महामंदी के कारणों की व्याख्या करें।
Answers
उत्तर :
महामंदी के मुख्य कारण निम्नलिखित है :
(क) अति उत्पादन :
कृषि क्षेत्र में अति उत्पादन की समस्या बनी हुई थी । कृषि उत्पादों की गिरती कीमतों के कारण स्थिति और खराब हो गई थी । कीमतें गिरने से किसानों की आय घटने लगी । अतः वे आय बढ़ाने के लिए पहले से अधिक उत्पादन करने लगे। वे सोचते थे कि भले ही उन्हें अपने उत्पादन कम कीमत पर बेचना पड़े , अधिक माल बेचकर वे अपने आय स्तर बनाए रखेंगे। फल स्वरूप बाजार में उत्पादों की बाढ़ आ गई तथा कीमतें और भी कम हो गए। खरीदारों के अभाव में कृषि उपज पड़ी पड़ी सड़ने लगी।
(ख) शेयरों के मूल्य में गिरावट :
शेयरों के भाव एकदम गिर गए। कुछ कंपनियों के शेयरों का मूल्य तो बिल्कुल समाप्त हो गया । परिणाम स्वरुप जिन लोगों का शेयरों में धन लगा था उन्हें भारी हानि उठानी पड़े।
(ग) बैंकों का बंद होना :
देश के हजारों बैंक बंद हो गए और कारखानेदारों को कारखानों में लगाने के लिए पूंजी न मिल सकी। परिणाम यह हुआ कि कारखाने एकाएक बंद होने लगे और लोगों में बेरोजगारी बढ़ने लगी।
(घ) बेरोजगारी :
बेरोजगारी के कारण लोगों की क्रय शक्ति और भी कम हो गई जिसका पूरा प्रभाव तैयार माल की बिक्री पर पड़ा। धीरे धीरे विश्व के अन्य पूंजीवादी देशों में भी यही दुष्चक्र चल पड़ा। इस प्रकार आर्थिक मंदी ने गंभीर रूप धारण कर लिया।
आशा है कि है उत्तर आपकी मदद करेगा।
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Explanation:
। इस प्रकार सोशियोलॉजी शब्द का अर्थ भी समाज का विज्ञान होता है। परंतु समाज के बारे में समाजशास्त्रियों के भिन्न – भिन्न मत है इसलिए समाजशास्त्र को भी उन्होंने भिन्न-भिन्न रूपों में परिभाषित किया है।
अति प्राचीन काल से समाज शब्द का प्रयोग मनुष्य के समूह विशेष के लिए होता आ रहा है। जैसे भारतीय समाज , ब्राह्मण समाज , वैश्य समाज , जैन समाज , शिक्षित समाज , धनी समाज , आदि। समाज के इस व्यवहारिक पक्ष का अध्यन सभ्यता के लिए विकास के साथ-साथ प्रारंभ हो गया था। हमारे यहां के आदि ग्रंथ वेदों में मनुष्य के सामाजिक जीवन पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है।
इनमें पति के पत्नी के प्रति पत्नी के पति के प्रति , माता – पिता के पुत्र के प्रति , पुत्र के माता – पिता के प्रति , गुरु के शिष्य के प्रति , शिष्य के गुरु के प्रति , समाज में एक व्यक्ति के दूसरे व्यक्ति के प्रति , राजा का प्रजा के प्रति और प्रजा का राजा के प्रति कर्तव्यों की व्याख्या की गई है।
मनु द्वारा विरचित मनूस्मृति में कर्म आधारित वर्ण व्यवस्था और उसके महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है और व्यक्ति तथा व्यक्ति , व्यक्ति तथा समाज और व्यक्ति तथा राज्य सभी के एक दूसरे के प्रति कर्तव्यों को निश्चित किया गया है। भारतीय समाज को व्यवस्थित करने में इसका बड़ा योगदान रहा है इसे भारतीय समाजशास्त्र का आदि ग्रंथ माना जा सकता है।