Hindi, asked by sakshamkesharwani, 4 months ago

मनुष्य ने बुद्धि के बल पर आशातीत उन्नति की है , किन्तु उन्नति के साथ-साथ वह अवनति की ओर भी बढ़ गया है ,कैसे ? ‘अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले’ पाठ के आधार पर
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Answered by shishir303
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मनुष्य ने अपनी बुद्धि के बल पर आशातीत उन्नति की है, किंतु उन्नति के साथ-साथ वह अवनति की ओर भी बढ़ गया हैस क्योंकि अब वह विकास की अंधी दौड़ में शामिल हो गया है। वह प्रकृति को अपने वश में कर लेना चाहता है। मनुष्य प्रकृति को अपनी जागीर समझने लगा है और प्राकृतिक संसाधनों से खिलवाड़ करने लगा है। उसमें संवेदनाएं खत्म होती जा रही हैं। चारित्रिक पतन होता जा रहा है। मनुष्य केवल भौतिक सुख के पीछे भाग रहा है। वो प्रकृति के तत्वों का आवश्यकता से अधिक दोहन करने में लगा है, जो प्राकृतिक संतुलन बिगाड़ रहे हैं। इससे मनुष्य आने वाले भविष्य के प्रति संकट ही पैदा कर रहा है।

भले ही मनुष्य आज तकनीक और विज्ञान के क्षेत्र में अपनी बुद्धि के बल पर काफ़ी उन्नति कर चुका हो लेकिन वह अपनी लिए भविष्य में संकट की आधारशिला भी रखता जा रहा है। इसीलिए ‘अब कहाँ दूसरों के दुख से दुखी होने वाले’ पाठ में कहा गया है कि मनुष्य ने बुद्धि के बल पर आशातीत उन्नति तो की है, लेकिन उन्नति के साथ-साथ अवनति की ओर भी बढ़ गया है।

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