मेरे जीवन का सबसे सुखद दिन पर निबंध। hindi essay on memorable day
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मेरे जीवन का यादगार दिन | A Memorable Day of My Life in Hindi!
हमारे जीवन में कुछ ऐसे दिन आते हैं जो कई दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होते हैं । ऐसे कुछ दिन याद रखने योग्य होते हैं । इन्हें भूल पाना कठिन होता है क्योंकि ये दिन हमारे मन-मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव छोड़ जाते हैं ।
ये यादगार दिन अच्छे या बुरे किसी भी प्रकार के हो सकते हैं । अंतर इतना ही है कि अच्छे दिनों को हम बार-बार याद करते हैं तथा बुरे दिनों को हम भुलाना चाहते हैं । मुझे याद आता है वह दिन जब मुझे बड़े भाई ने सूचना दी कि तुम्हारा चयन कबड्डी की राज्य स्तरीय टीम में हो गया है ।
मैं तो खुशी से झूम उठा । भाई ने शाबाशी दी । माता-पिता ने आशीर्वाद दिया । इन सभी ने मेरे सफल खेल जीवन की कामना की । मेरे मित्रों ने टेलीफोन पर मुझे बधाई दी । इस घटना का दूसरा पड़ाव था सभी चयनित खिलाड़ियों का राजधानी भोपाल में सम्मिलन । मध्य प्रदेश राज्य के जूनियर टीम के खिलाड़ी भोपाल में मिले । हमें एक अतिथि गृह में ठहराया गया ।
वहाँ हमारे साथ कबड्डी टीम के प्रशिक्षक एवं मैनेजर भी थे । प्रशिक्षक के नेतृत्व में हमने एक सप्ताह तक कड़ा अभ्यास किया । हमें प्रतिदिन प्रात: चार बजे उठकर साढ़े चार बजे योगाभ्यास करना होता था । कुछ देर बाद व्यायाम कराया जाता है । फिर हमारा नाश्ता होता था । नाश्ते के बाद खिलाड़ियों को कबड्डी खेल के गुर सिखाए जाते थे । हमने जमकर अभ्यास किया ।
अभ्यास सत्र खत्म होने के पश्चात् हम लोग जूनियर कबट्टी खिलाड़ियों की राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए चंडीगढ़ पहुँचे । यहाँ हम एक होटल में ठहरे । इस होटल में देश के विभिन्न प्रांतों की कुछ अन्य टीमें भी ठहरी हुई थीं । लीग मैच में हमारी पहली प्रतिद्वंद्वी टीम झारखंड की थी जिसे हमने शानदार अंतर से पराजित किया ।
हमारा दूसरा मुकाबला उत्तर प्रदेश की टीम से था । उत्तर प्रदेश की कबड्डी टीम के साथ हमारा काँटे का मुकाबला हुआ और मैच बराबरी पर छूटा । तीसरा मुकाबला गोवा की टीम से हुआ जिसे हराने में हमें कोई परेशानी नहीं हुई ।
आखिरकार हमारी टीम सेमी फाइनल में पहुँची । सेमी फाइनल में हमारी भिड़ंत शक्तिशाली हरियाणा की टीम से हुई । हमारी टीम ने यह मोर्चा भी जीत लिया परंतु फाइनल में हमारी टीम मणिपुर की कबड्डी टीम से मामूली अंतर से हार गई ।
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मेरे जीवन का सबसे अच्छा दिन
Mere Jeevan ka Sabse Accha Din
जीवन दुःखों से परिपूर्ण है। इस विश्व में पूरी तरह प्रसन्न काई भी नहीं, किन्तु सभी मनुष्यों के जीवन में प्रसन्नता और दुःख के क्षण हरदम आते हैं। मनुष्यों को जब किसी वस्तु की उपलब्धि हो तब उन्हें घमण्ड नहीं करना चाहिये। ऐसा न हो कि दुःख अथवा प्रसन्नता उनमें बहुत अधिक परिवर्तन ला दे, किन्तु इस विश्व में, जोकि दुःखों से भरपूर है, प्रसन्नता एक दुर्लभ वस्तु है।
