History, asked by poonamk3811, 7 months ago

Mahabharat kaal in samaj mein nari sthiti par prakash daliye

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Answered by nihasrajgone2005
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प्राचीन काल से आधुनिक काल यानि वर्तमान समय तक भारत में स्त्रियों की स्थिति परिवर्तनशील रही है| हमारा समाज प्राचीन काल से आज तक पुरुष प्रधान ही रहा है | ऐसा नहीं है कि स्त्रियों का शोषण सिर्फ पुरुष वर्ग ने ही किया, पुरुष से ज्यादा तो एक स्त्री ने दूसरी स्त्री पर या स्त्री ने खुद अपने ऊपर अत्याचार किया है| पुरुष की उदंडता, उच्छृंखलता और अहम् के कारण या स्त्री की अशिक्षा, विनम्रता और स्त्री सुलभ उदारता के कारण उसे प्रताड़ित, अपमानित और उपेक्षित होना पड़ा| पहले हम इतिहास में भारतीय स्त्रियों की स्थिति पे नजर डाल लें फिर वर्तमान स्थिति का आंकलन करेंगे|

रायबर्न के अनुसार- “स्त्रियों ने ही प्रथम सभ्यता की नींव डाली है और उन्होंने ही जंगलों में मारे-मारे भटकते हुए पुरुषों को हाथ पकड़कर अपने स्तर का जीवन प्रदान किया तथा घर में बसाया|” भारत में सैद्धान्तिक रूप से स्त्रियों को उच्च दर्जा दिया गया है, हिन्दू आदर्श के अनुसार स्त्रियाँ अर्धांगिनी कही गयीं हैं| मातृत्व का आदर भारतीय समाज की विशेषता है| संसार की ईश्वरीय शक्ति दुर्गा, काली, लक्ष्मी, सरस्वती आदि नारी शक्ति, धन, ज्ञान का प्रतीक मानी गयी हैं तभी तो अपने देश को हम भारत माता कहकर अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं|

विभिन्न युगों में स्त्रियों की स्थिति -

वैदिक युग- वैदिक युग सभ्यता और संस्कृति की दृष्टि से स्त्रियों की चरमोन्नती का काल था, उसकी प्रतिभा, तपस्या और विद्वता सभी विकासोन्मुख होने के साथ ही पुरुषों को परास्त करने वाली थी| उस समय स्त्रियों की स्थिति उनके आत्मविश्वास, शिक्षा, संपत्ति आदि के सम्बन्ध में पुरुषों के समान थी| यज्ञों में भी उसे सर्वाधिकार प्राप्त था| वैदिक युग में लड़कियों की गतिशीलता पर कोई रोक नहीं थी और न ही मेल मिलाप पर| उस युग में मैत्रेयी, गार्गी और अनुसूया नामक विदुषी स्त्रियाँ शास्त्रार्थ में पारंगत थीं| ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यते रमन्ते तत्र देवता’ उक्ति वैदिक काल के लिए सत्य उक्ति थी| महाभारत के कथनानुसार वह घर घर नहीं जिस घर में सुसंस्कृत, सुशिक्षित पत्नी न हो| गृहिणी विहीन घर जंगल के समान माना जाता था और उसे पति की तरह ही समानाधिकार प्राप्त थे| वैदिक युग भारतीय समाज का स्वर्ण युग था|

उत्तर वैदिक युग- वैदिक युग में स्त्रियों की जो स्थिति थी वह इस युग में कायम न रह सकी| उसकी शक्ति, प्रतिभा व स्वतंत्रता के विकास पर प्रतिबन्ध लगने लगे| धर्म सूत्र में बाल-विवाह का निर्देश दिया गया जिससे स्त्रियों की शिक्षा में बाधा पहुंची और उनकी स्वतंत्रता को तथाकथित ज्ञानियों ने ऐसा कहकर उनकी शक्ति को सिमित कर दिया कि- “पिता रक्षति कौमारे, भर्ता रक्षति यौवने| पुत्रश्च स्थाविरे भावे, न स्त्री स्वातंत्रयमर्हति|| वो घर की चारदीवारी में कैद हो गयीं, पढने-लिखने व वेदों का ज्ञान असंभव हो गया और उनके लिए धार्मिक संस्कार में भाग लेने की मनाही हो गयी| बहुपत्नी प्रथा का प्रचलन हो गया और वैदिक युग की तुलना में उत्तर व दीर्घकाल में उनकी स्थिति निम्न स्तर की होती गयी|

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Answered by vishal1928
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