'मनुष्याला'तथा 'अब कहाँ दूसरों के दुख से दुखी होने वाले' दोनों रचनाएँ एक सा ही संदेश प्रेषित
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दोनों ही कथाओं के अंदर एक संदेश एक समान है इसके अंदर यह लिखा है कि मनुष्य ही मनुष्य की सहायता करता है वैसे ही हमें दूसरों की सहायता करनी चाहिए अपने प्राणों को त्याग कर दी जैसे कि करण ने किए थे
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