महान कवि वीरेन डंगवाल के बारे में बताइए |
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✍️महान कवि वीरेन डंगवाल के बारे में बताइए |
5 अगस्त 1947 को उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले के कीर्तिनगर में जन्मे वीरेन डंगवाल ने आरंभिक शिक्षा नैनीताल में और उच्च शिक्षा इलाहाबाद में पाई। पेशे से प्राध्यापक डंगवाल पत्रकारिता से भी जुड़े हुए हैं।
समाज के साधारण जन और हाशिए पर स्थित जीवन के विलक्षण ब्योरे और दृश्य वीरेन की कविताओं की विशिष्टता मानी जाती है। इन्होंने ऐसी बहुत-सी चीज़ों और जीव-जंतुओं को अपनी कविता का आधार बनाया है जिन्हें हम देखकर भी अनदेखा किए रहते हैं।
वीरेन के अब तक दो कविता संग्रह इसी दुनिया में और दुष्चक्र में स्रष्टा प्रकाशित हो चुके हैं। पहले संग्रह पर प्रतिष्ठित श्रीकांत वर्मा पुरस्कार और दूसरे पर साहित्य अकादेमी पुरस्कार के अलावा इन्हें अन्य कई पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया। वीरेन डंगवाल ने कई महत्त्वपूर्ण कवियों की अन्य भाषाओं में लिखी गई कविताओं का हिंदी में अनुवाद भी किया है। 28 सितंबर 2015 को इनका देहावसान हुआ।
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वीरेन डंगवाल (५ अगस्त १९४७ - २८ सितंबर २०१५) साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत हिन्दी कवि थे। उनका जन्म कीर्तिनगर, टेहरी गढ़वाल, उत्तराखंड में हुआ। उनकी माँ एक मिलनसार धर्मपरायण गृहणी थीं और पिता स्वर्गीय रघुनन्दन प्रसाद डंगवाल प्रदेश सरकार में कमिश्नरी के प्रथम श्रेणी अधिकारी। उनकी रूचि कविताओं कहानियों दोनों में रही है। उन्होंने मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, कानपुर, बरेली, नैनीताल और अन्त में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने १९६८ में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम॰ए॰ और तत्पश्चात डी॰फिल की डिग्रियाँ प्राप्त की।
वीरेन डंगवाल
सिविल लाइन्स, बरेली में डंगवाल को समर्पित स्मारक
वीरेन १९७१ से बरेली कॉलेज में हिन्दी के अध्यापक रहे। साथ ही शौकिया पत्रकार भी। पत्नी रीता भी शिक्षक। स्थाई रूप से बरेली के निवासी। अंतिम दिनों में स्वास्थ्य संबंधी कारणों से दिल्ली में रहना पड़ा और २८ सितम्बर २०१५ को ६८ साल की उम्र में बरेली में देहांत हुआ
साहित्य यात्रा
बाईस साल की उम्र में उन्होनें पहली रचना, एक कविता, लिखी और फिर देश की तमाम स्तरीय साहित्यिक पत्र पत्रिकाओं में लगातार छपते रहे। उन्होनें १९७०-७५ के बीच ही हिन्दी जगत में खासी शोहरत हासिल कर ली थी। विश्व-कविता से उन्होंने पाब्लो नेरूदा, बर्टोल्ट ब्रेख्त, वास्को पोपा, मीरोस्लाव होलुब, तदेऊश रोजेविच और नाज़िम हिकमत के अपनी विशिष्ट शैली में कुछ दुर्लभ अनुवाद भी किए हैं। उनकी ख़ुद की कविताओं का भाषान्तर बाँग्ला, मराठी, पंजाबी, अंग्रेज़ी, मलयालम और उड़िया जैसी भाषाओं में प्रकाशित हुआ है।
वीरेन डंगवाल का पहला कविता संग्रह ४३ वर्ष की उम्र में आया। इसी दुनिया में नामक इस संकलन को रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार (१९९२) तथा श्रीकान्त वर्मा स्मृति पुरस्कार (१९९३) से नवाज़ा गया। दूसरा संकलन 'दुष्चक्र में सृष्टा' २००२ में आया और इसी वर्ष उन्हें 'शमशेर सम्मान' भी दिया गया। दूसरे ही संकलन के लिए उन्हें २००४ का साहित्य अकादमी पुरस्कार भी दिया गया।उन्हें हिन्दी कविता की नई पीढ़ी के सबसे चहेते और आदर्श कवियों में माना जाता है। समालोचकों के अनुसार, उनमें नागार्जुन और त्रिलोचन का-सा विरल लोकतत्व, निराला का सजग फक्कड़पन और मुक्तिबोध की बेचैनी और बौद्धिकता एक साथ मौजूद है।
पत्रकारिता
वे शौकिया तैर पर पत्रकारिता से भी जुड़े रहे थे और एक लंबे अरसे तक अमर उजाला के ग्रुप सलाहकार और बरेली के स्थानीय संपादक रहे। वर्ष २००९ में एक विवाद के चलते उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया था।
प्रमुख रचनायें
•इसी दुनिया में
•दुष्चक्र में स्रष्टा
•कवि ने कहा
•स्याही ताल
पुरस्कार और सम्मान
•साहित्य अकादमी पुरस्कार (२००४)
•शमशेर सम्मान (२००२)
•श्रीकान्त वर्मा स्मृति पुरस्कार (१९९३)
•रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार (१९९२)