Hindi, asked by nittalapadma6435, 11 months ago

मानवता के साथ हरे हम
निबंध 400 वर्ड

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Answered by vanshrajput040
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Explanation:

आज के इस भौतिक युग में यदि मनुष्य, मनुष्य के साथ सद्व्यवहार करना नहीं सीखेगा, तो भविष्य में वह एक-दूसरे का घोर विरोधी ही होगा। यही कारण है कि वर्तमान में धार्मिकता से रहित आज की यह शिक्षा मनुष्य को मानवता की ओर न ले जाकर दानवता की ओर लिए जा रही है। जहां एक ओर मनुष्य आणविक शस्त्रों का निर्माण कर मानव धर्म को समाप्त करने के लिए कटिबद्ध है, वहीं दूसरी ओर अन्य घातक बमों का निर्माण कर अपने दानव धर्म का प्रदर्शन करने पर आमादा है।ऐसी स्थिति में विचार कीजिए कि ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ वाला हमारा स्नेहमय मूलमंत्र कहां गया?    विश्व के सभी मनुष्य जब एक ही विधाता के पुत्र हैं और इसी कारण यह संपूर्ण विशाल विश्व एक विशाल परिवार के समान है, तो पुन: परस्पर संघर्ष क्यों? यह विचार केवल आज का नहीं है। समय-समय पर संसार में प्रवर्तित अनेक प्रमुख धर्र्मो में इस व्यापक और परम उदार विचारकण का सामंजस्य पुंजीभूत है। मानवता मनुष्य का धर्म होती है। सभी मनुष्यों में स्नेह करने का मूल पाठ मानव धर्म सिखाता है। जाति, संप्रदाय, वर्ण, धर्म, देश आदि के विभिन्न भेदभाव के लिए यहां कोई स्थान नहीं है।    मानव धर्म का आदर्श और इसकी मनोभूमि अत्यंत ऊंची है और इसके पालन में मानव जीवन की वास्तविकता निहित है।मानव धर्म सभ्यता और संस्कृति की एक प्रकार की रीढ़ की हड्डी है। इसके बिना सभ्यता व संस्कृति का विकास कल्पना मात्र ही है। मानव धर्म की वास्तविकता और उपादेयता इसी में है कि मनुष्यत्व के विकास के साथ ही साथ विश्व भर के लोग सुख, शांति और प्रेम के साथ रहें। प्राणिमात्र में रहने वाली आत्मा उसी परमपिता परमेश्वर का अंश है। प्रत्येक में एक ही जगतनियंता प्रभु का प्रतिबिंब दिखलाई देता है, यह समझकर मनुष्य की ओर आदर भावना बनाए रखें, तब ही अंतरराष्ट्रीय भावनाओं का, चाहे वे राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक हों, सर्र्वागीण विकास संभव है।    मानव धर्म का आध्यात्मिकता और नैतिकता से महत्वपूर्ण संबंध है। यदि कोई मानव चारित्रिक या नैतिक आदर्शे में उसकी श्रद्धा नहीं है, ईश्वरीय सत्ता में यदि उसका विश्वास नहीं है, इसके अतिरिक्त सहृदयता, सात्विकता, सरलता आदि सद्गुण उसमें नहीं हैं

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