English, asked by asa1028, 6 months ago

मेरे सभी दोस्तों को मेरा सादर प्रणाम। देखिए दोस्तों इस वक्त मुझे आपकी मदद की सबसे ज्यादा जरूरत है। मैं चाहती हूं कि मेरे इस प्रश्न का उत्तर सभी लोग दें , ताकि मैं थोड़े थोड़े पॉइंट्स सभी से लेकर अपना पूरा आंसर तैयार कर सकूं ।दरअसल कल मुझे अपनी स्कूल की असेंबली में स्पीच बोलनी है जो कि हमारी ऑनलाइन होती है और उसमें मेरे पास टॉपिक है * सत्यमेव जयते * और उसके लिए मैं काफी कुछ सोच रखा है लेकिन मैं चाहती हूं कि मैं अपने भारतवासियों से भी कुछ इसकी सलाह ले लूं , क्योंकि हमारे भारत में अशोक चक्र के नीचे लिखा गया है सत्यमेव जयते और इसका काफी ज्यादा योगदान है ..... आप मेरी सहायता कीजिए तो..... मैं बड़े ही शौक से आपके उत्तर का इंतजार कर रही हूं और जल्दी से मुझे फटाफट सारे आंसर भेजिए ।
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All answers are welcome.
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Faltu answers mt bajhgna.
****It's Emergency. ​

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Answered by FireSt0ne
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Explanation:

भारतीय शासन के ध्येय वाक्य ‘सत्यमेव जयते ‘ के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं कि इसे भारत के राष्ट्रीय पटल पर स्थापित कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पंडित मदन मोहन मालवीय जी हैं । जिन्होंने कांग्रेस के अध्यक्ष रहते हुए 1918 में इसे ‘ध्येय वाक्य’ बनाकर चलने की प्रेरणा तत्कालीन कांग्रेसियों को दी थी । ‘सत्यमेव जयते’ की परंपरा में विश्वास रखने का अभिप्राय है कि हम उस सत्य के उपासक हैं जो कि समस्त चराचर जगत का आधार है। हम शरीर की साधना में नहीं बल्कि आत्मसाधना में विश्वास रखते हैं , जो परमात्मा की साधना में परिवर्तित होकर हमें मोक्षाभिलाषी बनाती है।

‘सत्यमेव जयते’- यह मुंडकोपनिषद का मंत्र है । भारतीय सांस्कृतिक परंपरा में निष्णात रहे पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने इस धेय वाक्य को कांग्रेस को दिया तो स्वतंत्रता उपरांत यही ध्येय वाक्य भारतीय शासन का ध्येय वाक्य भी बना । ‘सत्यमेव जयते’ से हमें इस सत्य को भी समझने में सहायता मिली कि प्रत्येक व्यक्ति जन्म से स्वतंत्र उत्पन्न होता है। अतः प्रत्येक व्यक्ति को स्वतंत्र सोचने , जीवन यापन करने और अपना सर्वांगीण विकास करने का नैसर्गिक अधिकार है । भारत ‘सत्यमेव जयते’ की इसी परम्परा के प्रति समर्पित राष्ट्र के रूप में प्राचीन काल से अपना स्थान बनाने में सफल रहा था । इसी परम्परा ने उसे स्वतंत्रता को हड़पने वाली विदेशी शक्तियों के विरुद्ध उठ खड़ा होने के लिए प्रेरित किया। पंडित मदन मोहन मालवीय जैसे संस्कृति पुरुष से यही अपेक्षा की जा सकती थी कि वह भारत की चेतना के इस मूल स्वर को तत्कालीन भारतीय समाज को समझाते और इसकी क्रांतिकारी स्वर लहरियों से भारत को आंदोलित करते।

शास्त्रों में आत्मा, परमात्मा, प्रेम और धर्म को सत्य माना गया है। इसका अभिप्राय है कि जहाँ आत्मा , परमात्मा , धर्म और प्रेम की बात होती हो वहाँ जीत होती है । बात स्पष्ट है कि जहाँ धर्मनिरपेक्षता हो अर्थात धर्म से दूरी बनाकर चलने की भावना हो , वहाँ जय न् होकर पराजय होती है । ‘ सत्यमेव जयते ‘ को भारत के शासन का ध्येय वाक्य बनाना एक अलग बात है परंतु ‘ सत्यमेव जयते ‘ की परम्परा के गूढ़ और रहस्यपूर्ण अर्थ को न समझना एक अलग बात है । निश्चित रूप से ‘सत्यमेव जयते ‘ की परम्परा के वास्तविक और रहस्यपूर्ण अर्थ को समझकर चलने की परम्परा का भी भारत में आगे बढ़ना नितांत आवश्यक था ।

राजनीति में अशिक्षित और गुणहीन लोगों को राजनीतिक दलों के द्वारा थोक के भाव में भरा गया और अधर्मी , नीच , पापी और अपराधी प्रकृति के लोगों को संसद और विधानसभाओं में भेजा गया।

यह भी मानना पड़ेगा कि तथाकथित हिंदूवादी दलों के पास भी भारतीय संस्कृति , धर्म और इतिहास की विशुद्ध परम्परा को समझने वाले जनप्रतिनिधियों का अभाव रहा। जिसका परिणाम यह निकला कि ‘ सत्यमेव जयते ‘ केवल दीवारों पर लिखा गया ध्येय वाक्य मात्र बनकर रह गया । उसकी भावना हमारे शासन , शासन की नीतियों और परम्पराओं में विकसित नहीं हो पाई । हमने सत्य को अर्थात धर्म को ही ‘अफीम’ कहना आरंभ कर दिया। अफीम , भांग और गांजा पीने वाले को धर्म वैसे ही प्रिय नहीं होता जैसे चोर को घर में जलता हुआ दीपक प्रिय नहीं होता।

कहा जाता है कि सत्य से बढ़कर कुछ भी नहीं। सत्य के साथ रहने से मन हल्का और प्रसन्न चित्त रहता है। मन के हल्का और प्रसंन्न चित्त रहने से शरीर स्वस्थ और निरोगी रहता है।

सत्यमेव जयते (संस्कृत विस्तृत रूप: सत्यं एव जयते) भारत का राष्ट्रीय आदर्श वाक्य है। इसका अर्थ है : सत्य ही जीतता है / सत्य की ही जीत होती है। यह भारत के राष्ट्रीय प्रतीक के नीचे देवनागरी लिपि में अंकित है। यह प्रतीक उत्तर भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश में वाराणसी के निकट सारनाथ में 250 ई.पू. में सम्राट अशोक द्वारा बनवाये गए सिंह स्तम्भ के शिखर से लिया गया है, लेकिन उसमें यह आदर्श वाक्य नहीं है। ‘सत्यमेव जयते’ मूलतः मुण्डक-उपनिषद का सर्वज्ञात मंत्र 3.1.6 है। पूर्ण मंत्र इस प्रकार है:—

सत्यमेव जयते नानृतम सत्येन पंथा विततो देवयानः।येनाक्रमंत्यृषयो ह्याप्तकामो यत्र तत् सत्यस्य परमम् निधानम्॥

Answered by tashukhandelwal2606
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sorry I didn't read this

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