मनुष्य धन कैसे कमाता है ?
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जीवन निर्वाह के लिए जिस सामग्री की सबसे ज्यादा जरूरत पड़ती है वह धन है। धन से ही हम अपने जीवन की सभी शुरुआती आवश्यकताओं, आराम और जरूरतों को पूरा कर सकते हैं। धन का सदुपयोग कर हमें जीवन को खुशहाल बनाना चाहिए।
धन का महत्व आज के समय में ही नहीं, बल्कि प्राचीन समय से रहा है। धन के बिना न तो कोई यज्ञ होता है न ही कोई अनुष्ठान। जीवन निर्वाह धन के बिना नहीं हो सकता। राष्ट्र की उन्नति एवं समृद्धि का परिचायक भी धन ही है। प्राचीन समय में कहा जाता था कि धन और सरस्वती का वैर है। अर्थात ये दोनों एक स्थान पर इकट्ठे नहीं रह सकते, लेकिन आधुनिक युग में यह सिद्धांत बदल गया है। आज धन और विद्या दोनों साथ-साथ चलते हैं। धनवान व्यक्ति ही अच्छे विद्यालय में अपने बच्चों को शिक्षा दिलवा पाता है। परीक्षा में अच्छे अंक दिलवाने के लिए ट्यूशन लगा देता है। धन की महिमा दिन-प्रतिदिन इसी तरह बढ़ती रही तो वह दिन दूर नहीं जब शिक्षा केवल धनाढय लोगों के लिए रह जाएगी और निर्धन और योग्य छात्र यदि उच्च शिक्षा प्राप्त कर लें तो उन्हें केवल अपवाद कहे जाएंगे।
यह सही है कि धन के अभाव से बड़े-बड़े कार्य रुक जाते हैं, जहां धन की कमी है वहां जीवन निर्वाह करना कठिन हो जाता है। इसलिए हमें धन की सख्त जरूरत है। आज जीवन के लिए धन नहीं रह गया है, धन के लिए जीवन हो गया है। हर आदमी जीवन, भाईचारा, सुख-शांति व ईमान खोकर जिस किसी भी तरह धन कमाने के पीछे पड़ा है। इससे दुनिया में धन नहीं बढ़ा है बल्कि धन का नशा बढ़ा है। धन के लिए पागलपन बढ़ा, इससे दुख बढ़ा, अशांति बढ़ी, वैर और घमंड बढ़ा और हमारी शैतानियत बढ़ी।
यह ठीक है कि धन के बिना हमारा काम नहीं चल सकता, थोड़ा बहुत धन हमें चाहिए, पर जितना चाहिए उसी के पीछे यह सब अनर्थ नहीं हो रहा। अनर्थ वह लोग ही करते हैं जिनके पास चाहिए से अधिक धन है। यहां सवाल यह उठता है कि चाहिए से अधिक धन का लोग क्या करते हैं। क्यों मनुष्य उसके पीछे पागल हो रहा है। जीवन की खुशहाली के लिए विकास जरूरी है और विकास के लिए धन, लेकिन यदि मनुष्य नैतिक मूल्यों को भुलाकर धन कमाता है तो समाज की व्यवस्था खराब हो जाएगी। आजकल गलत तरीके से धन कमाने के लिए मनुष्य भ्रष्टाचार, रिश्वत, गैर कानूनी कार्य, अपहरण, अमीर लोगों की हत्याएं, चोरी आदि अनेक बुरे कार्यो का सहारा ले रहा है जो मानवता के सभी नैतिक मूल्यों और आदर्शो का ह्रास कर रहे हैं। गलत तरीके से मनुष्य कम समय और प्रयासों में धन तो प्राप्त कर लेता है, लेकिन वह धन अधिक समय तक उसके पास नहीं रहता। जो व्यक्ति मानवता के सभी नियमों का पालन करके सही तरीकों से धन कमाते हैं वे चाहे कम ही धन कमाते हैं परंतु वह धन बहुत लंबे समय तक प्रयोग में आता है और वे व्यक्ति एक दिन समाज के उच्च सम्मानित व्यक्ति बनते हैं।
धन के महत्व को ध्यान में रखते हुए आज प्रत्येक मनुष्य को चाहिए कि वे धन को सही राह पर चलकर कमाएं और उसका सदुपयोग करें। हम नहीं जानते कि हमारे ऊपर कब कौन-सी आपदा आ जाए, जिसके कारण हमें धन की आवश्यकता पड़े। इसलिए हमें चाहिए कि हम कुछ धन अवश्य उस वक्त के लिए बचाकर रखें और उसे व्यर्थ में नष्ट न करें। जो मनुष्य धन का सदुपयोग करते हैं वे सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करते हैं। उन्हें धनाभाव का कष्ट नहीं भोगना पड़ता। धन को सही तरीके से कमाने और इसका सदुपयोग करने वाला मनुष्य ही देश की उन्नति में सहयोग दे सकता है। इसलिए हमें इसका महत्व समझते हुए इसका सदुपयोग करना चाहिए।
- अंजु शर्मा, मुख्याध्यापिका गुरु गो¨बद ¨सह स्कूल मंडी।
हर युग में रहा है धन का महत्व
धन का महत्व प्रत्येक युग में छोटे-बड़े प्रत्येक व्यक्ति के लिए अवश्य रहा है। सच तो यह है कि धन के अभाव में व्यक्ति का किसी भी तरह से जीवित रह पाना संभव नहीं हुआ करता। आखिर इतना धन तो हर व्यक्ति को चाहिए ही कि वह अपना व अपने घर परिवार का नि¨श्चत होकर गुजर-बसर कर सके। जीवन जीने के लिए धन एक तरह की अनिवार्यता है। शरीर रहेगा तभी व्यक्ति धर्म-कर्म आदि सभी तरह के पुरुषार्थ कर सकेगा। शरीर की रक्षा के लिए अन्न व वस्त्र आदि आवश्यक हैं तथा उन्हें पाने के लिए धन उतना ही आवश्यक है।
- प्यार चंद सकलानी, शिक्षक गुरु गो¨बद ¨सह पब्लिक स्कूल मंडी।
जरूरतें पूरी करने के लिए पैसे होना जरूरी
जैसे कि कहा गया है कि धन में लक्ष्मी का वास होता है। प्राचीन समय से ही धन का महत्व रहा है। धन प्रत्येक युग में छोटे-बड़े प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक रहा है। धन के बिना जीवित रह पाना प्रत्येक व्यक्ति के लिए मुश्किल है। रोटी, कपड़ा व मकान जैसी प्राथमिक आवश्यकताएं पूरी करने के लिए धन का होना जरूरी है। कबीर जैसे संत ने भी कहा था कि जीवन जीने के लिए धन एक तरह की अनिवार्यता है। ये सच है कि धन मूल्यवान है। उसकी सभी को जरूरत है पर उसको सबकुछ मान लेना स्वस्थ मन व मस्तिष्क का परिचायक नहीं कहा जा सकता। यह मानवता में स्खलित होकर कदम दर कदम दानवता की ओर अग्रसर होते जाता है।