मन और बुद्धि के महत्व को सुनकर आप किसी की बात मानोगे सब कारण सोचिए
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शब्द, व्यापकता, छिद्र होना, किसी स्थूल पदार्थ का आश्रय न होना, स्वयं किसी दूसरे के आधार पर न रहना, अव्यक्तता, निर्विकारता, प्रतिघातशून्यता और भूतता अर्थात् श्रवणेन्द्रिय का कारण होना और विकृति से युक्त होना-ये सब आकाश के गुण हैं। इस प्रकार पंचमहाभूतों के ये पचास गुण बताये गये है। धैर्य,तर्क-वितर्क में कुशलता, स्मरण, भ्रान्ति, कल्पना, क्षमा एवं अशुभ संकल्प और चंचलता ये मन के नौ गुण है। इष्ट और अनिष्ट वृत्तियों का नाश, विचार, समाधान, संदेह और निश्चय-ये पाँच बुद्धि के गुण माने गये हैं। युधिष्ठिर ने पूछा – पितामह! बुद्धि के पाँच ही गुण कैसे हैं ? यह सारा सूक्ष्म ज्ञान आप मुझे बताइये।
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