ममता ने मन में कहा-"यहाँ कौन दुर्ग है? यही झोपड़ीन, जो चाहे ले ले, मुझे अपना कर्तव्य करना पड़ेगा।
चली आयी और मुगल से बोली-“जाओ भीतर, थके हुए भयभीत पथिका तुम चाहे कोई हो, मैं तुम्हें आत्रय
ब्राह्मण-कुमारी हूँ, सब अपना धर्म छोड़ दें, तो मैं भी क्यों छोड़ दूं?" मुगल ने चन्द्रमा के मन्द प्रकाश में पठान
मुखमण्डल देखा, उसने मन-ही-मन नमस्कार किया। ममता पास की टूटी हुई दीवार में चली गई। भीतर, यके
झोपड़ी में विश्राम किया।
d Perftar
।
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achho ESA Hua that mine malum hi nahi
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