मिट्टी खोदना और भारी चरण कमल में क्या व्यंग छुपा हुआ है?
from class 9th Ch 7 tum kab jaoge atithi?
Answers
दिन तक नहीं गया तो लेखक के व्यवहार में क्या-क्या परिवर्तन आए? क्या यह परिवर्तन सही थे?
बातचीत की उछलती गेंद चर्चा के क्षेत्र के सभी कोनों से टप्पे खाकर फिर सेंटर में आकर चुपचाप पड़ी हैं – तुम कब जाओगे अतिथि पाठ के आधार पर कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
Ch-3 तुम कब जाओगे अतिथि
Answer
तीसरे दिन सुबह अतिथि ने लॉण्ड्री में कपड़े देने को कहा क्योंकि वह उससे कपड़े धुलवाना चाहता था।
अतिथि को असमय आया देख लेखक ने सोचा कि यह अतिथि अब पता नहीं कितने दिन रुकेगा और इसके रुकने पर उसका आर्थिक बजट भी खराब हो जाएगा। इसका अनुमान लगाते ही लेखक का दृश्य किसी अज्ञात आशंका से धड़क उठा।
अतिथि के जाने के इन्तजार में लेखक के दिन बहुत बेचैनी से बीत रहे थें।
लेखक अपने अतिथि को दिखाकर दो दिनों से तारीखें बदल रहा था। ऐसा करके वह अतिथि को यह बताना चाह रहा था कि उसे यहाँ रहते हुए चौथा दिन शुरू हो गया है। तारीखें देखकर शायद उसे अपने घर जाने की याद आ जाए।
यदि अतिथि थोड़ी देर तक टिकता है तो वह देवता रूप बनाए रखता है, पर फिर वह मनुष्य रूप में आ जाता है। उसका मान-सम्मान होता है, और ज्यादा दिन तक टिकने पर वह राक्षस का रूप ले लेता है। तब वह राक्षस जैसा बुरा प्रतीत होता है।
अतिथि के दूसरे दिन भी ठहर जाने के उपरान्त लेखक ने दोपहर के भोजन को लंच की गरिमा प्रदान की और रात्रि में सिनेमा दिखाया। लेखक ने सोचा कि इसके बाद तुरंत भावभीनी विदाई होगी। वह अतिथि को विदा करने स्टेशन तक जाएँगे। इसी आशा के साथ लेखक ने दूसरे दिन भी अतिथि का सत्कार किया।
जब अतिथि चार दिन तक नहीं गया तो उसकी आवभगत में कमी आई। लेखक के व्यवहार में परिवर्तन आ गया। सौहार्द धीरे-धीरे बोरियत में बदल गया। शब्दों का लेन-देन मिट गया और चर्चा विषय खत्म हो गए। बढ़िया लंच और डिनर ने खिचड़ी का स्थान ले लिया। लेखक को अतिथि थोड़ा-थोड़ा राक्षस प्रतीत होने लगा। यहाँ तक कि लेखक का मन उसे गेट आउट कहने को करने लगा। अतिथि के कई दिन तक रुकने पर घर का बजट बिगड़ जाता है। महँगाई के जमाने में जब अपना परिवार पालना कठिन होता है तब अतिथि का खर्च उठाते-उठाते मेहमान के प्रति व्यवहार में परिवर्तन आना स्वाभाविक है।
लेखक ने अतिथि से घर-परिवार, दोस्तों, नौकरी, राजनीति, फिल्म, साहित्य, परिवार नियोजन, महँगाई और पुरानी प्रेमिकाओं तक के विषय में काफी बातें कर ली थीं। अब उनके सारे विषय खत्म हो चुके थे। बातचीत रूपी गेंद विषय रूपी कमरे के सारे कोनों को छू आई थी और अब वह शांत पड़ी थी। इस सबका कारण अतिथि का लेखक के घर लंबे समय तक रुकना था। लेखक को लगने लगा था कि यदि अतिथि का मन बातों में ज्यादा ही रम गया तो वह और जम जाएगा और फिर एक ही बात करते-करते उसे बोरियत भी होने लगी थी। इसलिए उनकी बातचीत पर विराम लगा हुआ था। यदि अतिथि समय से खुशी-खुशी चला जाता, तो यह स्थिति कभी उत्पन्न नहीं होती।
मिट्टी की आभा धूल है। मिट्टी की पहचान धूल से होती है।
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