Hindi, asked by vishnoiaakash0029, 2 months ago

मीरा बाई के ऊपर एक लेख लिखे?​

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Answered by 124jnvshivam
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मीराबाई का जन्म सन् 1503 में राजस्थान के मारवाड़ जिलान्तर्गत मेवात में हुआ था। कहा जाता है कि बचपन में एक बार मीराबाई ने खेल ही खेल में भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति को हदय से लगाकर उसे अपना दूल्हा मान लिया। तभी से मीराबाई आजीवन अपने पति की रूप में श्रीकृष्ण को मानते हुए उन्हें प्रसन्न करने के लिए मधुर मधुर गीत गाती रही।

Answered by Anuraag002
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कृष्ण भक्ति काव्यधारा की कवयित्रियों में मीराबाई का स्थान सर्वश्रेष्ठ है। मीराबाई का जन्म सन् 1503 में राजस्थान के मारवाड़ जिलान्तर्गत मेवात में हुआ था। कहा जाता है कि बचपन में एक बार मीराबाई ने खेल ही खेल में भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति को हदय से लगाकर उसे अपना दूल्हा मान लिया। तभी से मीराबाई आजीवन अपने पति की रूप में श्रीकृष्ण को मानते हुए उन्हें प्रसन्न करने के लिए मधुर मधुर गीत गाती रही। श्रीकृष्ण को पति मानकर सम्पूर्ण जीवन व्यतीत कर देने वाली मीराबाई को जीवन में अनेकाने कष्ट झेलने पड़े थें, फिर भी मीराबाई ने अपनी इस अटल भक्ति भावना का निर्वाह करने से कभी भी मुख नहीं मोडती

कृष्ण भक्ति काव्यधारा की कवयित्रियों में मीराबाई का स्थान सर्वश्रेष्ठ है। मीराबाई का जन्म सन् 1503 में राजस्थान के मारवाड़ जिलान्तर्गत मेवात में हुआ था। कहा जाता है कि बचपन में एक बार मीराबाई ने खेल ही खेल में भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति को हदय से लगाकर उसे अपना दूल्हा मान लिया। तभी से मीराबाई आजीवन अपने पति की रूप में श्रीकृष्ण को मानते हुए उन्हें प्रसन्न करने के लिए मधुर मधुर गीत गाती रही। श्रीकृष्ण को पति मानकर सम्पूर्ण जीवन व्यतीत कर देने वाली मीराबाई को जीवन में अनेकाने कष्ट झेलने पड़े थें, फिर भी मीराबाई ने अपनी इस अटल भक्ति भावना का निर्वाह करने से कभी भी मुख नहीं मोड़ा।

Hindy essay on Meerabaiमीराबाई का संसार लौकिक न होकर पारलौकिक था। यद्यपि मीराबाई के आरम्भिक जीवन में लौकिक जीवन जीना पड़ा था। फिर भी पति भोजराज की अल्पायु में मृत्यु हो जाने के कारण मीराबाई का मन वैरागी बन गया। मीराबाई को सामाजिक बाधाओं और कठिनाइयों को झेलते हुए अपने आराध्य देव श्रीकृष्ण की बार बार शरण लेनी पड़ी थी। जीवन के अन्तिम समय अर्थात् मृत्यु सन् 1546 तक मीराबाई को विभिन्न प्रकार की साधना करनी पड़ी थी।

मीराबाई द्वारा रचित काव्य रूप का जब हम अध्ययन करते हैं तो हम यह देखते हैं कि मीराबाई का हदय पक्ष काव्य के विविध स्वरूपों से प्रवाहित है। इसमे सरलता और स्वच्छन्दता है। उसमें भक्ति की विविध भाव भांगिमाएँ हैं। उसमें आत्मानुभूति है और एक निष्ठता की तीव्रता है। मीराबाई श्रीकृष्ण की अनन्य उपासिका होने के कारण और किसी को तनिक भी कुछ नहीं समझती हें। वे तो मात्र श्रीकृष्ण का ही ध्यान करने वाली हैं। वे श्रीकृष्ण की मनोहर मूर्ति को अपने हदय में बसायी हुई हैं-

मेरे तो गिरिधर गोपाल, दूसरा न कोई।

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