मनुष्य को चाहिए कि संतुलित रहकर अति के मार्गों को त्याग कर मध्यमवर्ग को अपनाएं।
अपने सामर्थ्य की पहचान क उसकी सीमाओं के अंदर जीवन बितान एक कठिन कला है।
सामान्य पुरुष अपने अहम के वशीभूत होकर अपना मूल्यांकन अधिक कर बैठता है और उसी के
फल स्वरुप व उन कार्यों में हाथ लगा देता है। इसलिए सामर्थ्य से अधिक वह करने वालों के लिए
कहा जाता है-तेते पांव पसारिए जेती लंबी सौर। उन्हीं के लिए कहा गया है कि अपने सामर्थ्य को
विचार कर उसके अनुरूप कार्य करना और व्यर्थ के दिखावे में स्वयं को ना भूला देना एक कठिन
साधना तो अवश्य है पर सबके लिए यही मार्ग अनुकरणीय है।
क-अति का मार्ग क्या होता है?
ख-कठिन कला क्या है?
ग-मनुष्य अहम के वशीभूत होकर क्या करता है?
घ-अपना अधिक मूल्यांकन कर बैठता है?
इ.- प्रस्तुत गद्यांश का शीर्षक क्या होगा?
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ग) मनुष्य अपने हम के वशीभूत होकर अपना बनाकर अधिक करवाता है और उसी के फल स्वरुप वन कार्य में हाथ लगा रहता है इसलिए सामर्थ्य से अधिक वह करने वाले के लिए कहा जाता है तेते पांव पसारिए जेती मंदिर
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(क)अमर्यादित मार्ग
(ख)सामर्थ्य की सीमा में जीवन बिताना
(ग)अपना अधिक मूल्यांकन कर बैठता है।
(ङ) सामर्थ्य के अनुसार कार्य करना
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