माता पिता और बड़ों का सम्मान पर निबंध
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मनुष्य की जीवन यात्रा का आरम्भ जन्म से होता है और समाप्ति मृत्यु पर होती है। जन्म के समय वह प्रायः पूर्ण रूप से अज्ञानी होता है। मात्र उसके पास स्वाभाविक ज्ञान होता है और पूर्व जन्म का प्रारब्ध वा संस्कार। पूर्व जन्म के संस्कारों से उसकी प्रवृति बनती हैं जिसे माता-पिता व आचार्य मिलकर अभीष्ट उद्देश्य या लक्ष्य की ओर प्रवृत कर उसे सिद्ध करने में अहम् भूमिका निभाते हैं। प्रवृति को बदला जा सकता है यदि हमें अपने से अधिक ज्ञान, संस्कार व आचारवान, अनुभवी व ज्ञानी लोग मिल जायें और वह हमें समय-समय पर या निरन्तर दिशानिर्देश करते रहें। हमारे स्वयं के अन्दर भी जानने व सत्य को ग्रहण करने का स्वभाव, प्रवृति व रूचि होनी चाहिये। यदि ऐसा नहीं होगा तो फिर हमारे जीवन की भावी दिशा जीवन के उद्देश्य को पूरा करने में सफल नहीं होगी। संसार में हमें जीवन का लक्ष्य निर्धारित करना है और उसकी प्राप्ति के लिए योग्य आचार्य या निर्देशक-गाइड को नियुक्त कर उससे निर्देश व दिशा प्राप्त कर उस पर चिन्तन कर सावधानीपूर्वक चलना है और समय-समय पर उस पर पूरा ध्यान व विचार करते हुए उसमें जहां भी परिवर्तन व संशोधन अपेक्षित हों, करना होता है। हमारे जो माता-पिता व आचार्य हैं, वह कौन हैं ? यह वो लोग हैं जिन्होंने अपने जीवन में आचार्यों, अनुभवी व ज्ञानियों तथा बड़े-बड़े ज्ञानी बुजुर्गों की संगति व निकटता प्राप्त की होती है व अनेक विषयों के ग्रन्थों को पढ़ा होता है। उन्हें जीवन के बारे में जो जानकारियां होती हैं, वह कम आयु के लोगों में नहीं होती। उनका सान्निध्य हमारे लिए वरदान होता है। जब यदा-कदा हम उनके सम्पर्क में आते हैं तो हमारा कार्य उनसे संवाद कर उनकी सेवा करना होना चाहिये। सेवा में उनकी आवष्यकता की वस्तुयें यथा भोजन, वस्त्र, मार्ग व्यय, या यात्रा आदि कुछ धन व द्रव्य आदि देने होते हैं। इससे प्रसन्न होकर वह सेवा करने वालों को आशीर्वाद के साथ अपने ज्ञान व अनुभव से लाभ प्रदान करते हैं। इसे संगतिकरण कहा जाता है। प्राचीन काल में हमारे यहां इस संगतिकरण को यज्ञ कहा जाता था इसका कारण था कि यज्ञ में बड़े ज्ञानी व अनुभवियों को आमंत्रित कर उनका सत्कार किया जाता था। वह अपना आशीर्वाद प्रवचन व उद्बोधन के रूप में देते थे जिससे यजमान व सभी यज्ञ में सम्मिलित लोगों को लाभ होता था। यहां हम एक उदाहरण लेते हैं। मान लीजिए कि एक जगह अग्निहोत्र यज्ञ हो रहा है जिसमें एक चिकित्सक – डॉक्टर या वैद्य, एक भवन निर्माता इंजीनियर, एक आध्यत्मिक विद्वान तथा एक आचार्य – अध्यापक उपस्थित हैं। सबको बीस-बीस मिनट का समय प्रवचन या उद्बोधन के लिए दिया जाता है।
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