मातृभाषा भाषा का महत्व
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आज दुनिया के लगभग 170 देशों में किसी न किसी रूप में हिन्दी पढ़ायी जाती है। विश्व के 32 से अधिक देशों के विश्वविद्यालयों में संस्कृत पढ़ाई जा रही है। इंग्लैण्ड के सेंट जेम्स विद्यालय में 6 वर्ष तक संस्कृत पढ़ना अनिवार्य है। पहले भारत में भी जहां कहीं हिन्दी का विरोध (राजनैतिक आदि कारणो से) था या जहां हिन्दी का प्रयोग कम माना जाता था जैसा कि तमिलनाडु, मिजोरम, नागालैण्ड आदि। अब इन राज्यों में भी हिन्दी बोलने-सिखाने हेतु हिन्दी स्पीकिंग क्लासेस बड़ी मात्रा में प्रारंभ हुए हैं। अरूणाचल राज्य की एक प्रकार से राजभाषा हिन्दी है तथा नागालैण्ड राज्य ने द्वितीय राजभाषा करके हिन्दी को मान्यता दी है। दक्षिण हिन्दी प्रचार सभा, मद्रास, राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा आदि की हिंदी परीक्षाओं में भारी संख्या में लोग सहभागी हो रहे है। वास्तव में भारतीय भाषाओं को अंग्रेजी से चुनौती नहीं है, बल्कि अंग्रेजी मानसिकता वाले भारतीयों से है। हमें हिन्दी की या भारत की किसी भाषा की वकालत नहीं करनी है, लेकिन राष्ट्रहित की दृष्टि से जो वैज्ञानिक एवं तर्कसम्मत है, उसकी वकालत अवश्य करनी है।
मातृभाषा सीखने, समझने एवं ज्ञान की प्राप्ति में सरल है। पूर्व राष्ट्रपति डॉ अब्दुल कलाम ने स्वयं के अनुभव के आधार पर कहा है कि ‘‘मैं अच्छा वैज्ञानिक इसलिए बना, क्योंकि मैंने गणित और विज्ञान की शिक्षा मातृभाषा में प्राप्त की (धरमपेठ कॉलेज नागपुर)।’’ अंग्रेजी भाषा माध्यम में पढ़ाई में अतिरिक्त श्रम करना पड़ता है। मेडिकल या इंजीनियरिंग पढ़ने हेतु पहले अंग्रेजी सीखनी पड़ती है बाद में उन विषयों का ज्ञान प्राप्त होता है। पंडित मदन मोहन मालवीय अंग्रेजी के ज्ञाता थे। उनकी अंग्रेजी सुनने अंग्रेज विद्वान भी आते थे ।लेकिन उन्होंने कहा था कि‘‘मैं 60 वर्ष से अंग्रेजी का प्रयोग करता आ रहा हूँ, परन्तु बोलने में हिन्दी जितनी सहजता अंग्रेजी में नहीं आ पाती।