मलहर लाकि प्रदेश के मेकर लत विन कविता नै बस्दै जीवन जीवन प्रय हुन २ स्तुत कविता में मलपूर हुया है
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Explanation:
ज़मीन में दबा व्यतीत
पता नहीं
बीती घटनाओं को तह कर
कहां रखा जाये ?
निर्जीव शरीर को ताबूत से ढंक देने के बाद भी
उसे कोई न कोई नाम देना ही होता है
धुएं में प्रेत की तरह भटकती है
मेरी बीत चुकी कहानी
रेंगती है जीवित छिपकली-सी
दिमाग में मेरे
मैं खिड़की खोलना चाहता हूँ
छुटकारा पाने, दिमाग में रेंगती बेचैनी से
बीता समय बासी खाने-सा है
पर परोसे जाने पर
बिल्कुल ताज़ा लगता है
लम्बी कहानी का संक्षिप्त आख्यान
पानी का खाली गिलास,
अधजली सिगरेटों से भरा ऐश ट्रे,
छूटा हुआ चाय का प्याला,
कुछ एण्टीबायोटिस, कुछ दर्द-निवारक दवाएं,
बदबूदार
कुछ पुरानी पुस्तकें,
कई दिनों की मैली चादर,
दीवार पर रुकी हुई घड़ी,
मकड़ी के जाले से ढंकी एक स्त्री की तस्वीर,
पिछले दिसम्बर में खुला कैलेण्डर
कोई देख रहा है
यह सब कोई देख रहा है
मोटे चश्मे से!
कमीज़
कमीज़ के भीतर एक शरीर
शरीर के सीने में
पीड़ा, असंतोष और गंदगी की कई परतें
कमीज़ की ज़ेब में मुझे-तुड़े
कागज़ पर अंकित कई नाम
फीके पड़ गये हैं
तब भी यह हमेशा साथ रही है
तार-तार हो गयी है
तब भी मैं यह कमीज़ पहन रहा हूँ
छेद हो चुके हैं जे़ब में
तब भी यह मेरा साथ नहीं छोड़ रही
न भूलने का वादा
बीते हुए क्षणों से मैंने कहा,
यदि हम इस राह पर फिर
हम प्यार से एक-दूसरे को पुकारेंगे
उनसे प्रेमालाप के क्षणों में
मेरे पैरों में तेज़ी आ जाती है
आज जब मैं उनके आने का इन्तज़ार कर रहा हूं
मेरे पैर ढीले पड़ रहे हैं
अंधेरी राह
एक बजे रात खर्राटे लेते समय
मेरे खुले मुंह में एक
मच्छर घुस आया
मैं जब अनजान दीवार को तोड़कर देखता हूँ
मुझे मेरा शरीर निढाल चूजा महसूस होता है
जब मैं अनजान आंख में
अपनी आंखें डालता हूँ
एक लम्बी राह नज़र आती है
रात के अंधकार में
मेरी यादों के साये गायब हो रहे हैं
वे कभी पाप-सी होती हैं
पुण्य-सी कभी
जो भी देखा, अंधों का देखना था
उजाला भी अंधकार ही है