मेरा प्रिय विषय पर निबंध
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हमारे पाठ्यक्रम में कई विषय होते हैं, जिसमें से कुछ विषय हमें उबाऊ लगते है, तो कुछ को हम बिना रूके बिना थके घंटो तक पढ़ सकते है, ऐसे ही विषय को प्रिय विषय की संज्ञा दी गयी है। जहां कइयों को गणित बहुत रूलाती है, तो वहीं कुछ को गणित से खेलने में बड़ा मजा आता है। ये हमेशा एक-सा नहीं रहता, समय और रूचि के अनुसार उम्रभर बदलता रहता है, जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं, हमारी आवश्यकताएं बदलती जाती है, उसी के अनुरूप हमारे शौक और पसंद भी बदल जाते है। यहां हम ‘मेरा प्रिय विषय’ पर छोटे तथा बड़े दोनों प्रकार के शब्द सीमाओं में बंधे निबंध उपलब्ध करा रहे हैं, आप अपनी आवश्यकतानुसार चुन सकते हैं।
जब नर्सरी में मेरा दाखिला हुआ, मुझे स्कूल जाना बिल्कुल पसंद नहीं था। लेकिन जैसे-जैसे मेरी दोस्ती रंगो से हुई, मैने स्कूल को ही अपना घर और रंगो को अपना दोस्त बना लिया, बस फिर क्या था, मै दिनभर कक्षा में चित्रकारी ही किया करती थी, और सिर्फ स्कूल में ही नहीं, घर में भी। मुझे अलग-अलग रंगो से खेलना बहुत भाता था, और इस तरह मै हर समय व्यस्त भी रहती थी, और मेरे माता-पिता को मुझे सम्भालने के लिए ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी पड़ती थी। वो मुझे अलग-अलग प्रकार के रंग दिया करते थे।
Answer:
जब नर्सरी में मेरा दाखिला हुआ, मुझे स्कूल जाना बिल्कुल पसंद नहीं था। लेकिन जैसे-जैसे मेरी दोस्ती रंगो से हुई, मैने स्कूल को ही अपना घर और रंगो को अपना दोस्त बना लिया, बस फिर क्या था, मै दिनभर कक्षा में चित्रकारी ही किया करती थी, और सिर्फ स्कूल में ही नहीं, घर में भी। मुझे अलग-अलग रंगो से खेलना बहुत भाता था, और इस तरह मै हर समय व्यस्त भी रहती थी, और मेरे माता-पिता को मुझे सम्भालने के लिए ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी पड़ती थी। वो मुझे अलग-अलगचित्रकारी से मेरा लगाव
इसका पूरा श्रेय मेरी कक्षा-अध्यापिका को जाता है। ये उन्ही की देन थी जिस कारण मेरा रूझान इस ओर हुआ। उनका चीजों को समझाने का तरीका इतना शानदार होता था, कि ना चाहते हुए भी आपका मन उस विषय में रम जाए। वो हर चीज को बड़े ही रचनात्मक तरीके से कहानी के माध्यम से बड़े ही रोचक तरीके से वर्णन करती थी, जिससे मन में हर वस्तु की छवि उभर जाती थी। मुझे हर वस्तु को रंगो में पिरोना अच्छा लगता था, धीरे-धीरे यह मेरा पसंदीदा विषय बन गया।
जैसे-जैसे मेरी उम्र बढ़ी, मुझे चित्रकारी की अलग-2 विधाओं से प्रेम होने लगा। मेरी अध्यापिका ने मुझे अलग-अलग चित्रण शैली से अवगत कराया, जिसमें मुख्यतः रेखीय चित्रण, कांच-चित्रण, एवम् तैलीय चित्रण है। मै ग्रीष्म-कालीन विविध प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेती थी और ईनाम भी जीतती थी।
पर्यावरणीय अध्ययन - अन्य प्रिय विषय
बड़ी कक्षाओं में पहुंचकर हमें कुछ नये विषयों के बारे में भी पता चला, जिससे ध्यानाकर्षण नये-नये विषयों में हुआ। मुझे इन सबमें पर्यावरणीय अध्ययन ने सबसे ज्यादा आकर्षित किया। ड्राइंग के बाद ये दूसरा ऐसा विषय था जिसने मुझे सबसे अधिक आकृष्ट किया, क्योकि ये भी हमे प्रकृति से जोड़ कर रखने और उसके बारे मे जानने का अवसर प्रदान किया। इससे हमे पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, जल, वायु आदि के बारे में जानकारी मिलती है।
निष्कर्ष
पर्यावरणीय अध्ययन में पर्यावरण का अध्ययन होता है, और साथ ही चित्रकारी करने को भी मिलती है, इसलिए ये दोनो विषय मुझे सर्वाधिक प्रिय है। प्रकार के रंग दिया करते थे।