Hindi, asked by raahatbehal143, 10 months ago

Manciy karuna ki divya chamak ka sandesh

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Answered by sardarg41
7

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मानवीय करुणा की दिव्य चमक एक संस्मरण है जो की सर्वेश्वर दयाल सक्सेना लिखा गया है।अपने को भारतीय कहने वाले फादर बुल्के जन्मे तो बेल्जियम के रैम्सचैपल शहर में जो गिरजों ,पादरियों ,धर्मगुरुओं भूमि कही जाती है परन्तु उन्होंने अपनी कर्मभूमि बनाया भारत को। फादर बुल्के एक सन्यासी थे परन्तु पारम्परिक अर्थ में नहीं। सर्वेश्वर का फादर बुल्के के साथ अंतरंग सम्बन्ध थे जिसकी झलक हमें इस इस संस्मरण में मिलती है। पाठ के प्रारम्भ लेखक को ईष्वर से शिकायत है कि फादर के रगों में दूसरों के लिए मिठास भरे अमृत था तो वह क्यों जहरबाद से मरे। वे प्राणी को गले लगते थे। वे इलाहाबाद लेखक से मिलने हमेशा आते थे।

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जी, फादर को याद करके अवसाद से भर जाते है। उसे वे दिन याद है ,जब वे परिमल की गोष्ठियों में पारिवारिक रिश्तों के रूप बंधे थे। रचनाओं सुझाव और बेबाक राय देना, घर के उत्सवों में बड़े भाई की तरग आशीष देना उनका स्वभाव था। लेखक के पुत्र का अन्नप्राशन भी फादर ने ही किया था। उनकी नीली आखों में वात्सल्य तैरता रहता था।

फादर जब बेल्जियम में इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष में ,थे तभी उनके मन में सन्यासी बनने की इच्छा जाग उठी ,जब की उस समय उनके घर में दो भाई ,एक बहन और माता पिता थे। फादर को कीयाद बहुत आती। थी भारत आने के बाद अपनी जन्म भूमि रैम्सचैपाल भी गए थे।

भारत उन्होंने जीसेट संघ में दो साल धर्माचार की पढ़ाई की। कोलकाता बी.ये ,इलाहबाद में एम्. ये।प्रयाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग :उत्पत्ति और विकास पर शोध प्रबंध पूरा किया। फिर अंग्रेजी -हिंदी कोष तैयार और बाइबिल का अनुवाद। किया ४७ साल भारत वर्ष में रहने के बाद उनकी मृत्यु हुई।

फादर ने हमेशा की विकास व उन्नति के लिए कार्य किया। हर मंच से हिंदी की वकालत करते रहे। उन्हें इस बात का दुःख होता था कि ही हिंदी की उपेक्षा कर रहे हैं। १८ अगस्त ,१९८२ की सुबह दस बजे दिल्ली के निकलसन कब्रग्राह में उनका ताबूत ;लाया गया। इनका ईसाई विधि से अंतिम संस्कार किया गया। वहां पर जैनेन्द्र कुमार ,विजेंद्र स्नातक ,अजित कुमार ,डॉ. निर्मला जैन और मसीही समुदाय के सैकड़ों जान प्रस्तुत थे। फादर पास्कान ने कहा कि फादर बुल्के धरती में। इस धरती से ऐसे रत्न और पैदा हो। सभी लोग उनकी मृत्यु पर शख व्यक्त कर रहे। लेखक ने फादर को मानवीय करुणा की दिव्य चमक कहा है और पवित्र ज्योति की तरह याद।

Answered by chhayaawale
12

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मानवीय करुणा की दिव्य चमक एक संस्मरण है जो की सर्वेश्वर दयाल सक्सेना लिखा गया है। ... सर्वेश्वर का फादर बुल्के के साथ अंतरंग सम्बन्ध थे जिसकी झलक हमें इस इस संस्मरण में मिलती है। पाठ के प्रारम्भ लेखक को ईष्वर से शिकायत है कि फादर के रगों में दूसरों के लिए मिठास भरे अमृत था तो वह क्यों जहरबाद से मरे।

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