Hindi, asked by duothunderboltgammer, 1 day ago

मनुष्य में पशुल्व से मिला टशनलाली चार बात लिखा​

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Answered by sriharshithchekuri33
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Answer:

उस आदमी का जीना या मरना अर्थहीन है जो अपने स्वार्थ के लिए जीता या मरता है। जिस तरह से पशु का अस्तित्व सिर्फ अपने जीवन यापन के लिए होता है, मनुष्य का जीवन वैसा नहीं होना चाहिए। ऐसा जीवन जीने वाले कब जीते हैं और कब मरते हैं कोई ध्यान ही नहीं देता है। हमें दूसरों के लिए कुछ ऐसे काम करने चाहिए कि मरने के बाद भी लोग हमें याद रखें। साथ में हमें ये भी अहसास होना चाहिए कि हम अमर नहीं हैं। इससे हमारे अंदर से मृत्यु का भय चला जाता है।

उसी उदार की कथा सरस्वती बखानती,

उसी उदार को धरा कृतार्थ भाव मानती।

उसी उदार की सदा सजीव कीर्ति कूजती;तथा उसी उदार को समस्त सृष्टि पूजती।

अखंड आत्म भाव जो असीम विश्व में भरे,

वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे॥

जो आदमी पूरे संसार में अत्मीयता और भाईचारा का संचार करता है उसी उदार की कीर्ति युग युग तक गूँजती है। धरती भी सदैव उसकी कृतघ्न रहती है। समस्त सृष्टि उस उदार की पूजा करती है और सरस्वती उसका बखान करती है।

क्षुधार्त रतिदेव ने दिया करस्थ थाल भी,

तथा दधीचि ने दिया परार्थ अस्थिजाल भी।

उशीनर क्षितीश ने स्वमांस दान भी किया,

सहर्ष वीर कर्ण ने शरीर चर्म भी दिया।

अनित्य देह के लिए अनादि जीव क्या डरे?

वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे॥

पौराणिक कथाओं में ऐसे कई महादानियों की कहानियाँ भरी पड़ी हैं जिन्होंने दूसरों के हित के लिए अपना सब कुछ दान कर दिया। रतिदेव ने अपने हाथ की आखिरी थाली भी दान में दे दी थी। दधिची ने वज्र बनाने के लिए अपनी हड्डी देवताओं को दे दी थी जिससे सबका भला हो पाया। सिबि ने कबूतर की जान बचाने के लिए बहेलिए को अपने शरीर का मांस दे दिया। ऐसे बहुत से महापुरुष इस दुनिया में पैदा हुए हैं जिनके परोपकार के कारण आज भी लोग उन्हें याद करते हैं।

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