महिलाओं की व्यवहारिक और आर्थिक स्थिति
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इस समय महिलाएं सुरक्षित जीवन की दृष्टि से अतीत की तुलना में बेहतर स्थिति में हैं। इस समय महिलाएं आर्थिक क्षेत्रों में उन्हें उचित शिक्षा सुविधा प्राप्त है और अधिकांश महिलाओं को मतदान का अधिकार भी मिल गया है। वर्तमान समय में कार्यरत महिलाओं के प्रतिशत में वृद्धि हुई है। विभिन्न देशों के आर्थिक व सामाजिक विकास में उनकी भागीदारी बढ़ रही है।
वर्ष 2000 में संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने महिलाओं के सामाजिक विकास की प्रक्रिया की समीक्षा के लिए एक विशेष बैठक का आयोजन किया। इस बैठक में निर्धनता, शिक्षा, प्रशिक्षण, स्वास्थ्य व हिंसा आदि जैसी महिलाओं की 12 प्रमुख समस्याओं की ओर संकेत किया गया। सरकारों ने इस बैठक में वचन दिया था कि वे व्यवहारिक नीतियों और उचित कार्यक्रमों द्वारा समाज में महिलाओं के विकास में सहायता प्रदान करेंगी तथा महिलाओं से संबंधित समस्याओं जैसे पारिवारिक हिंसा, बाल विवाह और निर्धनता आदि से अधिक गंभीरता के साथ निपटेंगी। इस समय महिलाओं की समस्या और उनकी भूमिका, चर्चाओं के ज्वलंत विषयों में परिवर्तित हो चुकी है। हालांकि विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं की स्थिति में किसी सीमा तक बेहतरी आई है किंतु आंकड़े यह दर्शाते हैं कि बीसवीं शताब्दी महिलाओं के लिए विशेषकर विकासशील देशों में बहुत अच्छी नहीं रही है।
संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं को अपने अधिकारों की प्राप्ति के लिए अभी लंबी यात्रा पूरी करनी है। अब भी समान कार्यों के लिए महिलाओं का वेतन पुरुषों के वेतन का 50 या 80 प्रतिशत ही होता है। विश्व के 87 करोड़ 50 लाख निरक्षरों में दो तिहाई संख्या महिलाओं की है। युद्ध में विस्थापित होने वालों में 80 प्रतिशत बच्चे और महिलाएं हैं। अमरीका में हर दूसरे मिनट एक महिला से बलात्कार होता है।
स्पष्ट है कि हालिया दशकों में पश्चिम में महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए कुछ प्रयास किए गए हैं किंतु यह सिक्के का एक रुख़ है। वास्तविकता यह है कि पश्चिम में अब भी महिला को प्रयोग के सामान के रूप में देखा जाता है। पश्चिमी समाजों में अनियंत्रित स्वतंत्रता, महिलाओं की मानवीय प्रतिष्ठा व सम्मान के लिए एक गंभीर ख़तरा है। इसके साथ ही इन देशों में महिलाओं और पुरुषों के मध्य प्राकृतिक अंतरों की अनदेखी से भी महिलाओं के लिए एक प्रकार का मानसिक संकट उत्पन्न हुआ है। उदाहरण स्वरूप स्वीडन में जब एक कंपनी की एक महिला कर्मचारी अपना काम बदलने के लिए जब अपने मालिक से अपील करती है और उसका मालिक अत्यंत अचरज से कहता है कि पता नहीं एसा क्यों हुआ? मैं तो कभी भी अपने कर्मचारियों के मध्य चाहे वह महिला हो या पुरुष कोई अंतर नहीं समझता बल्कि इसके बारे में कोई विचार भी मेरे मन में नहीं आता तो महिला कर्मचारी उत्तर में कहती है कि इसी कारण कि कंपनी का मालिक और पुरुष कर्मचारियों में कोई अंतर नहीं करता बल्कि इस प्रकार का विचार ही नहीं रखता मैं अपना काम छोड़ना चाहती हूं।
महिला आंदोलन कि जिस पर संचार माध्यमों के लक्ष्यपूर्ण प्रचारों के कारण विश्व में अधिक ध्यान दिया जा रहा है वह स्वयं महिलाओं के वास्तविक स्थान व सम्मान की ओर ध्यान नहीं दे रहा है। महिला आंदोलनों के परिणाम में महिलाओं में श्रेष्ठता व आक्रामक भावनाओं का विकास, पुरुषों के साथ तनाव में वृद्धि, परिवारों का विघटन और अवैध संतानों की संख्या में बढ़ोत्तरी के अतिरिक्त कुछ और नहीं निकला। पश्चिम में इस प्रक्रिया के कटु अनुभव के कारण महिला आंदोलन को बुद्धिजीवियों की ओर से आलोचना का सामना है।
