महंत की बात सुनकर हरिहर काका क्या सोचने
लगे?
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महंत की बातें सुनकर हरिहर काका अपनी जमीन किसे दें-भाइयों को या ठाकुर जी के नाम लिखें; इस दुविधा में फैंस गए। वे सोचने लगे कि पंद्रह बीघे खेत की फ़सल भाइयों के परिवार को देते हैं, तब तो कोई पूछता नहीं, अगर कुछ न दें तब क्या हालत होगी? उनके जीवन में तो यह स्थिति है, मरने के बाद कौन उन्हें याद करेगा? सीधे-सीधे उनके खेत हड़प जाएँगे। ठाकुर जी के नाम लिख देंगे तो पुश्तों तक लोग उन्हें याद करेंगे। अब तक के जीवन में तो ईश्वर के लिए उन्होंने कुछ नहीं किया। अंतिम समय तो यह बड़ा पुण्य कमा लें, लेकिन यह सोचते हुए भी हरिहर काका का मुँह खुल नहीं रहा था। भाई का परिवार तो अपना ही होता है। उनको न देकर ठाकुरबारी में दे देना उनके साथ धोखा और विश्वासघात होगा|
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