* 'मन, बेलगाम घोड़ा' विषय पर अपने विचार लिखिए।
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हमारे धर्म शास्त्र इस उपदेश से भरे हैं कि मन बड़ा चंचल है, इसे बांधो। यह बेलगाम घोड़ा है, इसे साधो। लेकिन ईश्वर ने कोई भी चीज अनायास और अकारण नहीं दी है। मन की चंचलता भी बिलकुल बेकार या अनुपयोगी नहीं है। बच्चे सबसे ज्यादा चंचल होते हैं, इसीलिए वे सबसे ज्यादा निष्कलुष रह पाते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि मन संकल्प और विकल्प स्वरूप है। इसमें हर पल असंख्य विचार आते और जाते हैं और उनमें परिवर्तन होता है। इसमें परस्पर विरोधी विचारों का प्रवाह भी चलता रहता है। कभी अच्छे विचार तो कभी बुरे विचार। यह भी कहा गया है कि मन ही मनुष्य के बंधन और मोक्ष का कारण है। वह अत्यंत चंचल है, कहीं एक स्थान पर टिकता नहीं। भागता रहता है। लेकिन कभी-कभी मन की यह चंचलता मनुष्य के हित में होती है। हमारे जीवन में कई बार विषाद और खिन्नता के क्षण भी आते हैं। ऐसे क्षणों में मन यदि दुख और पीड़ा पर ही एकाग्र होकर रह जाए तो हम उससे कभी उबर नहीं पाएंगे। लेकिन मन ऐसे अवसरों पर भी अपनी चंचलता से बाज नहीं आता और यही स्थिति मनुष्य के लिए उपयोगी सिद्ध होती है। जब मन पीड़ा देने वाली मन: स्थिति से बाहर निकल आता है तो मनुष्य को दुख से मुक्ति मिल जाती है। वह अनेक मानसिक तथा शारीरिक व्याधियों से बच जाता है। यदि मनुष्य की सारी समस्याओं की जड़ मन की चंचलता है, तो उसकी सभी समस्याओं के समाधान के लिए भी मन की चंचलता ही जिम्मेदार है। जब भी प्रतिकूल परिस्थितियों से दो- चार होना पड़े, विषाद अथवा खिन्नता से जीना दूभर हो जाए, मन की इसी चंचलता का इस्तेमाल प्रतिकूल परिस्थितियों से बाहर निकलने के लिए करें। मन को अन्यत्र स्थिर करने का प्रयास करें। दुखद स्थितियों के प्रभाव से बचने का इससे अच्छा उपाय ही नहीं हो सकता। जब ध्यान किसी सुखद स्मृति या कल्पना पर केंद्रित हो, तो उस मानसिक अवस्था में जिस सुख या आनंद की अनुभूति होती है, वह हमें स्वस्थ रखती है। वह हमारे तनाव के स्तर को कम करने में सहायक होती है। ऐसी अवस्था में हमारे शरीर में लाभदायक रसायनों का उत्सर्जन होता है। जो हमें रोग मुक्त रखने के लिए जरूरी है। अपना ध्यान किसी बीती हुई सुखद घटना के अलावा किसी सुखद कल्पना पर भी लगाया जा सकता है। यह ध्यान का सर्वोत्तम रूपांतरण है जो न केवल वर्तमान समस्या से मुक्ति दिलाता है, बल्कि हमारी कल्पना को वास्तविकता में परिवर्तित कर मनचाही स्थितियों के निर्माण में भी सहायक होता है। ध्यान का अर्थ ही है अनापेक्षित, अनुपयोगी घातक नकारात्मक मनोभावों से मुक्त होकर सकारात्मक उपयोगी मनोभावों से युक्त होना। जिस साधन या माध्यम से यह प्रक्रिया संपन्न हो जाए, वही ध्यान है। यदि साधना की प्रक्रिया में ऐसा नहीं होता, तो घंटों आंखें मूंदकर बगुला भगत बने बैठे रहना निरर्थक होगा। ध्यान वास्तव में वही है जो मनोभावों के उचित रूपांतरण में सक्षम और सहायक हो। ध्यान परिवर्तन द्वारा मन का परिवर्तन और मन के परिवर्तन द्वारा तन का परिवर्तन अर्थात् ध्यान द्वारा ही संपूर्ण उपचार की प्रक्रिया संभव है। यदि हम अपने मन को प्रतिकूल परिस्थितियों से हटा कर कहीं अन्यत्र लगाते हैं तो उससे दुखों से बचने में सहायता मिलती है। इस प्रकार ध्यान का परिवर्तन समस्याओं और चिंताओं से निकलने का अच्छा मार्ग है। इसमें ध्यान को अनचाही स्थिति से हटाकर अन्यत्र लगाया जाता है। ध्यान को कहां लगाया जाए, ये भी कम महत्वपूर्ण नहीं। यदि ध्यान किसी दूसरी बड़ी समस्या या चिंता पर जा टिका तो ऐसे ध्यान का क्या लाभ? सुख की कल्पना सुखी और दुख की याद या आशंका हमें दुखी बनाती है। और धीरे-धीरे वही कल्पना वास्तविकता में बदल कर हमारा स्थायी सुख या दुख बन जाता है।
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