Hindi, asked by meenaramswaroop783, 9 months ago

मीठी वाणी के संदर्भ में दो मित्रों के बीच संवाद बताइए​

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Answered by ramaling256
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Answer:

बीसवीं सदी के प्रतिभाशाली ब्रह्माण्डविज्ञानी फ्रेड हॉयल ने बिट्रिश गणितज्ञ हरमान बांडी और अमेरिकी वैज्ञानिक थोमस गोल्ड के साथ संयुक्त रूप से ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति का सिद्धांत प्रस्तुत किया। यह सिद्धांत ‘स्थायी अवस्था सिद्धांत’ के नाम से विख्यात हैं। इस सिद्धांत के अनुसार, न तो ब्रह्माण्ड का कोई आदि हैं और न ही कोई अंत। यह समयानुसार अपरिवर्तित रहता हैं। यद्यपि इस सिद्धांत में प्रसरणशीलता समाहित हैं, परन्तु फिर भी ब्रह्माण्ड के घनत्व को स्थिर रखने के लिए इसमें पदार्थ स्वत: रूप से सृजित होता रहता हैं। जहाँ ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के सर्वाधिक मान्य सिद्धांत (महाविस्फोट का सिद्धांत) के अनुसार पदार्थों का सृजन अकस्मात हुआ, वहीं स्थायी अवस्था सिद्धांत में पदार्थोँ का सृजन हमेशा चालू रहता हैं।

यह भी रोचक बात हैं कि हॉयल,बाँडी और गोल्ड ने भूत-प्रेतों से समन्धित एक फिल्म से उत्प्रेरित होकर अंततः स्थायी अवस्था सिद्धांत को प्रतिपादित किया। इस फिल्म के सम्बन्ध में वर्णन करते हुए डॉ० सुबोध महंती ने लिखा हैं कि यह फिल्म चार भागों में विभाजित थी, परन्तु उनके खंडो को जोड़ने पर एक गोल घुमावदार कथानक सामने आया जिसका अंत ही उसका आरम्भ बन गया। इस फिल्म से हॉयल के मस्तिष्क में यह विचार कौंधा कि यह आवश्यक नही हैं कि अपरिवर्तित सदैव स्थाई या स्थिर रहे।

स्थाई अवस्था सिद्धांत चार प्रमुख अवधारणाओं पर आधारित हैं, जिसे सम्मिलित रूप से सम्पूर्ण ब्रह्माण्डीय सिद्धांत कहते हैं-

1-भौतिकीय नियम सर्वभौम होते हैं। इसका तात्पर्य यह हैं कि विज्ञान का कोई भी प्रयोग यदि एकसमान स्थितियों के अंतर्गत सम्पन्न किया जाए तो वह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में (कहीं पर भी) एक-समान परिणाम देगा।

2-पर्याप्त रूप से विराट ब्रह्माण्ड समांगी हैं।

3-ब्रह्माण्ड में कोई भी वरीय दिशा नही हैं अर्थात् समदैशिक हैं।

5-ब्रह्माण्ड सभी कालों में तत्वत: एकसमान रहता हैं।

हॉयल ने महाविस्फोट सिद्धांत के अवधारणाओं के साथ असहमति क्यों प्रकट की ? दरअसल हॉयल जैसे दार्शनिक प्रवृत्ति वाले व्यक्ति के लिए ब्रह्माण्ड के आदि या आरम्भ जैसे विचार को मानना अत्यंत कष्टदायक था। ब्रह्माण्ड के आरम्भ (सृजन)के लिए कोई कारण और सृजनकर्ता (कर्ता) होना चाहिये।

स्थाई अवस्था सिद्धांत ने यह प्रदर्शित करने का प्रयास किया कि किस प्रकार से ब्रह्माण्ड शाश्वत एवं अपरिवर्तित रहता हैं,जबकि उसका प्रसरण भी होता रहता हैं। एडविन हब्बल ने अभिरक्त-विस्थापन सबंधी अवलोकनों के पश्चात् यह निष्कर्ष निकाला कि जिन मंदकिनियों का हम अवलोकन करते हैं वे हमसे तथा एक-दूसरें से दूर भाग रही हैं। यदि अभिरक्त-विस्थापन की जगह बैंगनी-विस्थापन होता तो सारी मंदकिनियाँ हमारें नजदीक आ रही होतीं !

क्या आप जानते हैं कि ‘बिग-बैंग’ शब्द का गठन हॉयल ने ही किया था ! इसके सम्बन्ध में सुबोध महंती जी ने लिखा हैं :- कहा जाता हैं कि बिग-बैंग शब्द उस सिद्धांत का मजाक उड़ाने के लिए गढ़ा गया था जो सिद्धांत हॉयल के स्थायी अवस्था सिद्धांत से होड़ ले रहा था। परन्तु, इस शब्द को गढ़ते समय हॉयल के मस्तिष्क में ऐसा कोई विचार नही था। इसकी अभिव्यक्ति के पीछे अपने श्रोताओं को सिद्धांत के अवधारणाओं समझाने भर का था।

सन् 1993 में हॉयल,ज्याफ्रे बर्बिज़ तथा भारतीय ब्रह्माण्डविज्ञानी जयंत विष्णु नार्लीकर, सबके योगदान से संयुक्त रूप से स्थायी अवस्था सिद्धांत के नए रूप का प्रतिपादन किया गया। इस नए रूप को ‘क्वासी स्टेडी स्टेट कॉस्मोलोजी’ के नाम से जाना जाता हैं। इस नए सिद्धांत में यह बताया गया कि ब्रह्माण्ड के अंदर समय के विभिन्न अंतरालों में लघु क्षेत्रोँ में सृजनात्मक प्रकियायें चलती रहती हैं, जिसे ‘लघु विस्फोट’ या ‘लघु-सृजन घटनाएँ’ कहलाती हैं। इस सिद्धांत के अनुसार, सृजन की घटनाएँ अत्यंत प्रबल गुरुत्वाकर्षण से सम्बन्धित हैं। ऐसे ही एक सिद्धांत का निष्कर्ष हैं, जिसका प्रतिपादन डिराक,ब्रांस और डीकी,हॉयल तथा नार्लीकर ने किया था, कि समयानुसार गुरुत्वाकर्षण की प्रबल शक्ति शनैः-शनैः समाप्त हो रही हैं। इस सिद्धांत का भविष्य न्यूटनी गुरुत्वाकर्षण के स्थिरांक पर निर्भर हैं। इस सिद्धांत के अनुसार अपेक्षित गिरावट बहुत ही कम हैं लगभग एक खरब के कुछ भाग प्रतिवर्ष। नार्लीकर का दृढ़ विश्वास हैं कि भविष्य में लेजर जैसी आधुनिक तकनीके इस अत्यन्तं कम गिरावट का मापन करने में सक्षम सिद्ध होगी। यदि गिरावट नही दिखाई दी, तो आइंस्टीन के सामान्य सापेक्षता सिद्धांत (गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत)में परिवर्तन की कोई आवश्यकता नही होगी, परन्तु यदि गिरावट सिद्ध हुई तो यह महत्वपूर्ण सिद्धांत भी त्याज्य माना जाएगा।

स्रोत :-

1)- डॉ० सुबोध महंती द्वारा लिखित फ्रेड हॉयल की जीवनी

2)-जयंत विष्णु नार्लीकर द्वारा ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति पर दिया गया व्याख्यान

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