Hindi, asked by meenusharma3071, 1 year ago

Mangal grah ki ek kalpanik yatra par anuchched

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Answered by Diyakalra002
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एक अनोखी यात्रा जो 3 जून 2010 को मॉस्को में शुरू हुई थी। ठीक 520 दिन बाद मॉस्को में ही समाप्त भी हुई। चार देशों के छह मंगल-यात्री मंगल ग्रह पर तो कभी नहीं पहुँचे, पर 17 महीनों तक उन्हें वह सब झेलना पड़ा, जो मंगल ग्रह की किसी सच्ची यात्रा के समय उन्हें सचमुच झेलना पड़ता। 

किसी भावी मंगल-यात्रा का पृथ्वी पर यह एक रेकॉर्ड-तोड़ अनुकरण (सिम्युलेशन) अभियान था। पाँच मॉड्यूलों वाले एक बनावटी 'अंतरिक्षयान' में रूस के दो और इटली, फ्रांस तथा चीन का एक-एक 'मंगल ग्रह यात्री' 520 दिनों तक स्वेच्छा से बंद रहा। न धूप। न ताज़ी हवा। न ताजा़ पानी। बाहरी दीन-दुनिया से अलग- थलग। देश-दुनिया से बेख़बर। ऐसे में स्वाभाविक ही था कि इस एकांतवास से छुटकारा पाने की खुशी में हर चेहरे पर उस समय मुस्कान बिखर गयी, जब शुक्रवार 4 नवंबर को, मॉस्को के समय के अनुसार, दिन में ठीक दो बजे (भारत में दिन के साढ़े चार बजे) उनके कथित अंतरिक्षयान का दरवाज़ा खुला। 

खुली हवा में पहली साँसःखुली हवा में पहली साँस लेने के तुरंत बाद सबसे पहले वे डॉक्टरों, अपने परिजनों और घनिष्ठ मित्रों से मिले। टीम के इतालवी सदस्य दीयेगो उर्बीना ने कहा, ''आप सब को फिर से देख कर बहुत अच्छा लग रहा है। 'मार्स500' मिशन के द्वारा हमने धरती पर अंतरिक्ष की अब तक की सबसे लंबी यात्रा पूरी की है, तकि मनुष्यजाति बहुत दूर के, फिर भी हमारी पहुँच के भीतर के एक ग्रह पर एक नये सवेरे का स्वागत कर सके। ...मैं उन सब का सदा आभारी रहूँगा, जो दूर से ही सही, इस कष्टदायक अंतरिक्षयात्रा में हमेशा मेरे पास रहे।'' 

उर्बीना ने कुछ दिन पहले अपनी डायरी में लिखा था, ''कभी-कभी तनावपूर्ण, नीरस दिन हमें अपने जीवन के सबसे एकाकीपूर्ण दिन लगे।'' मंगल ग्रह पर जाने की तैयारी के इससे पहले के ऐसे ही प्रयोगों में, जो इतने लंबे नहीं थे, उन में भाग लेने वाले मानसिक तनाव और एकाकीपन के कारण कभी-कभी अपना आपा इस तरह खो बैठे कि एक-दूसरे से मारपीट भी कर बैठे। 


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