महामारी के दौरान शिक्षा छात्रों पर स्कूल नहीं जाने के नकारात्मक प्रभाव पर निबंध
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Explanation:
• कोविड के कारण स्कूलों के बंद होने से बच्चे असमान रूप से प्रभावित हुए क्योंकि महामारी के दौरान सभी बच्चों के पास सीखने के लिए जरूरी अवसर, साधन या पहुंच नहीं थी.
• लाखों छात्रों के लिए स्कूलों का बंद होना उनकी शिक्षा में अस्थायी तौर पर व्यवधान भर नहीं, बल्कि अचानक से इसका अंत होगा.
• शिक्षा को तमाम सरकारों की पुनर्निर्माण योजनाओं का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होना चाहिए ताकि दुनिया भर में हर बच्चे को निःशुल्क शिक्षा सुलभ की सके.
ह्यूमन राइट्स वॉच ने जारी एक रिपोर्ट में कहा कि सरकारों को कोविड-19 महामारी से हुए अभूतपूर्व व्यवधान के कारण बच्चों की शिक्षा के नुकसान की भरपाई के लिए तुरंत कदम उठाने चाहिए. ह्यूमन राइट्स वॉच की इस रिपोर्ट के साथ एक इंटरैक्टिव फीचर है जिसमें महामारी के दौरान शिक्षा से जुड़ी आम बाधाओं के गहराने की पड़ताल की गई है.
दुनिया भर में शिक्षा पर महामारी के पड़ते प्रभाव को मापने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने एक नया ट्रैकर जारी किया है जिसे जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी, वर्ल्ड बैंक और यूनिसेफ के आपसी सहयोगी से बनाया गया है। यदि पिछले एक साल की बात करें तो कोरोना महामारी के कारण 160 करोड़ बच्चों की शिक्षा पर असर पड़ा है।
यदि शिक्षा पर संकट की बात करें तो वो इस महामारी से पहले भी काफी विकट था। इस महामारी से पहले भी दुनिया भर में शिक्षा की स्थिति बहुत ज्यादा बेहतर नहीं थी। उस समय भी प्राथमिक और माध्यमिक स्कूल जाने योग्य 25.8 करोड़ बच्चे स्कूल से बाहर थे। वहीं निम्न और मध्यम आय वाले देशों में करीब 53 फीसदी बच्चों को शिक्षा नहीं मिल रही थी। जिसका मतलब है कि 10 वर्ष से बड़े करीब आधे बच्चे सामान्य से चीजों को लिख पढ़ नहीं सकते थे। वहीं उप-सहारा अफ्रीका में स्थिति और बदतर थी जहां यह आंकड़ा 90 फीसदी के करीब था। वहीं यदि उच्च आय वाले देशों में यह आंकड़ा 9 फीसदी था। जो स्पष्ट तौर पर शिक्षा में व्याप्त असमानता को दर्शाता है।
इस महामारी ने शिक्षा पर छाए इस संकट को और बढ़ा दिया है। जिसका असर हमारी आने वाली पीढ़ी पर लंबे समय तक रहने की संभावना है। अप्रैल 2020 में जब महामारी और उसके कारण हुए लॉकडाउन के चलते स्कूलों को बंद किया गया था तब उसका असर 94 फीसदी छात्रों पर पड़ा था, जिनकी संख्या करीब 160 करोड़ थी। अनुमान है अभी भी करीब 70 करोड़ बच्चे अपने घरों से ही शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। इसके बावजूद बड़ी संख्या में बच्चे हाइब्रिड और रिमोट लर्निंग के विकल्प के बीच संघर्ष कर रहे थे, जबकि कई शिक्षा से पूरी तरह वंचित थे। दुनिया के अधिकांश देश इस तरह की अनिश्चितता का सामना कर रहे थे।
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