"मिरा के पद" का प्रतिपाद्य अपने शब्दो में लिखिए|
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पारिवारिक संतापों से त्रस्त मीरा ने कृष्णमय होकर अपने आराध्य के लिए अनेक पदों की रचना की। उनके पदों से संकलित पहले पद में मीरा स्वयं को कृष्ण की दासी बताते हुए कृष्ण से जन-जन की पीड़ा हरने की विनती करती है। वे द्रौपदी, भक्त प्रहलाद, गजराज आदि के उदाहरण देकर कृष्ण को उनके जन-जन की पीड़ा हरने के कर्त्तव्य का स्मरण कराते हुए स्वयं को उनकी कृपा की अधिकारिणी बताती हैं।
दूसरे पद में मीरा कृष्ण की चाकरी करने की इच्छा प्रकट करती हैं। वह कहती हैं कि वे कृष्ण के लिए बाग लगाकर और ऊँचे महल बनाकर कृष्ण को वहाँ रखेंगी और वृंदावन की कुंज गलियों में उनकी लीलाओं का गान करेंगी। वे कृष्ण की वेशभूषा के विषय में बताते हुए कहती हैं कि कृष्ण पीताम्बरधारी हैं जिनके सिर पर मोरमुकुट है और वे गले में वैजन्ती माला धारण करते हैं और वृंदावन में मुरली बजाते हुए गाएँ चराते हैं। मीरा कृष्ण को यमुना तट पर आधी रात को मिलने आने को कहती हैं क्योंकि वे कृष्ण से मिलने को व्याकुल हैं और उन्हीं को अपना सर्वस्व मानती हैं।
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