मेरी भव बाधा हरौ राधा नागर सोय में कौन सा अलंकार है
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मेरी भववाधा हरौ, राधा नागरि सोय।
जा तन की झाँई परे स्याम हरित दुति होय।।
यहाँ श्लेष अलंकार का सुन्दर उदाहरण है।
राधा जी के पीले शरीर की छाया नीले कृष्ण पर पड़ने से वे हरे लगने लगते है। दूसरा अर्थ है कि राधा की छाया पड़ने से कृष्ण हरित (प्रसन्न) हो उठते हैं।
मेरी भव बाधा हरो भारत के प्रसिद्ध साहित्यकार, कहानीकार और उपन्यासकार रांगेय राघव द्वारा लिखा गया एक श्रेष्ठ उपन्यास है। यह उपन्यास 'राजपाल एंड संस' प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किया गया था। राघव जी का यह उपन्यास महाकवि बिहारीलाल के जीवन पर आधारित अत्यंत रोचक मौलिक रचना है। यह उपन्यास उस युग के समाज, राजनीति और धार्मिक जीवन का भी सजीव चित्रण करता है।
Alankar kisi bhi vakya ya kavita ya geet ke arth ko adhik sunder aur arthpoorna bnane ka karya karta hai.
Uprokt panktiyon main Devi Radha aur Bhagwaan Shri Krishna ke baare main sunder varnan diya gaya hai.Yahan kaha gya hai ki Radhaji ki chaya padne se Shri Krishna Hare ho jaate hai arthat khush ho jaate hain
Yahan iska arth ye bhi ho sakata hai ki Peele varne ki Radha se Neele varna ke Shri Krishna ka rang hara ho jata hai
Indono hi baaton ko sunder tareeke se btane ke liye SHLESH ALALNKAR KA PRAYOG KIYA GYA HAI
राधा जी के पीले शरीर की छाया नीले कृष्ण पर पड़ने से वे हरे लगने लगते है। दूसरा अर्थ है कि राधा की छाया पड़ने से कृष्ण हरित (प्रसन्न) हो उठते हैं।