मनुष्य अन्य जीव-जंतुओं से क्या सीख सकता है
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जीवविज्ञान और विकासवाद की दृष्टि से हम सभी पशु हैं. पुनरावर्ती भाषा (व्याकरण आधारित भाषा, recursive language) को छोड़कर मनुष्यों और अन्य पशुओं के बीच कोई आधारभूत अंतर नहीं है. हम नहीं जानते कि अन्य पशुओं को भी पुनरावर्ती भाषा का ज्ञान है या नहीं. पहले हमारा मानना था कि औज़ार बनाना, शब्दों व प्रतीक चिह्नों का उपयोग करना, लड़ना, चीजें उगाना और सामाजिक संस्कृति को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाना केवल मनुष्यों के ही गुण थे लेकिन दूसरी प्रजातियों में भी हमें ये विशेषताएं दिखती हैं, अर्थात, केवल मनुष्य ही एकमात्र बुद्धिमान सामाजिक प्राणी नहीं है. चींटियों में भी ऐसा बहुत कुछ है जो हमसे मिलता है.
कुछ समुद्री प्राणी विशेष प्रकार की भाषा का उपयोग करते हैं. ओर्का व्हेल और डॉल्फिनें आपस में कुछ ऐसे जटिल सामुदायिक व्यवहार करती हैं जिन्हें किसी वास्तविक भाषा के बिना नहीं समझा जा सकता, अर्थात उनकी कोई विशिष्ट भाषा है जिसका हम पता नहीं लगा पा रहे हैं. हंपबैक व्हेलों की बोली के अध्ययन से यह पता चला है कि वे ऐसे गीत गाती हैं जिनकी संरचना मनुष्यों की भाषा की तरह पुनरावर्ती होती है. लेकिन हमें अभी भी यह पता नहीं है कि उनके गीतों के अर्थ क्या हैं.
भूमि पर रहने वाले जंतुओं में मनुष्यों के अतिरिक्त अन्य किसी में भी पुनरावर्ती भाषा के होने की जानकारी नहीं है लेकिन हो सकता है कि कुछ कपि या वानर प्रजातियां बहुत ही आदिम भाषा का उपयोग करती हों. तोते और कौवे एक-दूसरे से सपर्क करने के लिए सैंकड़ों तरह के ध्वनि संकेतों का प्रयोग करते हैं. उनकी संतानें इन ध्वनि संकेतों को सीख लेती हैं और यह सांस्कृतिक इवोल्यूशन अगली पीढ़ियों तक पहुंचता जाता है. यह भी पता चला है कि कुछ पक्षी एक-दूसरे को अलग-अलग नाम से बुलाते हैं. चिंपांजी और अन्य विकसित कपि ध्वनि, हाव-भाव, और इशारों का उपयोग करके एक-दूसरे से संवाद करते हैं और यह सब वे अपने समाज व संस्कृति से सीखते हैं. लेकिन पक्षियों और कपियों की ऐसी बोली व भाषा में हमारी भाषा की तरह विकसित व्याकरण नहीं होता. व्याकरण के नियमों के बिना किसी भी भाषा में योजनाबद्ध तरीके से बात नहीं की जा सकती है.
इसके अतिरिक्त मनुष्यों में कुछ ऐसी विलक्षणताएं होती हैं जो अन्य पशुओं में भी होती हैं लेकिन मनुष्यों में ये सभी एक-दूसरे से मिलकर बहुत शक्तिशाली हो जाती हैं. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमारे शरीर के औसत भार की तुलना में हमारे मस्तिष्क का आकार अधिक होता है. डॉल्फिन, व्हेल, हाथी, कपि, तोते, कुत्ते, और कौवे का मस्तिष्क भी अपेक्षाकृत अधिक बड़ा होता है लेकिन हमारे जितना बड़ा (शरीर के आकार के अनुपात में) नहीं होता. हम ऐसे सामाजिक प्राणी हैं जो किसी एक नर या मादा से संबंध बनाकर बच्चे पैदा करते हैं और अपने बच्चों से बहुत प्रेम करते हैं. हमारा प्रारंभिक विकास भी सांस्कृतिक होता है अर्थात हमारे शिशुओं को माता-पिता व समाज से सीखने और विकसित होने में बहुत अधिक समय लगता है. इस जीवनशैली से हमें अपनी सहजबुद्धि के आधार पर चीजों का चुनाव करने, जटिल सामाजिक व्यवहार करने, और अन्य व्यक्तियों के दृष्टिकोण को समझने में बहुत सहायता मिलती है. इन विशेषताओं के आधार पर हमारे और पक्षियों के बीच अन्य स्तनधारियों जैसे डॉल्फिन और कपियों की तुलना में अधिक समानताएं दिखने लगती हैं. लेकिन पक्षियों में तालमेल करके तथ्यों को समझने की क्षमता कुछ कम होती है क्योंकि बड़े मस्तिष्क का होना उनके उड़ने में बाधक हो सकता था. हमारे आदिवासी समाजों में परोपकार की भावना होती है जिसके लक्षण कपि समाज में भी देखे जा सकते हैं और यह भावना भी जटिल सामाजिक व्यवहारों को विकसित करती है. वयस्क मनुष्य अन्य कवि व वानर प्रजातियों के सदस्यों की भांति खिलंदड़पन वाला दोस्ताना बर्ताव करते हैं. और हमारे पक्ष में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमारे हाथ और उंगलियां हमें हर तरह से तोड़-मरोड़कर भांति-भांति की वस्तुओं का निर्माण करने की कला में निपुण कर देती हैं.
हमारी चंचलता, दोस्ताना रवैया, बुद्धि (मस्तिष्क का बड़ा होना), पुनरावर्ती भाषा, और चीजों को तोड़ने-मरोड़ने की क्षमता और इन सभी गुणों के मेल से हम अन्य जीव-जंतुओं से अलग हो जाते हैं. इन सभी गुणों ने हजारों वर्षों के दौरान हमारा सामाजिक-सांस्कृतिक विकास करके हमें उन्नत तकनीक संपन्न प्रजाति के रूप में विकसित किया है जो सभी प्राणियों पर प्रभुत्व स्थापित करती है. मनुष्य के रूप में हमारी सफलता बहुत से ज्ञात-अज्ञात गुणों के मेल से उपजी है. मनुष्यों का कोई एकमात्र ऐसा गुण या विशेषता नहीं है जो इसे अन्य प्राणियों से अलग करता हो.
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plz mark me as a brainlist
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Manusya give - gantu se yah sikh sakta hai ki Vah manusya se kam nahi hoti Vah bahut mahnat karti hai