Majhab nahi sikhata aapas mien baer rakhna hindi essay
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नमस्कार दोस्त ,
धर्म का संबंध मानवता से है । धर्म मनुष्य - मनुष्य में प्रेम उत्पन्न करता है । जो मानव में भेद पैदा करता है , शत्रुता बढ़ाता है , वह धर्म नहीं हो सकता । इस प्रकार कुछ लोगों ने अपने स्वार्थ के लिए धर्म को संप्रदाय का रूप दिया है ।
आज प्रत्येक संप्रदाय अपने को सच्चा , श्रेष्ठ मानता है तथा श्रेष्ठता के अहंकार में दूसरों को तुच्छ समझकर उसे नीचा दिखाने का प्रयास कर रहा है । इसी भावना ने सांप्रदायिकता को विष बना दिया । प्राचीन भारत में वैष्णव , शैव आदि अनेक संप्रदाय थे । अपनी उच्चता को लेकर उनमें संघर्ष होता था । परंतु यह संघर्ष तर्क - वितर्क , वाद - विवाद तक ही सीमित था । बलपूर्वक किसी के धर्म या संप्रदाय को बदलने का प्रयास नहीं किया जाता था ।
अंग्रेजों के शासनकाल में इसका रूप विकृत हो गया । उन्होंने कूटनीति का सहारा लेकर हिंदू - मुसलमानों में सांप्रदायिकता के ज़हर के बीज बोए । इस सांप्रदायिकता का भयंकर परिणाम देश की आज़ादी के समय हमें चुकाना पड़ा ।
आज़ादी के बाद इस ज़हर को और अधिक फैलाने का काम किया गया । वोट की राजनीति ने और भी विष - विमन किया तथा सांप्रदायिकता की विष - बेल को चारों तरफ़ फ़ैलाया ।
यदि हम चाहते हैं कि हमारा राष्ट्र भारत उन्नति करे तो सांप्रदायिकता की इस बेल को उखाड़ फेंकना होगा । भारत में रहने वाले प्रत्येक नागरिक , चाहे वह किसी भी धर्म का हो , भारतीय कहलाया जाएगा । सब पर समान आचार संहिता लागू की जाए ।
कवि इकबाल ने भी इस पंक्ति में हमें प्रेरणा देते हुए कहा है कि " मज़हब हमें नहीं सिखाता आपस में बैर रखना " ।
आशा है इससे आपकी मदद होगी ।
धर्म का संबंध मानवता से है । धर्म मनुष्य - मनुष्य में प्रेम उत्पन्न करता है । जो मानव में भेद पैदा करता है , शत्रुता बढ़ाता है , वह धर्म नहीं हो सकता । इस प्रकार कुछ लोगों ने अपने स्वार्थ के लिए धर्म को संप्रदाय का रूप दिया है ।
आज प्रत्येक संप्रदाय अपने को सच्चा , श्रेष्ठ मानता है तथा श्रेष्ठता के अहंकार में दूसरों को तुच्छ समझकर उसे नीचा दिखाने का प्रयास कर रहा है । इसी भावना ने सांप्रदायिकता को विष बना दिया । प्राचीन भारत में वैष्णव , शैव आदि अनेक संप्रदाय थे । अपनी उच्चता को लेकर उनमें संघर्ष होता था । परंतु यह संघर्ष तर्क - वितर्क , वाद - विवाद तक ही सीमित था । बलपूर्वक किसी के धर्म या संप्रदाय को बदलने का प्रयास नहीं किया जाता था ।
अंग्रेजों के शासनकाल में इसका रूप विकृत हो गया । उन्होंने कूटनीति का सहारा लेकर हिंदू - मुसलमानों में सांप्रदायिकता के ज़हर के बीज बोए । इस सांप्रदायिकता का भयंकर परिणाम देश की आज़ादी के समय हमें चुकाना पड़ा ।
आज़ादी के बाद इस ज़हर को और अधिक फैलाने का काम किया गया । वोट की राजनीति ने और भी विष - विमन किया तथा सांप्रदायिकता की विष - बेल को चारों तरफ़ फ़ैलाया ।
यदि हम चाहते हैं कि हमारा राष्ट्र भारत उन्नति करे तो सांप्रदायिकता की इस बेल को उखाड़ फेंकना होगा । भारत में रहने वाले प्रत्येक नागरिक , चाहे वह किसी भी धर्म का हो , भारतीय कहलाया जाएगा । सब पर समान आचार संहिता लागू की जाए ।
कवि इकबाल ने भी इस पंक्ति में हमें प्रेरणा देते हुए कहा है कि " मज़हब हमें नहीं सिखाता आपस में बैर रखना " ।
आशा है इससे आपकी मदद होगी ।
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