Psychology, asked by PragyaTbia, 1 year ago

मानव व्यवहार पर टेलीविजन देखने के मनोवैज्ञानिक समाघात का विवेचन कीजिए I उसके प्रतिकूल परिणामों को कैसे कम किया जा सकता है? व्याख्या कीजिए I

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Answered by TbiaSupreme
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"इस बात में कोई संदेह नहीं कि टेलीविजन आज के समय में हर घर की एक आवश्यक वस्तु बन चुका है। माना जा सकता है कि टेलीविजन आज के आधुनिक समय का एक उपयोगी  यंत्र है, परंतु मनोवैज्ञानिक समाघात के संदर्भ में इसके सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों तरह के प्रभाव पड़ते हैं।  

विभिन्न प्रकार के शोधों में टेलीविजन देखने से होने वाली संज्ञानात्मक प्रक्रिया एवं सामाजिक  व्यवहार पर होने वाले प्रभावों का अध्ययन किया गया है जिसके मिश्रित परिणाम प्राप्त हुए हैं।अधिकतर शोध  बच्चों को ध्यान में रखकर किये गये हैं, क्योंकि बच्चों के कोमल मन पर टेलीविजन का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है, क्योंकि बच्चे टेलीविजन के प्रति अधिक संवेदनशील और असुरक्षित होते हैं।

(1) टेलीविजन सूचना प्राप्त करने एवं मनोरंजन करने का प्रभावी साधन बन चुका है।  इसके कार्यक्रम बड़े आकर्षक होते हैं जो बाल मन पर गहरा प्रभाव डालते हैं जोकि सकारात्मक भी हो सकते हैं या नकारात्मक भी हो सकते हैं शोधों में यह पाया गया है कि ज्यादा समय तक टेलीविजन देखने से बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, खेलकूद और अन्य गतिविधियों पर असर पड़ता है और इनमें न्यूनता आती है।

(2) टेलीविजन के कुछ कार्यक्रम अत्यंत ज्ञानवर्धक होते हैं जिनसे बच्चों को बहुत सारी  महत्वपूर्ण एवं तथ्यात्मक सूचनाएं प्राप्त होती हैं, जिसके कारण उनके बुद्धि कौशल में वृद्धि होती है पर कुछ कार्यक्रमों के कारण उनकी रचनात्मकता और योग्यता प्रभावित हो सकती है उनकी एकाग्रता में कमी आ सकती है और किसी एक लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करने की  क्षमता प्रभावित हो सकती है।

(3) एक शोध के अनुसार ज्ञात हुआ कि टेलीविजन पर हिंसात्मक कार्य को देखने से बच्चों में आक्रामक प्रवृत्ति जन्म लेती है और  उनके अंदर आक्रामकता और हिंसा का भाव आ सकता है।  लेकिन एक दूसरे शोध के  अनुसार केवल टेलीविजन देखने से ही बच्चों में हिंसा का भाव नहीं आता बल्कि इसके लिए अन्य कारण भी जिम्मेदार होते हैं। एक तीसरे शोध के अनुसार बच्चों में टेलीविजन पर हिंसात्मक कार्यक्रम देखने से हिंसा का भाव कम हो जाता है, उनकी आक्रामकता में सहज रूप से कमी आ सकती है। क्योंकि उनके अंदर जो कुछ दबा हुआ है वो ऐसे हिंसात्मक कार्यक्रम देखकर अदृश्य रूप से बाहर निकल जाता है। इस प्रक्रिया को ‘कैथार्सिस’ कहते हैं।

(4) यह बात बच्चों एवं बड़ों दोनों के संदर्भ में है कि टेलीविजन के कारण नई उपभोक्तावादी संस्कृति ने जन्म ले लिया है। टेलीविजन पर तरह-तरह की वस्तुओं के विज्ञापन आते हैं जिनके कारण लोग उन विज्ञापनों के भ्रमजाल में फंस जाते हैं। अब तो टेलीविजन का पूरा तंत्र ही उपभोक्तावाद है और विज्ञापनों के जाल में उलझ चुका है।

उपाय- अब टेलीविजन द्वारा पढ़ने वाले नकारात्मक प्रभावों को दूर करने का उपाय क्या हों। तो सीधे-साधे सरल उपाय है कि टेलीविजन देखने की एक मर्यादा की जाए। कार्यक्रमों का चुनाव समझदारी से किया जाए। टेलीविजन देखने का बहुत कम समय निर्धारित किया जाए। इसके अतिरिक्त टेलीविजन के अलावा अन्य गतिविधियों को भी पर्याप्त समय दिया जाए तभी हम टेलीविजन के नकारात्मक प्रभाव से बच सकते हैं।

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