मछली पालन तथा मुर्गी पालन के महत्व को समझाइये।
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मछली पालन (Fishery)- मछली सरलता से प्राप्त होने वाली प्रोटीनयुक्त, उच्च पोषकयुक्त व सरलता से पचने वाला भोज्य स्रोत है। मछलियों के जलस्रोत समुद्री जल तथा ताजा जल (अलवणीय जल) हैं। अलवणीय जल तालाबों, झीलों व नदियों में होता है। इसलिए मछली पकड़ना तथा मछली पालन समुद्र तथा ताजे जल के पारिस्थितिक तंत्र में होता है। वर्तमान में भारत का विश्व में समुद्रीय भोजन उत्पादन की दृष्टि से छठा स्थान है। पश्चिम बंगाल, बिहार व उड़ीसा में पुराना मछली उद्योग है। मछलियों का उत्पादन खारे जल की तुलना में मीठे जल में अधिक होता है। अलवणीय (मीठा) जल में मछली पालन के लिए रोहू (Labeo rohita), कतला (Catla), मृगल (Cirrhinus moigla) आदि देशी मछलियों का उत्पादन किया जाता है। कुछ उद्योगों में विदेशी मछलियों जैसे-कॉमन कार्प (Cyprinus carpio) का उत्पादन भी किया जाने लगा है। जलाशय निर्माण की दृष्टि से चिकनी मिट्टी वाले स्थान को जलाशय निर्माण की दृष्टि से अच्छा माना जाता है। इस जलाशय का तापक्रम, प्रकाश, ऑक्सीजन, जल प्रवाह आदि नियंत्रित करके मछलियों का अधिक उत्पादन किया जा रहा है। प्राकृतिक भोजन जैसे-सूक्ष्मजलीय पादप व जन्तु एवं कृत्रिम जैसे चावल की भूसी, गेहूँ की चापड़, अनाज के टुकड़े आदि का भोजन दिया जाता है। विभिन्न प्रजनन स्थलों जैसे-गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र आदि से विशेष प्रकार के जाल की सहायता से अण्डों को एकत्रित किया जाता है। अण्डे से निकलने वाली छोटी मछलियों को जीरा कहते हैं । जीरा को नर्सरी जलाशयों में डाला जाता है, कुछ पश्चात ये जीरा अंगुलिकाओं में बदल जाता है। इन अंगुलिकाओं को बडे पात्रों में भरकर मछली पालन के जलाशयों में स्थानान्तरित कर दिया जाता है। संक्रमण से बचाव के लिए अंगुलिकाओं को कॉपर सल्फेट, पोटेशियम परमेंग्नेट, मैथिल ब्लू आदि से उपचारित किया जाता है। जलाशय से मछलियों को पकड़ने के लिए जालों का उपयोग किया जाता है। मुर्गीपालन (Poultry) - प्राचीनकाल से अण्डे व मांस (चिकन) खाने के लिए मुर्गीपालन की परम्परा रही है। यह उद्योग खाने के रूप में प्रोटीन आवश्यकता के एक बड़े अंश की पूर्ति करता है। विश्व में अण्डा उत्पादन की दृष्टि से भारत का पाँचवाँ स्थान है। मुर्गियों की अच्छी वृद्धि एवं स्वस्थ्य रखने के लिए उन्हें सुरक्षित आवास तथा पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराना अत्यन्त आवश्यक है। उनके भोजन में मक्का, जौ, बाजरा, गेहूँ, ज्वार आदि सम्मिलित किए जाते हैं। मुर्गियों से उत्पाद अच्छा प्राप्त करने के लिए अच्छी नस्लों की देशी एवं विदेशी मुर्गियाँ पाली जाती हैं। देशी नस्लों की तुलना में विदेशी नस्लों को अधिक पसन्द किया जाता है, क्योंकि विदेशी नस्लों से कम समय में अधिक अण्डे एवं माँस प्राप्त किया जा सकता है। मुर्गी की कुछ देशी अच्छी नस्लें इस प्रकार हैं जैसे-असील, करमंथ, बसरा, चटगाँव आदि तथा विदेशी अच्छी नस्लें जैसे—व्हाइट लेग हॉर्न (White leg horn), रोडे आइलैण्ड रेड (Rhode Island Red), प्लाईमाउथ रॉक (Phymouth rock) आदि हैं। मुर्गियों में एक वायरस जनित रानीखेत नामक प्रमुख रोग हो जाता है, जिससे इनकी मृत्यु दर अधिक होती है। चेचक, हैजा आदि रोगों से भी मुर्गियों के बचाव का पूरा ध्यान रखना होता है |