मुस्लिम समाजों में भी महिलाओं की समस्याएं आम चिंता का विषय हैं। अलबत्ता यह कहा जा सकता है कि हालिया दशकों में इस्लामी देशों में महिलाओं की स्थिति पर अधिक ध्यान दिया गया है किंतु महिलाओं के बारे में जिन सामाजिक अधिकारों की रक्षा पर बल दिया जाता है वह धार्मिक शिक्षाओं से अधिक मेल नहीं खाते। इस समय भी बहुत से इस्लामी देशों में महिलाएं राजनैतिक भागरीदारी, मतदान और व्यवसाय के अधिकार से वंचित हैं बल्कि दूसरे शब्दों में इस प्रकार के कुछ देशों में महिलाओं को किनारे रखा गया है और उन्हें सेविका या बच्चे पैदा करने वाली प्राणी के रूप में देखा जाता है।
अध्ययनों से पता चलता है कि महिलाओं से संबंधित संकट, समाजों में प्रचलित व्यवस्था, मान्यताओं और शैलियों से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ा हुआ है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार महिलाओं के लिए झूठे आदर्श और विकल्प कि जो आज के समाजों में प्रचलित हैं, महिलाओं को लक्ष्यहीनता, आत्ममुग्धता तथा पुरुषों के साथ परिणामहीन प्रतिबद्धता की ओर ले जा रहे हैं और उनकी महान मानवीय व प्रशिक्षण संबंधी भूमिका की उपेक्षा कर रहे हैं। दूसरी ओर मनुष्य के भविष्य में प्रभावी आदर्शों की पहचान निश्चित रूप से महिलाओं के आंदोलन में एक प्रभावशाली कारक हो सकती है। सकारात्मक विकल्प महिलाओं को सम्मान व प्रतिष्ठा प्रदान करते हैं और सामाजिक स्तर पर उनके प्रयासों को लक्ष्यपूर्ण व प्रभावी बनाते हैं।
इस्लाम के उच्च विचार इस प्रकार के आदेशों को पहचनवा कर महिलाओं को चरमपंथ और उद्देश्यहीनता से बचाता है। इस्लाम महिलाओं को साधन के रूप में देखने को पसंद नहीं करता क्योंकि महिलाएं अत्यधिक दया व कृपा के कारण मानव समाज के प्रशिक्षण में निर्णायक भूमिका निभाती हैं। इसी के साथ महिलाओं की शारीरिक व मानसिक परिस्थितियां उन्हें नुक़सान पहुंचाने की संभावनाओं को बढ़ाती है। इन वास्तविकताओं के दृष्टिगत महिलाओं की मनोवृत्ति व विशेषताओं पर ध्यान देने से उनका व्यक्तित्व संतुलित आधार पर स्थापित होता है और इससे उनके विकास की भूमिका बनती है।
इस्लाम अपनी शिक्षाओं में महिलाओं के स्थान को पुरुषों के समान समझता है और चूंकि इस्लाम वास्तविकता पर दृष्टि रखने वाला धर्म है। इसलिए वह महिलाओं की प्राकृतिक विशेषताओं को सभी चरणों में
वर्ष 2000 में संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने महिलाओं के सामाजिक विकास की प्रक्रिया की समीक्षा के लिए एक विशेष बैठक का आयोजन किया। इस बैठक में निर्धनता, शिक्षा, प्रशिक्षण, स्वास्थ्य व हिंसा आदि जैसी महिलाओं की 12 प्रमुख समस्याओं की ओर संकेत किया गया। सरकारों ने इस बैठक में वचन दिया था कि वे व्यवहारिक नीतियों और उचित कार्यक्रमों द्वारा समाज में महिलाओं के विकास में सहायता प्रदान करेंगी तथा महिलाओं से संबंधित समस्याओं जैसे पारिवारिक हिंसा, बाल विवाह और निर्धनता आदि से अधिक गंभीरता के साथ निपटेंगी। इस समय महिलाओं की समस्या और उनकी भूमिका, चर्चाओं के ज्वलंत विषयों में परिवर्तित हो चुकी है। हालांकि विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं की स्थिति में किसी सीमा तक बेहतरी आई है किंतु आंकड़े यह दर्शाते हैं कि बीसवीं शताब्दी महिलाओं के लिए विशेषकर विकासशील देशों में बहुत अच्छी नहीं रही है।
संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं को अपने अधिकारों की प्राप्ति के लिए अभी लंबी यात्रा पूरी करनी है। अब भी समान कार्यों के लिए महिलाओं का वेतन पुरुषों के वेतन का 50 या 80 प्रतिशत ही होता है। विश्व के 87 करोड़ 50 लाख निरक्षरों में दो तिहाई संख्या महिलाओं की है। युद्ध में विस्थापित होने वालों में 80 प्रतिशत बच्चे और महिलाएं हैं। अमरीका में हर दूसरे मिनट एक महिला से बलात्कार होता है।
