Hindi, asked by subhashata, 15 days ago

मृत्युजय और संघभित्र की मित्रता पाटलिपुत्र के जन - जन की जानी बात थी। मृत्युजय
जन-जन द्वारा धन्वन्तरि की उपाधि से विभूरिषत वेद्य थे ओर संघमित्र समस्त उपधियों से विमुक्त
"भिक्षु । मृत्युंजय चरक और सृश्रुत को समर्पित थे तो संघमित्र बुद्ध के संघ और धर्म को प्रथम का जीवन
को सम्पन्नता और दीर्घायुष्य में विश्वास था तो द्वितीय का जीवन के निराकरण और निर्वाण में दोनों ट
चिपरीत तटों के समान थे, फिर भी उनके मध्य बहने वाली स्नेह-सरिता उन्हें अभिन्न बनाए रखती थी।
यह आश्चर्य है कि जीवन के उपासक वैद्यराज को उस निर्वाण के लोभी के बिना चौन ही नहीं था, पर
यह परम आश्चर्य था कि समस्त रोगों को मलों की तरह त्यागने में विश्वास रखने वाला भिक्षु भी वैद्यराज
के मोह में फंस अपने निर्वाण को कठिन से कठिनतर बना रहा था। वैद्यराज अपनी वार्ता में संघमित्र से
कहते निर्वाण (मोक्ष) का अर्थ है आत्मा को मृत्यु पर विजय संघमित्र हँसकर कहते ह द्वारा मृत्यु पर विजय
मोक्ष नहीं है। देह तो अपने आप में व्याधि है। तुम देह की व्याधियों को दूर करके कष्टों से छुटकारा नहीं
दिलाते बल्कि कष्टों के लिए अधिक सुर्याग जुटाते हो। देह व्याधि से मुक्त हो भगवान की शरण में है।
वैद्यराज ने कहा- मैं तो देह को भगवान के समीप जीते जी बने रहने का माध्यम मानता हूँ, पर दृष्टियों
का यह विरोध उनकी मित्रता के मार्ग में कभी बाधक नहीं हुआ। दोनों अपने कोमल हास और मोहक स्वर
से अपने-अपने विचारों को प्रस्तुत करते रहते।
गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित में से निर्देशानुसार सर्वाधिक उपयुक्त विकल्पों का चयन कीजिए
धंन्वन्तरि की उपाधि से विभूषित वैद्य.कौन थे ?
(अ) संघमित्र
(a) मृत्युंजय
'
निर्वाण का अर्थ लिखिए:-
आत्मा की मृत्यु पर विजय (ब) मोक्ष (स) संन्यास
अ और ब दोनों
(a)
"देह द्वारा मृत्यु पर विजय को मोक्ष नहीं मानते थे।
(अ) मनुष्य
संन्यासी
(स) संघमित्र
(द) दीर्घायुष्य
(iv) गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक है
(ब) देह व्याधि से मुक्ति
(स) दीर्घायुष्य एवं निर्वाण
जीवन में सम्पन्नता
मैं तो देह को भगवान के समीप जीते जी बने रहने का माध्यम मानता है' नामक वाक्य मं रेखांक्ति
पद में कारक बताइए-
(अ) कर्म कारक (ब) कर्ता कारक (स) सम्प्रदान कारक (द)
संबंध कारक
16 अंक
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Answers

Answered by shishir303
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दिए गए गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर इस प्रकार होंगे...

(i) धंन्वन्तरि की उपाधि से विभूषित वैद्य.कौन थे ?

➲ मृत्युंजय

(ii) निर्वाण का अर्थ लिखिए:-

➲ अ और ब दोनों (आत्मा की मृत्यु पर विजय) और (मोक्ष)

 

(iii) देह द्वारा मृत्यु पर विजय को मोक्ष नहीं मानते थे।

➲ संघमित्र

(iv) गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक है  

➲ (स) दीर्घायुष्य एवं निर्वाण

(v) ‘मैं तो देह को भगवान के समीप जीते जी बने रहने का माध्यम मानता है’ नामक वाक्य में रेखांकित  पद में कारक बताइए-

➲ कर्ताकारक

○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○

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