Hindi, asked by BelleJiya, 1 year ago

मानवता का अर्थ विस्तृत रुप मे लिखिए I

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Answered by sona561
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मानवतावाद मानव मूल्यों और चिंताओं पर ध्यान केंद्रित करने वाला अध्ययन, दर्शन या अभ्यास का एक दृष्टिकोण है। इस शब्द के कई मायने हो सकते हैं, उदाहरण के लिए:

एक ऐतिहासिक आंदोलन, विशेष रूप से इतालवी पुनर्जागरण के साथ जुड़ा हुआ।शिक्षा के लिए एक ऐसा दृष्टिकोण जिसमें छात्रों को जानकारी देने के लिए साहित्यिक अर्थों का उपयोग होता है या मानविकी पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।दर्शन और सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में कई तरह के दृष्टिकोण जो 'मानव स्वभाव' के कुछ भावों की पुष्टि करता है (मानवतावाद-विरोध के विपरीत).एक धर्मनिरपेक्ष विचारधारा जो नैतिकता और निर्णय लेने की क्षमता के एक आधार के रूप में विशेष रूप से अलौकिक और धार्मिक हठधर्मिता को अस्वीकार करते हुए हित, नैतिकता और न्याय का पक्ष लेता है।

बाद की व्याख्या में धर्मनिरपेक्ष मानवतावाद को एक विशिष्ट मानववादी जीवन के उद्देश्य के रूप में जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। इसलिए इस शब्द के आधुनिक अर्थों को अलौकिक या किसी उच्चस्तरीय सत्ता के प्रति आग्रहों की अस्वीकृति के साथ जोड़ा जाता है।[2][3] यह व्याख्या पारंपरिक धार्मिक क्षेत्रों में इस शब्द के अन्य प्रमुख उपयोगों के साथ प्रत्यक्षतः विपरीत हो सकती है।[4] इस पहलू का मानववाद ज्ञानोदय के प्रकृतिवाद और आस्तिकता-विरोध (एंटी-क्लैरिकलिज़्म) के एक विस्तारित क्षेत्र से उत्पन्न हुआ है, जो 19वीं सदी के विभिन्न धर्मनिरपेक्ष आंदोलनों (जैसे कि प्रत्यक्षवाद) और वैज्ञानिक परियोजनाओं का व्यापक विस्तार है।

मानवतावादी (ह्युमनिस्ट), मानवतावाद (ह्यूमनिज्म) और मानवतावाद संबंधी (ह्युमनिस्टिक) का संबंध सीधे तौर पर और सहज रूप से साहित्यिक संस्कृतिसे है।


Ashuxx: good one
BelleJiya: Thank You :)
sona561: welcome
Answered by subhashnidevi4878
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मानवता ही इंसान का सबसे बड़ा धर्म

स्पष्टीकरण:

सुख, समृद्धि एवं शांति से परिपूर्ण जीवन के लिए सच्चरित्र तथा सदाचारी होना पहली शर्त है, जो उत्कृष्ट विचारों के बिना संभव नहींहै। हमें यह दुर्लभ मानव जीवन किसी भी कीमत पर निरर्थक और उद्देश्यहीन नहीं जाने देना चाहिए। लोकमंगल की कामना ही हमारे जीवन का उद्देश्य होना चाहिए। केवल अपने सुख की चाह हमें मानव होने के अर्थ से पृथक करती है। मानव होने के नाते जब तक दूसरे के दु:ख-दर्द में साथ नहीं निभाएंगे तब तक इस जीवन की सार्थकता सिद्ध नहीं होगी। वैसे तो हमारा परिवार भी समाज की ही एक इकाई है, किंतु इतने तक ही सीमित रहने से सामाजिकता का उद्देश्य पूरा नहीं होता। हमारे जीवन का अर्थ तभी पूरा हो सकेगा जब हम समाज को ही परिवार मानें। मानवता में ही सज्जानता निहित है, जो सदाचार का पहला लक्षण है। मनुष्य की यही एक शाश्वत पूंजी है। मनुष्य भौतिकता के वशीभूत होकर जीवन की जरूरतों को अनावश्यक रूप से बढ़ाता रहता है, जिसके लिए सभी से भलाई-बुराई लेने को भी तैयार रहता है, लेकिन उसके समीप होते हुए भी वह अपनी शाश्वत पूंजी को स्वार्थवश नजरअंदाज करता रहता है।

यदि हमने तमाम भौतिक उपलब्धियों को एकत्र कर लिया है और हमारा अंतस जीवन के शाश्वत मूल्यों से खाली है तो हमारी सारी उपलब्धियां निरर्थक रह जाएंगी। मानवता के प्रति समर्पित होकर नैतिक मूल्यों की रक्षा के लिए ईमानदारी से प्रतिबद्ध हों, मानव जीवन की सार्थकता इसी में निहित है। जीवन की वास्तविक सुख-शांति इसी में है। जीवन में नैतिकता की उपेक्षा करने से आत्मबल कमजोर होता है। मानव जीवन में जितने भी आदर्श उपस्थित करने वाले सद्गुण हैं वे सभी नैतिकता से ही पोषित होते हैं। मनुष्य को उसके आदर्श ही अमरता दिलाते हैं। आदर्र्शो का स्थान भौतिकता से ऊपर है। मानव मूल्योंकी तुलना कभी भौतिकताओं से नहीं की जा सकती, यह नश्वर हैं। अभिमान सदैव आदर्र्शो और मानव मूल्यों को नष्ट कर देता है। अत: इससे सदैव बचने की जरूरत है।

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