मेरे पितृ पितामहों के गृह वेदाध्यायियों से भरे रहते थे । उनके घर की शुक - सारिकाएँ भी विशुद्ध मंत्रोच्चारण कर लेती थीं और यद्यपि लोगों को यह बात अतिशयोक्ति अँचेगी परन्तु यह सत्य है कि मेरे पूर्वजों के विद्यार्थी उनकी शुक - सारिकाओं से डरते रहते थे । वे पद - पद पर उनके अशुद्ध पाठों को सुधार दिया करती थीं । हमारे पूर्वजों के घर यज्ञ धूम से धूमायित रहते थे । परन्तु यह सब मेरी सुनी हुई कहानी है ।
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मेरे पितृ पितामहों के गृह वेदाध्यायियों से भरे रहते थे । उनके घर की शुक - सारिकाएँ भी विशुद्ध मंत्रोच्चारण कर लेती थीं और यद्यपि लोगों को यह बात अतिशयोक्ति अँचेगी परन्तु यह सत्य है कि मेरे पूर्वजों के विद्यार्थी उनकी शुक - सारिकाओं से डरते रहते थे । वे पद - पद पर उनके अशुद्ध पाठों को सुधार दिया करती थीं । हमारे पूर्वजों के घर यज्ञ धूम से धूमायित रहते थे । परन्तु यह सब मेरी सुनी हुई कहानी है ।
✎... यह उद्धरण बाणभट्ट की आत्मकथा से लिया गया है, जिसमें लेखक बाणभट्ट अपने बारे में बताते हुए कहते हैं कि बाणभट्ट नाम से भले ही वे प्रसिद्ध हैं, लेकिन यह उनका वास्तविक नाम नहीं है। इसके बाद वे अपने पिता और पितामह के विषय में बताते हुए अपने घर के वातावरण का वर्णन करते हैं।
बाणभट्ट संस्कृत भाषा के एक प्रसिद्ध साहित्यकार रहे हैं। बाणभट्ट सातवीं शताब्दी के प्रसिद्ध संस्कृत गद्य लेखक और कवि रहे हैं, जिन्होने अनेक प्रसिद्ध ग्रंथों की रचना की थी, जिनमें हर्ष चरितम् और कादंबरी नामक ग्रंथ प्रमुख हैं। वह राजा हर्षवर्धन के समकालीन कवि थे और उनके राजदरबार में आस्थान कवि थे।
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