मैया मोरी! मैं नहिं माखन खायो।
भोर भए गैयन के पाछे, मधुबन मोहि पठायो।
चार पहर बंसीबट भटक्यो, साँझ परे घर आयो।
मैं बालक बहियन को छोटो, छींको केहि बिधि पायो।
ग्वाल-बाल सब बैर पड़े हैं, बरबस मुख लपटायो।
जिय तेरे कछु भेद उपजिहै, जानि परायो जायो।
यह ले अपनी लकुटि कमरिया, बहुतै नाच नचायो।
सूरदास, तब बिहँसि जसोदा, लै उर कंठ लगायो।।
Can you please tell the meaning
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यह पंक्तियां सूरदास द्वारा लिखी गई है। इसमें कवि श्री कृष्ण के नटखट चरित्र को दर्शाते हुए कहते हैं कि श्री कृष्ण अपनी माता से कह रहे हैं कि मैंने माखन नहीं खाया है। जब उनकी मां उनकी बात पर विश्वास नहीं करती हैं तो श्री कृष्ण तर्क देने लग जाते हैं। श्री कृष्ण तर्क देते हुए कहते हैं कि भोर होते ही आप मुझे मधुबन में गायों के साथ भेज देती हैं उन्हें चलाने के लिए और चार प्रहर बंसीवट में घूम कर शाम को ही घर आता हूं तो बताइए मैंने माखन कब खाया। दूसरा तर्क देते हैं कि वे अभी बहुत छोटे हैं और उनके हाथ भी छोटे हैं अतः उनके हाथ ऊपर रखे छींके तक नहीं पहुंच सकते हैं। वे अपनी मां से कहते हैं कि सभी ग्वाल और सभी बच्चे मेरे बहरी बन गए हैं वे जबरदस्ती मेरे मुख पर माखन लगा देते हैं और आप से शिकायत करते हैं कि मैंने माखन खाया है। अब श्री कृष्ण कहते हैं कि आप मुझे पराया समझती हैं इसीलिए उनकी बातों पर विश्वास कर लेती हैं और अब यह अपनी लाठी और चद्दर रख लीजिए आपने मुझे बहुत गायों के पीछे भगाया है अब मैं आपकी बात नहीं सुनूंगा और आपके कहने से कहीं नहीं जाऊंगा। सूरदास जी कहते हैं कि इतना सुनते ही यशोदा जी श्री कृष्ण को गले से लगा लेती हैं।
इन पंक्तियों में सूरदास जी ने श्री कृष्ण के बाल लीला को अद्भुत तरीके से दिखाया है।
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भावार्थ :--
श्यामसुन्दर बोले- `मैया ! मैंने मक्खन नहीं खाया है । सुबह होते ही गायों के पीछे मुझे भेज देती हो । चार पहर भटकने के बाद साँझ होने पर वापस आता हूँ। मैं
छोटा बालक हूँ मेरी बाहें छोटी हैं, मैं छींके तक कैसे पहुँच सकता हूँ? ये सब सखा मेरे से बैर रखते हैं, इन्होंने मक्खन जबरन मेरे मुख में लिपटा दिया। माँ तू मन की बड़ी भोली है, इनकी बातों में आ गई। तेरे दिल में जरूर कोई भेद है, जो मुझे पराया समझ कर मुझ पर संदेह कर रही हो। ये ले, अपनी लाठी और कम्बल ले ले, तूने मुझे बहुत नाच नचा लिया है। सूरदास जी कहते हैं कि प्रभु ने अपनी बातों से माता के मन को मोहित कर लिया. माता यशोदा ने मुसकराकर श्यामसुन्दर को गले लगा लिया ।