स्पष्ट है कि हालिया दशकों में पश्चिम में महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए कुछ प्रयास किए गए हैं किंतु यह सिक्के का एक रुख़ है। वास्तविकता यह है कि पश्चिम में अब भी महिला को प्रयोग के सामान के रूप में देखा जाता है। पश्चिमी समाजों में अनियंत्रित स्वतंत्रता, महिलाओं की मानवीय प्रतिष्ठा व सम्मान के लिए एक गंभीर ख़तरा है। इसके साथ ही इन देशों में महिलाओं और पुरुषों के मध्य प्राकृतिक अंतरों की अनदेखी से भी महिलाओं के लिए एक प्रकार का मानसिक संकट उत्पन्न हुआ है। उदाहरण स्वरूप स्वीडन में जब एक कंपनी की एक महिला कर्मचारी अपना काम बदलने के लिए जब अपने मालिक से अपील करती है और उसका मालिक अत्यंत अचरज से कहता है कि पता नहीं एसा क्यों हुआ? मैं तो कभी भी अपने कर्मचारियों के मध्य चाहे वह महिला हो या पुरुष कोई अंतर नहीं समझता बल्कि इसके बारे में कोई विचार भी मेरे मन में नहीं आता तो महिला कर्मचारी उत्तर में कहती है कि इसी कारण कि कंपनी का मालिक और पुरुष कर्मचारियों में कोई अंतर नहीं करता बल्कि इस प्रकार का विचार ही नहीं रखता मैं अपना काम छोड़ना चाहती हूं।
महिला आंदोलन कि जिस पर संचार माध्यमों के लक्ष्यपूर्ण प्रचारों के कारण विश्व में अधिक ध्यान दिया जा रहा है वह स्वयं महिलाओं के वास्तविक स्थान व सम्मान की ओर ध्यान नहीं दे रहा है। महिला आंदोलनों के परिणाम में महिलाओं में श्रेष्ठता व आक्रामक भावनाओं का विकास, पुरुषों के साथ तनाव में वृद्धि, परिवारों का विघटन और अवैध संतानों की संख्या में बढ़ोत्तरी के अतिरिक्त कुछ और नहीं निकला। पश्चिम में इस प्रक्रिया के कटु अनुभव के कारण महिला आंदोलन को बुद्धिजीवियों की ओर से आलोचना का सामना है।
मुस्लिम समाजों में भी महिलाओं की समस्याएं आम चिंता का विषय हैं। अलबत्ता यह कहा जा सकता है कि हालिया दशकों में इस्लामी देशों में महिलाओं की स्थिति पर अधिक ध्यान दिया गया है किंतु महिलाओं के बारे में जिन सामाजिक अधिकारों की रक्षा पर बल दिया जाता है वह धार्मिक शिक्षाओं से अधिक मेल नहीं खाते। इस समय भी बहुत से इस्लामी देशों में महिलाएं राजनैतिक भागरीदारी, मतदान और व्यवसाय के अधिकार से वंचित हैं बल्कि दूसरे शब्दों में इस प्रकार के कुछ देशों में महिलाओं को किनारे रखा गया है और उन्हें सेविका या बच्चे पैदा करने वाली प्राणी के रूप में देखा जाता है।
अध्ययनों से पता चलता है कि महिलाओं से संबंधित संकट, समाजों में प्रचलित व्यवस्था, मान्यताओं और शैलियों से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ा हुआ है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार महिलाओं के लिए झूठे आदर्श और विकल्प कि जो आज के समाजों में प्रचलित हैं, महिलाओं को लक्ष्यहीनता, आत्ममुग्धता तथा पुरुषों के साथ परिणामहीन प्रतिबद्धता की ओर ले जा रहे हैं और उनकी महान मानवीय व प्रशिक्षण संबंधी भूमिका की उपेक्षा कर रहे हैं। दूसरी ओर मनुष्य के भविष्य में प्रभावी आदर्शों की पहचान निश्चित रूप से महिलाओं के आंदोलन में एक प्रभावशाली कारक हो सकती है। सकारात्मक विकल्प महिलाओं को सम्मान व प्रतिष्ठा प्रदान करते हैं और सामाजिक स्तर पर उनके प्रयासों को लक्ष्यपूर्ण व प्रभावी बनाते हैं।
इस्लाम के उच्च विचार इस प्रकार के आदेशों को पहचनवा कर महिलाओं को चरमपंथ और उद्देश्यहीनता से बचाता है। इस्लाम महिलाओं को साधन के रूप में देखने को पसंद नहीं करता क्योंकि महिलाएं अत्यधिक दया व कृपा के कारण मानव समाज के प्रशिक्षण में निर्णायक भूमिका निभाती हैं। इसी के साथ महिलाओं की शारीरिक व मानसिक परिस्थितियां उन्हें नुक़सान पहुंचाने की संभावनाओं को बढ़ाती है। इन वास्तविकताओं के दृष्टिगत महिलाओं की मनोवृत्ति व विशेषताओं पर ध्यान देने से उनका व्यक्तित्व संतुलित आधार पर स्थापित होता है और इससे उनके विकास की भूमिका बनती है।
इस्लाम अपनी शिक्षाओं में महिलाओं के स्थान को पुरुषों के समान समझता है और चूंकि इस्लाम वास्तविकता पर दृष्टि रखने वाला धर्म है। इसलिए वह महिलाओं की प्राकृतिक विशेषताओं को सभी चरणों में
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