Hindi, asked by sharmakuldeep7009, 1 month ago

महादेवी वर्मा के चिड़िया घर में सैकड़ों पशु-पक्षी थे। किसी एक पशु-पक्षी का चित्र - चित्रण 100 से 120 शब्दों में करें।​

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Answered by shubhamugale2005
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Answered by puzzler4578
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गाय के नेत्रों में हिरन के नेत्रों-जैसा विस्मय न होकर आत्मीय विश्वास रहता है। उस पशु को मनुष्य से यातना ही नहीं, निर्मम मृत्यु तक प्राप्त होती है, परंतु उसकी आंखों के विश्वास का स्थान न विस्मय ले पाता है, न आतंक।

गौरा मेरी बहिन के घर पली हुई गाय की व:यसंधि तक पहुंची हुई बछिया थी। उसे इतने स्नेह और दुलार से पाला गया था कि वह अन्य गोवत्साओं से कुछ विशिष्ट हो गई थी।

बहिन ने एक दिन कहा, तुम इतने पशु-पक्षी पाला करती हो-एक गाय क्यों नहीं पाल लेती, जिसका कुछ उपयोग हो। वास्तव में मेरी छोटी बहिन श्यामा अपनी लौकिक बुद्धि में मुझसे बहुत बड़ी है और बचपन से ही उनकी कर्मनिष्ठा और व्यवहार-कुशलता की बहुत प्रशंसा होती रही है, विशेषत: मेरी तुलना में। यदि वे आत्मविश्वास के साथ कुछ कहती हैं तो उनका विचार संक्रामक रोग के समान सुननेवाले को तत्काल प्रभावित करता है। आश्चर्य नहीं, उस दिन उनके प्रतियोगितावाद संबंधी भाषण ने मुझे इतना अधिक प्रभावित किया कि तत्काल उस सुझाव का कार्यान्वयन आवश्यक हो गया।

वैसे खाद्य की किसी भी समस्या के समाधान के लिए पशु-पक्षी पालना मुझे कभी नहीं रुचा। पर उस दिन मैंने ध्यानपूर्वक गौरा को देखा। पुष्ट लचीले पैर, चिकनी भरी पीठ, लंबी सुडौल गर्दन, निकलते हुए छोटे-छोटे सींग, भीतर की लालिमा की झलक देते हुए कमल की पंखड़ियों जैसे कान, सब सांचे में ढला हुआ-सा था।

गौरा को देखती ही मेरी गाय पालने के संबंध में दुविधा निश्चय में बदल गई। गाय जब मेरे बंगले पर पहुंची तब मेरे परिचितों और परिचारकों में श्रद्धा का ज्वार-सा उमड़ आया। उसे गुलाबों की माला पहनायी, केशर-रोली का बड़ा-सा टीका लगाया गया, घी का दिया जलाकर आरती उतारी गई और उसे दही-पेड़ा खिलाया गया। उसका नामकरण हुआ गौरांगिनी या गौरा। गौरा वास्तव में बहुत प्रियदर्शनी थी, विशेषत: उसकी काली-बिल्लौरी आंखों का तरल सौंदर्य तो दृष्टि को बांधकर स्थिर कर देता था। गाय के नेत्रों में हिरन के नेत्रों-जैसा चकित विस्मय न होकर एक आत्मीय विश्वास ही रहता है। उस पशु को मनुष्य से यातना ही नहीं, निर्मम मृत्यु तक प्राप्त होती है, परंतु उसकी आंखों के विश्वास का स्थान न विस्मय ले पाता है, न आतंक। महात्मा गांधी ने 'गाय करुणा की कविता है', क्यों कहा, यह उसकी आंखें देखकर ही समझ आ सकता है।

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