मिट्टी और बीज से संबंधित और भी कविताएंँ हैं, जैसे सुमित्रानंदन पंत की 'बीज' | अन्य कवियों की ऐसी कविताओं का संकलन कीजिए और भित्ति पत्रिका में उनका उपयोग कीजिए।
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मिट्टी और बीज से संबंधित कविताएंँ
सृष्टि – सुमित्रानंदन पंत
मिट्टी का गहरा अंधकार,
डूबा है उस में एक बीज
वह खो न गया, मिट्टी न बना
कोदों, सरसों से शुद्र चीज!
उस छोटे उर में छुपे हुए
हैं डाल–पात औ’ स्कन्ध–मूल
गहरी हरीतिमा की संसृति
बहु रूप–रंग, फल और फूल!
वह है मुट्ठी में बंद किये
वट के पादप का महाकार
संसार एक! आशचर्य एक!
वह एक बूंद, सागर अपार!
बंदी उसमें जीवन–अंकुर
जो तोड़ निखिल जग के बंधन
पाने को है निज सत्त्व, मुक्ति!
जड़ निद्रा से जग, बन चेतन
आः भेद न सका सृजन रहस्य
कोई भी! वह जो शुद्र पोत
उसमे अनंत का है निवास
वह जग जीवन से ओत प्रोत!
मिट्टी का गहरा अंधकार
सोया है उसमें एक बीज
उसका प्रकाश उसके भीतर
वह अमर पुत्र! वह तुच्छ चीज?
बीज मिट्टी में जा मिला / कैलाश पण्डा
बीज मिट्टी में जा मिला
श्रद्धा का पात्र बन गया
तुमने जाना
बलिदान दिया उसने
सत्य ही तो है
किन्तु मैं तो यही कहूंगा
मिट्टी को पहचान लिया
उसके सानिध्य को पाकर
वह वृक्ष बन गया
मंगल करता सर्वत्र
फल देता मधुर
रसास्वादन लेता जन-जन
तप्त धूप में
पथिक लेता विश्राम
सूक्ष्म कीट पतंग
कितने ही पलते
पंछी बनाते नीड़
वन वाटिका विकसती
बीज मिट्टी में जा मिला
तुम्हारे लिए।
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