ऐन इनक्वारी कंसर्निंग पॉलिटिकल जस्टिस ऐंड इट्स इनक्रलुएंस ऑन जनरल वर्चू ऐंड हैपीनैस' को जाता है। लेकिन ख़ुद को अराजकतावादी कहने वाले पहले दार्शनिक उन्नीसवीं सदी के पूर्वार्ध में सक्रिय रहे फ़्रांसीसी चिंतक पिएर जोसेफ़ प्रूधों थे। जहाँ तक लक्ष्यों और कल्पनाशीलता का सवाल है, अराजकतावादियों में मतैक्य दिखता है। पर अपने ख़यालों की दुनिया को धरती पर उतारने के प्रश्न पर उनके बीच मतभेद पाये जाते हैं। मोटे तौर पर अराजकतावादियों की चार धाराएँ पायी जाती हैं : व्यक्तिवादी, परस्परतावादी, सामूहिकतावादी और साम्यवादी।
जर्मनी के निहिलिस्ट (नाशवादी) दार्शनिक मैक्स स्टर्नर को अराजकतावादी व्यक्तिवाद का प्रमुख चिंतक माना जाता है। इस विचार के मुताबिक व्यक्ति और उसकी सम्प्रभुता पूरी तरह से अनुलंघनीय रहनी चाहिए। स्टर्नर कहते हैं कि व्यक्ति को ईश्वर, राज्य या किसी भी नैतिकता की परवाह किये बिना अपनी मर्ज़ी से पहलकदमी ले कर सक्रिय रहने का अधिकार दिया जाना अनिवार्य है। हालाँकि इस किस्म के अराजकतावादी लेन-देन और समझौता (कांट्रेक्ट) के ज़रिये सामाजिक संबंध बनाने की वकालत करते हैं, पर व्यक्ति की निजता की बेतहाशा और अहंवादी पैरोकारी करने के कारण उनके कार्यक्रम की व्यावहारिकता काफ़ी कम हो जाती है। उन्नीसवीं सदी में अमेरिकी अराजकतावादी जोसैया वारेन ने इस तरह के अराजकतावाद के आर्थिक बंदोबस्त का एक खाका पेश करने की कोशिश की। उन्होंने मेहनत के घंटों का भंडार करने वाले ‘टाइम स्टोर्स’ की स्थापना की। उनकी तजवीज़ थी कि श्रम की मुद्रा के ज़रिये लोगों के बीच समतामूलक वाणिज्य हो सकता है। अमेरिकी अराजकतावादियों ने बाज़ार आधारित अर्थव्यवस्था की कड़ी आलोचना की। उन्होंने, विशेषकर लायसेंडर स्पूनर ने अमेरिकी संविधान पर ज़बरदस्त आक्रमण करते हुए उस समझौतापरक सिद्धांत की ख़ामियों को दिखाया जिसे राज्य की संस्था का आधार माना जाता है। व्यक्तिवादी अराजकतावाद की प्रेरणाएँ बीसवीं सदी में पनपे स्वतंत्रतावाद के विचार में ढूँढ़ी जा सकती हैं।
सामूहिकतावादी अराजकतावाद के प्रमुख चिंतक बकूनिन माने जाते हैं। सामूहिकतावादियों को न तो प्रूधों द्वारा की गयी छोटे किसानों और कारीगरों की तरफ़दारी पसंद थी और न ही वे कार्ल मार्क्स द्वारा प्रवर्तित समाजवादी विचार के समर्थक थे। मार्क्स के कम्युनिज़म को अधिनायकवादी करार देने वाला यह विचार एक ऐसे भविष्य की कल्पना करता है जिसमें मज़दूर संगठित हो कर पूँजी को अपने हाथ में ले लेंगे। संगठित मज़दूरों के हाथ में ही उत्पादन के साधन रहेंगे। सामूहिक फ़ैसले के आधार पर आमदनी का वितरण होगा। जो जितना श्रम करेगा उसका हिस्सा भी उतना ही बड़ा होगा।
परस्परतावादी अराजकतावाद व्यक्तिवाद और सामूहिकतावाद बीच रास्ता था जिसके सूत्रीकरण का श्रेय प्रूधों को जाता है। प्रूधों ने सम्पत्ति और कम्युनिज़म के बीच तालमेल बैठाते हुए एक ऐसी आर्थिक प्रणाली की वकालत की जिसके तहत व्यक्ति को निजी या सामूहिक तौर पर अपने उत्पादन के साधनों (जैसे औज़ार, ज़मीन आदि) का मालिक होने का अधिकार तो होगा, पर उसे उजरत अपने श्रम के मुताबिक ही मिलेगी ताकि समाज में समानता कायम रखी जा सके। इस अर्थव्यवस्था में विनिमय इस नैतिक मूल्य पर आधारित था कि व्यक्ति केवल उतना ही माँगेगा जितना वह स्वयं देने के लिए तैयार हो। प्रूधों ने उत्पादकों को न्यूनतम ब्याज दर पर ऋण देने वाले बैंकों की स्थापना का प्रस्ताव भी किया। इसमें कोई शक नहीं कि प्रूधों के आर्थिक प्रयोग कामयाब नहीं हुए, पर उनके फ़्रांसीसी अनुयायियों ने पहले कम्युनिस्ट इंटरनैशनल की शुरुआत पर अपना प्रभाव छोड़ा। बाद में सामूहिकतावादियों ने उन्हें किनारे धकेल दिया।