मीरा का संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए मीरा के पदों की चित्रात्मक प्रस्तुति कीजिए।
- मीरा का जीवन परिचय तथा चित्र
- रचनाओ के नाम
-पदों से संबंधित चित्र तथा संक्षिप्त व्याख्या
मूल्यांकन उपरोक्त बिंदुओ के आधार पर किया जाएगा ।
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मीरा का संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए मीरा के पदों की चित्रात्मक प्रस्तुति कीजिए।
मीरा जी का जन्म 1948 ई . में राजस्थान में हुआ था | उनका विवाह सन 1516 ई . में राना सांगा के पुत्र भोजराज से हुआ था | मीरा श्री कृष्ण की भक्त थी | उसकी भक्ति की कोई तुलना नहीं कर सकता | कृष्ण भक्ति की अनन्य प्रेम भावनाओं में अपने गिरधर के प्रेम में रंग राती मीरा का दर्द भरा स्वर अपनी अलग पहचान रखता है। कृष्ण के प्रति भक्ति-भावना मीरा में बचपन में ही हो गया था। किसी साधु से मीरा ने कृष्ण की मूर्ति प्राप्त कर ली थी।
मीरा बाई भक्तिकाल की एक ऐसी संत हैं, जिनका सब कुछ कृष्ण के लिए समर्पित था। यहां तक कि कृष्ण को ही वह अपना पति मान बैठी थी। मीराबाई ने बहुत से दोहे और भजन लिखे ही जिस में उन्होंने कृष्ण की भक्ति क वर्णन किया है |
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरों न कोई।
जाके सिर मोर मुकट मेरो पति सोई।।
श्री कृष्ण को अपना पति कह रही हैं- उनका कहना है कि उन्होंने पूरी तरह से खुद को श्री कृष्ण को समर्पित कर दिया है और श्री कृष्ण की भक्ति ही अब उनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य है-
मीराबाई के पद सुनकर उनकी भक्ति देखने को मिलती है | किस तरह वह सच्चे से दिल से उनकी भक्ति करती थी |
मीराबाई की प्रमुख रचनाएँ :
- गीत गोविन्द टीक
- सोरठा के पद
- राग गोविन्द
- नरसी जी रो मायरो।
मीराबाई ने अपने पदों और रचनाओं में गुजराती और शुद्द ब्रजभाषा , पंजाबी का प्रयोग किया गया है |
मीरा की कृष्ण भक्ति आज के युग में प्रासंगिक है। आज के युग में प्रेम, स्नेह, त्याग इत्यादि को बिलकुल खत्म नहीं किया जा सकता , बहुत से लोग आज भी प्रेम , धर्म अध्यात्मिक शिक्षा से जुड़े हुए है | आज भी लोग भक्ति करते है |
मीरा की कृष्ण भक्ति इसलिए प्रासंगिक है क्योंकि लोग आज प्रेम, त्याग, स्नेह, करुणा में विश्वास करते है , और भक्ति करते है |