19 नवम्बर, 1980 का दिन मेरे जीवन का सर्वाधिक प्रसन्नता का दिन था। उस दिन एक लाख रुपये मुझे एक लाटरी के इनाम में मिले । यह एक विरल अवसर था । बहुत कम ऐसे लोग हैं जिन्हें इनाम मिलते हों, किन्तु मैं बहुत सौभाग्यशाली थी कि इनाम गा सकी। यह पुरस्कार तीसरे नम्बर का था, जो मुझे बंगाल लाटरी का एक टिकट खरीदने पर मिला था।
बड़ी उत्कण्ठा के साथ परिणाम की प्रतीक्षा कर रही थी और भाग्य ने मेरा साथ देया। मेरे माता-पिता बहुत गरीब हैं। पिता किताबों की एक दुकान पर काम करते उनकी आय इतनी नहीं कि परिवार का भली-भांति भरण-पोषण कर सके। उन्हें एक हजार पांच सौ रुपये मासिक वेतन मिलता है और इतनी राशि से एक परिवार की आवश्यकताओं को पूरा नहीं किया जा सकता।
मेरे पिता मेरे पास आए और उन्होंने ही मुझे यह शुभ समाचार दिया। साथ में मिठाई का डिब्बा लिये हुए मां भी थीं। उन्होंने मुझे मिठाई दी। उस मिठाई से मुझे बेहद सन्तोष हुआ और मैंने अत्यधिक तृप्ति महसूस की। पिताजी मुझे अपने साथ ले गए और उसी दिन धन प्राप्त कर लिया गया। अब हमारी समस्याएं हल हो गई थीं। पिताजी ने नौकरी छोड़ दी और उस धन से अपना स्वयं का व्यवसाय प्रारम्भ किया। अब वह काफी धन कमाते हैं और हम अत्यन्त प्रसन्न हैं।
वह दिन हम सबके जीवन का परिवर्तन बिन्दु सिद्ध हुआ। मेरी बहनें पढ़ रही हैं, उन्हें धन की आवश्यकता पड़ती है और पिताजी सब कुछ हमें सौंप देते हैं।
19 नवम्बर का दिन फिर आया और यह मेरी सबसे छोटी बहन का जन्मदिन था। हमने उस दिन को भी मनाने का निश्चय किया और तैयारियों में जुट गए। उस अवसर पर हमारे अनेकानेक मित्र और सम्बन्धी आये और रात्रि के समय अत्यन्त हंसी-खुशी के वातावरण में जन्म दिन समारोह मनाया गया। मेरी मम्मी तथा पापा ने अपने सारे सम्बन्धियों को निमन्त्रित किया था। रात्रि में जब केक काटने का समय आया तो हमारी प्रसन्नता की सीमा न थी। मेरी मां ने मुझे मंच पर जाने के लिए उत्साहित किया और एक सुरीला गीत गाने के लिए भी कहा। मैंने उनकी आज्ञा का पालन किया और गायन में अपनी प्रतिभा का भरपूर परिचय भी दिया। तब मेरी आयु सत्रह वर्ष थी।
यद्यपि लाटरी की इस घटना को अब दस वर्ष से अधिक बीत चुके हैं, किन्तु अभी भी वह मेरे जीवन का सबसे प्रसन्नतापूर्ण दिन है। मैं तब मात्र एक नन्हीं सी बालिका थी और खेलने-कूदने के अलावा अन्य चीजों से भेंट परिचय नहीं के बराबर था। मेरे माता-पिता ने मेरे नाम लाटरी का एक टिकट खरीदा और मेरे भाग्य ने साथ दिया। इसी के परिणामस्वरूप वह तीसरा पुरस्कार मेरे परिवार को मिला।
ईश्वर ने हमारी सहायता की कि अत्यन्त शांत भाव से हम कठिनाइयों का मुकाबला कर सकें। उसी ने हमारी आर्थिक समस्याओं का समाधान भी हमें दिया। शायद उस उद्देश्य की पूर्ति के लिये वह दिन पहले से ही तय किया जा चुका था और हम अपने भाग्य का परिवर्तन देखने में सफल हुए।
क्या मुझे उस दिन को अपने जीवन का सर्वाधिक प्रसन्नतापूर्ण दिन नहीं मानना चाहिए? यदि नहीं, तो फिर आप ही बताइए, हम उसे क्या नाम दें?
आदमी के जीवन में ऐसे अवसर कभी-कभी ही आते हैं जब भाग्यलक्ष्मी द्वार पर दस्तक देती है। हमें ऐसे स्वर्णिम अवसर को खोना नहीं चाहिये। हो सकता है वही हमारे जीवन को अच्छे रूप में परिवर्तित कर दे।
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