महिलाओं के प्रति रूढ़िवादी धारण क्या है
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इस अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर संयुक्त राष्ट्र ने सारी दुनिया से यह आह्वान किया है कि इस दिन को इस रूप में पेश किया जाना चाहिए, जिससे सबको यह संदेश मिले कि महिला सशक्तीकरण का अर्थ है मानवता का सशक्तीकरण. संयुक्त राष्ट्र ने दुनिया के सामने यह लक्ष्य रखा है कि साल 2030 तक स्त्री-पुरुष अनुपात को बराबरी के स्तर तक लाकर लैंगिक समानता के लक्ष्य को हासिल किया जाना चाहिए.
लेकिन, यह काम तब तक संभव नहीं है, जब तक हम अपने समाज को स्त्री-विरोधी सभी रूढ़िवादी विचारों से मुक्त करके स्त्री-पुरुष समानता के आधार पर एक स्वस्थ समाज का निर्माण नहीं करते. आज का दिन इसी की शपथ लेने का दिन है..
स्त्रियों को खुद आगे आना होगा
मैं सदा कहता आया हूं कि जब तक सार्वजनिक जीवन में भारत की स्त्रियां भाग नहीं लेती, तब तक हिंदुस्तान का उद्धार नहीं हो सकता. सार्वजनिक जीवन में वही भाग ले सकेंगी, जो तन और मन से पवित्र है. जिनके तन और मन एक ही दिशा में-पवित्र दिशा में चलते जा रहे हों. जब तक ऐसी स्त्रियां हिंदुस्तान के सार्वजनिक जीवन को पवित्र न कर दें, तब तक राम राज्य संभव नहीं है. जब स्त्री जाति हम पुरुषों के जाल से मुक्त होकर अपनी आवाज बुलंद करेगी और जब वह अपने लिए बनाये पुरुष कृत विधि विधानों के खिलाफ बगावत का झंडा खड़ा करेंगी, तब उसका वह बलवा- शांतिमय होने पर भी- किसी तरह कम कारगर न होगा.
पुरुषों ने स्त्रियों की जो उपेक्षा की है, उनका जो दुरुपयोग किया है, उसके लिए उन्हें पर्याप्त प्रायश्चित करना ही है. मगर सुधार का रचनात्मक कार्य तो उन्हीं बहनों को करना पड़ेगा, जो अंधविश्वास को छोड़ चुकी हैं और जिन्हें इस बुराई का ख्याल हो आया है. यह सही है कि हिंदुस्तान की स्त्रियों में किसी भी कुप्रथा के विरुद्ध युद्ध करने की शक्ति शेष नहीं रह गयी है. इसमें शक नहीं कि समाज की ऐसी स्थिति के लिए मुख्यत: पुरुष जिम्मेवार हैं. लेकिन, क्या स्त्रियां सारा दोष पुरुषों के माथे मढ़ कर अपनी आत्मा को हल्का रख सकती हंै?
सरला माहेश्वरी
पूर्व सांसद एवं लेखिका
भारत में समाज-सुधार के गौरवशाली इतिहास के बावजूद आज भी सच्चाई यही है कि हमारा समाज पुरातन स्त्री-विरोधी रूढ़िवादी विचारों से मुक्त नहीं हुआ है. इसी के चलते उस मानसिकता का जन्म होता है, जो निर्भया के बलात्कारी की मानसिकता है..
जर्मनी की विश्व प्रसिद्ध मार्क्सवादी सिद्धांतकार और महिलाओं के हितों की लड़ाई की एक अथक योद्धा रही हैं क्लारा जेटकिन. सन् 1911 में उन्होंने ही आठ मार्च के दिन पहले अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का पालन किया था. 8 मार्च, 1908 को न्यूयॉर्क की पंद्रह हजार से भी ज्यादा महिलाओं ने काम की दयनीय परिस्थितियों तथा पुरुषों की तुलना में कम वेतन के खिलाफ और मताधिकार की मांग को लेकर एक हड़ताल का पालन किया था.
Explanation:
मातृसत्तात्मक व्यवस्था वाले राज्यों में भी अपराधियों का राजनीतिकरण बढ़ा है. राजनीति में वहां भी, स्त्रियां परिधि पर हैं और निर्णायक स्थलों पर उनकी भूमिका गौण ही है. मेरे विचार से स्त्री के दमन, उत्पीड़न और शोषण के खिलाफ कानून बनने-बनाने में बड़ी बाधा है- राजनीति व सत्ता में ‘मर्दवादी’ नेताओं की षड्यंत्रपूर्ण चुप्पी और अपने अधिकारों के प्रति स्त्री आंदोलन का दिशाहीन भटकाव. 67 साल से दमित, शोषित आत्माओं की चीत्कार, न संसद को सुनाई देती है और न ही कोर्ट तक पहुंच पाती है. इसे (आधी दुनिया) का दुर्भाग्य कहूं या अपने ही पिता-पति और पुत्र का षड्यंत्र?
अरविंद जैन, स्त्री और यौन हिंसा पर महत्वपूर्ण काम.