मेरे जीवन की अविस्मरणीय घटना (पहाड़ों से संबंधित निबंध) in hindi
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मेरा जीवन अनेक घटनाओं से पूर्ण रहा है किन्तु एक घटना मुझे भूले भुलाए भी नही भूलती | इस घटना में मैंने जीवन और मृत्यु को अपने सामने एक साथ खड़े देखा | जीवन मुझे अपनी और खींचता था और मृत्यु अपनी ओर | मै उन दोनों के बीच वैसे ही इधर-उधर लुढक रहा था जैसे कि दो नटखट बालको के बीच गेंद लुढकती है | आखिर जीवन की ही जीत हुयी और मै उस विपत्ति से बच निकला किन्तु अब भी जब उस घटना की याद हो आती है तो मेरा रोम रोम सिहर उठता है |
घटना बहुत पुरानी नही यही तीन चार वर्षो की है | हमारे विद्यालय में ग्रीष्मावकाश हो जाने से हमारी मित्र मंडली ने कश्मीर जाने का निश्चय किया था | एक साथी को हमने निवास स्थान का प्रबंध करने के लिए पहले ही श्रीनगर भेज दिया | हमारी पसंद का ध्यान रखते हुए उसने डल झील में एक हाउसबोट किराए पर निश्चित किया | पानी में तैरती हुयी नावो पर बने हुए लकड़ी के मकानों को हाउसबोट कहते है |
हमने जीवन में पहली बार ही हाउसबोट देखा था और सच कहता हु कि जल विहार के लिए डल झील जैसी निर्मल झील न तो आज तक मैंने कही देखी और न कही देखने की आशा है | डल झील का जल हो और उसमे तैरता हुआ हाउसबोट | उस हाउसबोट में रहने वाले हम विद्यार्थी ! फिर भला जल विहार के आनन्द का ठिकाना ! प्रात: और मध्यान्ह या सांय जब जी चाहता हम लंगोट कसकर झील में कूद पड़ते और जब तक नहा-नहाकर अघा न जाते , जल से बाहर निकलने का नाम न लेते थे | हाउसबोट के साथ एक छोटी सी डोंगी थी जिसे हम स्वयं भी पतवारो से चला सकते थे |
एक दिन मित्र मंडली ने डल झील के दुसरे किनारे स्थित शालामार बाग़ तक डोंगी में जाने का निश्चय किया | हमने खाने पीने का सामान , हारमोनियम और ग्रामोफोन डोंगी में रखा और अपनी सहायता के लिए एक मल्लाह को साथ लेकर डोंगी पर चल दिए | दिन सुहावना था इसलिए नाव चलाने में विशेष आनन्द आया | जब हमारी नाव डल झील के ठीक बीचोबीच पहुची तो दूर आकाश में हमे कुछ मटियाले बादल उमड़ते हुए दिखाई पड़े |
हमारे साथी मल्लाह ने सचेत किया कि हमे ओर आगे न चलना चाहिए और नाव को शीघ्र ही तट पर लगाने का प्रयत्न करना चाहिए क्योकि आंधी आने का भय है | हमने उसके इस सुझाव का विरोध किया | सबसे अधिक विरोध मैंने की किया और कहा कि जितना समय हम तट पर जाने में लगायेंगे उतने समय में तो हम शालामार भी पहुच जायेगे | अस्तु मल्लाह ने हमारी बात मान ली उअर दुगुने उत्साह से नाव को खेने लगे |
अभी दस मिनट ही न बीत पाए थे कि हवा का हल्का सा झोंका सरसराता हुआ नौका के उपर से निकल गया | मल्लाह ने हमे पूरा बल लगाकर पतवार सम्भालने को कहा हम देख भी न पाए कि आकाश एकदम चंचल हो उठा | सुंदर बदलिया मटियाली घटाओ में बदल गयी और डल झील के शांत सलिल में भयंकर लहरे उफनने लगी | लहरों के झटको से हमारी नौका कभी गज भर उपर उछलती और कभी दो गज नीचे फिसलती |
हमारे हाथो से पतवारे छुट गयी और आँखों के आगे चारो ओर मृत्यु नाचती हुयी दिखाई देने लगी | हमे जीने की आशा शेष न रह गयी थी किन्तु मल्लाह हमे धीरज बंधाकर कहता जा रहा था बाबूजी ! साहस न छोडिये और नौका का संतुलन ठीक रखने का यत्न कीजिये | यह आंधी हमारा कुछ न बिगड़ सकेगी | मल्लाह ठीक कहता था किन्तु हमारे दिल का ही संतुलन बिगड़ चूका था फिर नौका का संतुलन हम कैसे ठीक रख सकते ? लहरों अक एक झटका लगा और हमारी नाव उल्ट गयी |
इसके बाद क्या हुआ , मुझे कुछ पता नही | हाँ जब मेरी आँखे खुली तो मैंने अपने आपको श्रीनगर के अस्पताल में पाया | मैंने घबराकर नर्स से पूछा कि मेरे साथियो का क्या हुआ और मुझे यहाँ कौन लाया है ? नर्स को सांत्वना देते हुए मुझे बताया कि मेरे साथी बचा लिए गये है और वे भी उसी अस्पताल में प्रविष्ट है | पीछे मुझे बताया गया कि हमारी नौका तट के पास आकर उल्ट थी कि किनारे पर खड़े कुछ मल्लाहो ने हमारी चीख पुकार सुन ली थी | वे झट हमारी सहायता के लिए झील में कूद पड़े और हमे पकडकर बाहर ले आये |
इस घटना को बीत कई वर्ष बीत चुके है किन्तु आ भी ऐसा प्रतीत होता है कि मानो वह कल की घटना हो | सहसा जीवन और मृत्यु के पारस्परिक संघर्ष का चित्र मेरी आँखों के सामने नाच जाता है | वस्तुत: यह घटना मुझे सदा स्मरण रहेगी |