Hindi, asked by doremi86, 1 year ago

Mahadevi Verma ji dwara Likhit Mera Parivar Se Kisi prani ka Rekha Chitra likhiye​

Answers

Answered by sahilarora199587
29

Explanation:

इसमें महादेवी जी ने उत्कृष्ट कहानियों का संकलन किया है। यह सभी कहानियाँ वन्य जीवन पर आधारित है।

उच्छ्वास इलाचन्द्र जोशी

महाकवयित्री श्रीमती महादेवी वर्मा ने अत्यन्त विनयवश ही अपनी इस कृति को ‘मेरा परिवार’ नाम दिया गया है। वास्तविकता यह है कि इस महाप्राणशील कवयित्री का परिवार बहुत विशाल हैं- कल्पनातीत रूप से विशाल। पंचतंत्र के जिस पशु-पात्र ने घोर स्वार्थ की प्रवृत्ति से प्रेरित होकर एक दूसरे पशु-पात्र के कानों में यह उपदेश भरा था कि ‘‘उदारचरितानान्तु वसुधैव कुटुम्बकम्’’, उसके भीतर जीव-मात्र के प्रति प्रेम की संवेदना नहीं वरन् अत्यन्त दुष्टतापूर्ण चातुरी भरी थी।

 इसलिए महादेवी जी की उच्चतम-स्तरीय संवेदना के लिए उक्त बहुउद्धत और पिष्टपेषित ‘सूक्ति’ का उपयोग करने में अत्यन्त संकोच का अनुभव होता है, क्योंकि कवयित्री की संवेदना अत्यन्त मार्मिक और जन्म-जन्मान्तर की मानवीय अनुभूति के शोधन, परिशोधन और परिशोधन के सुदार्घ योगाभ्यास के फलस्वरूप वर्षाकालीन निविड़ मेघ के स्वत:स्फूर्त वर्षण और गहन पर्वत-प्रसूत निर्झर के अनिरुद्ध प्रवाह की तरह सहज-विमुक्त और निश्चल सृजनशील प्रकृति के आदिम गतिशीलता की तरह एकांत स्वाभाविक है। अपने एक-एक लघुत्तम और सर्वथा उपेक्षित मानवेतर पात्र की सूक्ष्म से संवेदना को प्रकृति-माता के जिस अति-संवेदनशील राडार की तरह पकड़कर जो मर्ममोहक अभिव्यक्ति दी है, वैसी स्पर्शातीत और ईथरीय भावग्राहिता कोमल से कोमल अनुभूति वाले कवियों में भी अधिक सुलभ नहीं है, पंचतंत्र के पशु-पात्रों की तो बात ही क्या है।

वैसे मेरा यह निश्चित विचार है कि पंचतंत्र का लेखक चाहे जो भी रहा हो, वह निश्चय ही बहुत बड़ा पशु-प्रेमी रहा होगा; क्योंकि जैसी संवेदना और भाव-बोध उसने अपने मानवेतर पात्रों में भरने का प्रयास किया है, वह साधारण मनुष्यों के बोध और अनुभूति के स्तर की सीमा को भी अक्सर लाँघ जाती है। घेर स्थूल यथार्थ-बोध और ईथर-लोक के सूक्ष्म भाव-बोध का सहज समन्वय पंचतंत्र में भी किसी हद तक यदा-कदा और यत्र-तत्र वर्तमान पाया जाता है।

पर मेरा उद्देश्य पंचतंत्र और ‘मेरा परिवार’ के बीच किसी प्रकार के तुलनात्मक दृष्टिकोण की स्थापना नहीं वरन् दोनों के बीच पड़ी दुर्लघ्य खाई के महा-विस्तार के बीच की अपार असमानता का निदर्शन है।

Hope it helps ✌❤❤

Don't forget to FOLLOW me and mark as BRAINLIEST ❤✌✌❤

Answered by kirankaurspireedu
1

Answer:

घेर स्थूल यथार्थ-बोध और ईथर-लोक के सूक्ष्म भाव-बोध का सहज समन्वय पंचतंत्र में भी किसी हद तक यदा-कदा और यत्र-तत्र वर्तमान पाया जाता है। पंचतंत्र के जिस पशु-पात्र ने घोर स्वार्थ की प्रवृत्ति से प्रेरित होकर एक दूसरे पशु-पात्र के कानों में यह उपदेश भरा था कि ‘‘उदारचरितानान्तु वसुधैव कुटुम्बकम्’’, उसके भीतर जीव-मात्र के प्रति प्रेम की संवेदना नहीं वरन् अत्यन्त दुष्टतापूर्ण चातुरी भरी थी।महाकवयित्री श्रीमती महादेवी वर्मा ने अत्यन्त विनयवश ही अपनी इस कृति को ‘मेरा परिवार’ नाम दिया गया है। वास्तविकता यह है कि इस महाप्राणशील कवयित्री का परिवार बहुत विशाल हैं- कल्पनातीत रूप से विशाल।

 अपने एक-एक लघुत्तम और सर्वथा उपेक्षित मानवेतर पात्र की सूक्ष्म से संवेदना को प्रकृति-माता के जिस अति-संवेदनशील राडार की तरह पकड़कर जो मर्ममोहक अभिव्यक्ति दी है, वैसी स्पर्शातीत और ईथरीय भावग्राहिता कोमल से कोमल अनुभूति वाले कवियों में भी अधिक सुलभ नहीं है, पंचतंत्र के पशु-पात्रों की तो बात ही क्या है।

वैसे मेरा यह निश्चित विचार है कि पंचतंत्र का लेखक चाहे जो भी रहा हो, वह निश्चय ही बहुत बड़ा पशु-प्रेमी रहा होगा; क्योंकि जैसी संवेदना और भाव-बोध उसने अपने मानवेतर पात्रों में भरने का प्रयास किया है, वह साधारण मनुष्यों के बोध और अनुभूति के स्तर की सीमा को भी अक्सर लाँघ जाती है। इसलिए महादेवी जी की उच्चतम-स्तरीय संवेदना के लिए उक्त बहुउद्धत और पिष्टपेषित ‘सूक्ति’ का उपयोग करने में अत्यन्त संकोच का अनुभव होता है, क्योंकि कवयित्री की संवेदना अत्यन्त मार्मिक और जन्म-जन्मान्तर की मानवीय अनुभूति के शोधन, परिशोधन और परिशोधन के सुदार्घ योगाभ्यास के फलस्वरूप वर्षाकालीन निविड़ मेघ के स्वत:स्फूर्त वर्षण और गहन पर्वत-प्रसूत निर्झर के अनिरुद्ध प्रवाह की तरह सहज-विमुक्त और निश्चल सृजनशील प्रकृति के आदिम गतिशीलता की तरह एकांत स्वाभाविक है।

#SPJ2

Similar questions