Political Science, asked by kundankumarno47, 5 months ago

मुस्लिम सांप्रदायिकता क्या है​

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Answered by sus17
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बंटवारे के बाद भारत में मुस्लिम फिरकापरस्ती का आधार कमजोर पड़ने लगा, क्योंकि मुस्लिम बिरादरी कुल मिलाकर यह समझ गयी कि साम्प्रदायिकता के जाल में फंसने पर उसी बिरादरी का सबसे ज्यादा नुकसान होता है, जो उस कुचक्र को समझ नहीं पाती।

साथ ही भली बात यह थी कि साम्प्रदायिक कीड़ा कमोबेश शहरी लोगों के दिमाग में ही घुसा था और गाँवों में रहने वाली आबादी इससे दूर थी और पारंपरिक तरीके से मिल जुल कर ही रहती आ रही थी। अगर यह ना होता तो देश भयंकरतम गृह युद्ध में फंस जाता।

यह जरूर हुआ कि मुस्लिम चेतना में एक तरह का अफ़सोस और रक्षात्मकता जरूर आ गयी और उनमें एक अघोषित डर पैठ कर गया। वे यह तो समझ गए कि पाकिस्तान एक झूठ पर खड़ा किया गया था और भारत ही उनका सब कुछ मुस्तकबिल है, लेकिन पाकिस्तान के प्रति उनका एक भावनात्मक रिश्ता सा रहा, क्योंकि लकीरें खींच देने से देश नहीं बनते और ना ही सब खत्म हो जाता है।

सच पूछिये तो वो सारे भारतीय, जिनका लाहौर कराची या पाकिस्तान के दूसरे हिस्सों से जुड़ाव था, वो भी अपने भावनात्मक रिश्ते खत्म न कर सके।

जो बिरादरी लगातार एक अलगाव बोध, भावनात्मक असुरक्षा और आत्मविश्वासहीनता से गुजरती है, उसकी धर्म और धर्म की कर्मकांडीय अवधारणाओं पर निर्भरता बढ़ने लगती है। बंटवारे के बाद मुस्लिम बिरादरी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ।

लेकिन याद रखने की जरूरत है कि इन सब कारणों से मुस्लिम समाज घोर साम्प्रदायिक हुआ हो ऐसा नहीं। हाँ, उनमें एक जटिल तरह की धार्मिकता जरूर जम गयी, जिस कारण से उनमें धार्मिक सुधार के प्रति रुझान में कमी आई।

हिन्दू साम्प्रदायिकता आजादी के बाद लगातार उग्र और बढ़ती रही और चूँकि उसका मुख्य आधार मुस्लिम विरोध ही था, इसलिए भी उपरोक्त वर्णित परिस्थितियों से निपटना मुस्लिम बिरादरी के लिए और कठिन हो गया।

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