मन मस्त हुआ फिर क्यों डोले ?
हीरा पायो गांठ गठियायो, बार-बार क्यों खोले ?
में रस का विश्लिषण कीजिये ?
Answers
Answer:
शांत रस
Explanation:
बुद्ध को ज्ञान हुआ, उसके बाद वे दो सप्ताह तक चुप रहे। कथाएं कहती हैं कि सारा अस्तित्व खिन्न हो गया, उदास हो गया। और देवताओं ने आकर उनके चरणों में प्रार्थना की कि आप बोलें, चुप न हो जाए; क्योंकि बहुत—बहुत समय में कभी मुश्किल से कोई बुद्धत्व को उपलब्ध होता है। और करोड़ों आत्माएं भटकती हैं प्रकाश के लिए। वह प्रकाश आपको मिल गया है; उसे छिपाए मत, उसे दूसरों को बताए, ताकि दूसरे अपने अंधेरे मार्ग को आलोकित कर सकें। जो खोज लिया है उसे अपने साथ मत डुबाए, उसे दूसरों के साथ बांट लें, ताकि उन्हें भी कुछ स्वाद मिल सके। चुप न हों, बोलें!
कहते हैं, बुद्ध ने कहा: अगर बोलूंगा, तो जो मैं कहूंगा वह समझ में न आएगा। इसलिए चुप रह जाना ही उचित है। क्योंकि जो भी मैं बोलूंगा वह दूसरे ही लोक का होगा। और उसका कोई स्वाद न हो तो समझ में न आएगा। अनुभव के सिवाय समझ का और कोई मार्ग नहीं है; इसलिए चुप रह जाना ही उचित है।
पर देवताओं ने फिर आग्रह किया और कहा कि कुछ की समझ में आएगा। थोड़ा—सा भी धक्का लगा उस यात्रा पर—न भी समझ में आया, थोड़ा सा रस पैदा हुआ, थोड़ा सा कुतूहल जगा, जिज्ञासा जन्मी, मुमुक्षा पैदा हुई—तो भी उचित है।
बुद्ध ने कहा: जो सच मैं जिज्ञासु है वे स्वयं ही खोज लेंगे, कुछ कहने की जरूरत नहीं; और जो जिज्ञासु नहीं हैं; वे सुनेंगे ही नहीं; उन्हें कहने में कुछ सार नहीं।
लेकिन देवताओं के सामने बुद्ध हारे, क्योंकि देवताओं ने कहा कि कुछ ऐसे हैं, जो बिलकुल सीमांत पर खड़े हैं। अगर न सुनेंगे तो खोजने में बहुत समय लग जाएगा; अगर सुन लेंगे तो छलांग लग जाएगी। और फिर वे सुनें या न सुनें, जो आपने पाया है आप बांटें।
क्योंकि करुणा प्रज्ञा की छाया है। जो जान लेगा वह महाकरुणा से भर जाएगा। वह इसलिए नहीं बोलता है कि बोलना उसकी कोई मजबूरी है। हमारे बोलने और उसके बोलने में फर्क है। हम बोलते हैं इसलिए कि बिना बोले नहीं रह सकते। बिना बोले रहेंगे तो बड़ी बेचैनी होगी। बोलना हमारा रेचन है, केथार्सिस है। बोल लेते हैं, निकल जाता है।
इसलिए तो लोग अपने दुख की चर्चा करते रहते हैं। क्योंकि जितनी दुख की चर्चा कर लेते हैं, उतना दुख हल्का हो जाता है। जितनी बार कर लेते हैं, उतना बिखर जाता है। न बात करने को मिले कोई, तो दुख भीतर—भीतर इकट्ठा होगा, घाव बनेगा।
मनसविद कुछ भी नहीं करते, सिर्फ बीमारों की बात सुनते हैं। सुन—सुन कर ही उन्हें ठीक कर देते हैं। सुनने से मन हल्का हो जाता है। जो बोल रहा है, वह खाली हो जाता है।